15 अगस्त के पूर्व देश की सर्वोच्च अदालत माननीय सुप्रीम कोर्ट की दोहरी न्यायिक व्यवस्था की टूटी कलम पर न्याय की आस में उत्तर प्रदेश का शिक्षा मित्र

एक तरफ देश दो दिन बाद बड़ी धूम-धाम से स्वतंत्रता दिवस मनाएगा वही उसी दिन यूपी के लगभग1400परिवार न्याय की आश में अपने मृत बेटी पिता बहू पुत्र पिता के शोक में रक्षाबंधन के दिन परिवारों
में मातम देखने को मिलेगा जहां कई मार्मिक एवं संवेदनशील मामलों में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर न्याय पर विश्वास बनाए रखा एवं यह साबित करने का प्रयास किया कि हमारी चौखट पर न्याय सबको मिलता है वही विगत लंबे समय से उत्तर प्रदेश में हो रही अनायास अकाल मृत्यु का दौर जारी है जिनमें मानसिक शारीरिक आर्थिक एवं तमाम प्रकार की बीमारी के चलते जो मौतें हुई हैं उस पर ना तो किसी कोर्ट ने स्वतःसंज्ञान लिया ना ही मानवाधिकार, महिला, स्वयंसेवी संस्था आयोग ने संज्ञान लिया ना ही उत्तर प्रदेश की सरकार ने आखिर ऐसी निरंकुश व्यवस्था और संकीर्ण सोच क्या दर्शाती है जवाब मिलना बेहद कठिन है क्योंकि जहां एक तरफ इतनी मौतें लगातार हो रही हैं वहां पर मैं समझता हूं कि माननीय सुप्रीम कोर्ट को इस पर भी स्वतः संज्ञान लेना चाहिए था लेकिन हो सकता हो किसी दबाव के कारण आप यह मामला नहीं ले रहे हैं या आपके न्याय क्षेत्र से बाहर हो लेकिन आपको इस बात का भी ख्याल रखना है कि भारतीय संविधान के तहत देश की सर्वोच्च अदालत और उसमें रहने वाले संपूर्ण देश के लोग आप के दायरे में आते हैं मेरा अनुरोध है कि इस टिप्पणी को आप सभी लोग शेयर करें और माननीय सुप्रीम कोर्ट के पटल पर अवश्य पहुंचाएं जो भी मीडिया के सम्मानित लोग हैं धन्यवाद !*
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*त्रिभुवन सिंह*
*मैंने ये लेख अपने विचार से लिखा है।।*