प्रयागराज : यूपी बोर्ड हाईस्कूल व इंटर में समान शिक्षा, परीक्षा व परिणाम की त्रिवेणी बहा रहा है। बोर्ड प्रबंधन का मकसद सिर्फ यहीं तक नहीं है कि परीक्षा नकलविहीन हो, बल्कि अन्य बोर्ड की तरह यहां छात्र-छात्रएं पढ़ें और आगे बढ़ें इसीलिए एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम लागू किया गया है। परिणाम में भी यदि किसी छात्र-छात्र में यह कसक रह गई है कि वह और बेहतर कर सकता है तो उसे भी दोबारा परीक्षा का अवसर देने का खाका खींचा जा चुका है।
माध्यमिक शिक्षा परिषद (यूपी बोर्ड) तकनीक का साथ लेकर सतत सुधारों की ओर अग्रसर है। एक समय था जब सीबीएसई व यूपी बोर्ड के सफलता प्रतिशत में बड़ा अंतर रहा। सीबीएसई के परीक्षार्थी 90 फीसद या और अधिक अंकों से उत्तीर्ण होते थे, वहीं यूपी बोर्ड में 75 प्रतिशत अंक पाना ही टेढ़ी खीर थी। हाईस्कूल व इंटर के ओवरऑल परिणाम में भी फासला साफ दिखता था। इसे खत्म करने के लिए 2011 में मॉडरेशन प्रणाली लागू की गई, इससे परीक्षार्थियों के साथ ही समूचे परिणाम में उछाल आया। अब यूपी बोर्ड में भी 90 प्रतिशत से अधिक अंक पाने वालों की लंबी सूची है।
मोदी सरकार की सबका विकास सबका विश्वास की नीति को अमल में लाने के लिए 2018 में समान शिक्षा की दिशा में कदम बढ़ाया गया। बोर्ड में कक्षा नौ से 12वीं तक चरणबद्ध तरह से एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम लागू किया गया। अधिकांश विषयों में यह लागू हो चुका है तो कामर्स व अंग्रेजी में नए सत्र से लागू होने जा रहा है। इसी के साथ देश में एनसीईआरटी की सबसे सस्ती किताबों से यूपी बोर्ड से संबद्ध स्कूलों में पढ़ाई हो रही है। अब नई शिक्षा नीति के साथ बोर्ड कई नव प्रयोग करने जा रहा है।
बोर्ड में अंक सुधार व कंपार्टमेंट परीक्षा का चलन रहा है। इसमें सीमित विषय में ही छात्र-छात्रएं परीक्षा देकर अंक बढ़ा सकते थे या फिर अनुत्तीर्ण परीक्षा उत्तीर्ण कर सकते हैं। पिछले साल पहली बार इंटर में कंपार्टमेंट परीक्षा का प्रविधान हुआ। अब इससे भी आगे बढ़कर सभी छात्र-छात्रएं पूरी परीक्षा ही दोबारा दे सकते हैं यानी विषयों का कोई बंधन नहीं है, यदि उन्हें लगता है कि वे दोबारा परीक्षा देकर और बेहतर अंक अर्जित कर सकते हैं तो उनके लिए दरवाजे अगले साल से खोले जाने की तैयारी है। बोर्ड सचिव दिव्यकांत शुक्ल कहते हैं कि यह शुरुआत भर है, आगे और भी बहुत कुछ बेहतर किया जाएगा।