फर्रुखाबाद, जागरण संवाददाता : भारी झंझावतों के बाद योजनाएं शुरू हुईं तो
उम्मीदों को पंख लग गए। जैसे-जैसे क्रियांवयन के धरातल पर काम आगे बढ़ा,
वैसे-वैसे उम्मीदें आंख मिचौनी खेलने लगीं। भरोसे पर भरोसा, गुजरता गया
समय, लेकिन आज भी शिक्षा का 'दीया' अपना अस्तित्व बचाने के लिए भरोसे की
'बाती' से टिमटिमाने को मजबूर है।
लेटलतीफी के शंट से पढ़ाई सिसक रही है। गंगापार क्षेत्र में बालिकाओं के लिए गुणवत्तापूर्ण माध्यमिक शिक्षा की उम्मीदें पांच साल बाद भी धरातल से कोसों दूर हैं। 2010 में जिस राजकीय बालिका इंटर कालेज राजेपुर के सत्र 2011 से शुरू होने की घोषणा तत्कालीन शिक्षा मंत्री ने मंच से की थी, वह आज भी बनकर तैयार नहीं हो पाया। निर्माण कार्य की प्रगति इतनी धीमी कि कोई बताने को तैयार नहीं कि आखिर यहां बेटियों को कब नसीब होगा ज्ञान का प्रकाश। राजकीय इंटर कालेज फतेहगढ़ के जर्जर भवन से मुक्ति के लिए 10 शिक्षण कक्ष, प्रयोगशाला, पुस्तकालय व शौचालय आदि के प्रस्ताव पर शासन की मुहर लगी तो उम्मीदें फिर बलवान हुईं। इसके लिए 77 लाख रुपये भी आ गए। लेकिन कार्य कई माह बाद भी शुरू नहीं हुआ।
ग्रामीण प्रतिभाओं को नवोदय व केंद्रीय विद्यालय जैसी गुणात्मक शिक्षा देने के लिए शमसाबाद व रोशनाबाद ब्लाक के माडल स्कूल का स्थानांतरण व संचालन भविष्य के गर्त से बाहर नहीं निकल पा रहा। इन स्कूलों में सीबीएसई पाठ्यक्रम से पढ़ाई होनी है। कार्यदायी संस्थाओं को दी गई पूरी धनराशि भी कार्य को अंजाम तक पहुंचने में निष्फल साबित हुई। राजकीय हाईस्कूल बिहार में अवशेष कार्य अब तक पूर्ण नहीं हो पाए। पिछड़ा वर्ग विभाग द्वारा राजकीय बालिका इंटर कालेज फतेहगढ़ और राजकीय इंटर कालेज फर्रुखाबाद में 50-50 बेड के छात्रावास बनाए गए। छात्रावासों में न फर्नीचर व्यवस्था है, न ही वार्डेन, मैस व सुरक्षा आदि की। हालत यह है कि लगभग एक करोड़ रुपये से बने दोनों छात्रावासों में ताले लटके हैं। राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के अंतर्गत छात्रों को 5 किलोमीटर के अंतर्गत माध्यमिक शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए 17 राजकीय हाईस्कूल खोलने की बात प्रस्ताव के आगे नहीं बढ़ पाई।
गुरु तो हैं नहीं गो¨वद कौन बनाए
माध्यमिक विद्यालयों में सृजित 1400 में से शिक्षकों के 500 पद रिक्त है। इंटर कालेजों में गणित, अंग्रेजी, जीव विज्ञान, भौतिक विज्ञान व रसायन विज्ञान जैसे महत्वपूर्ण विषय पढ़ाने को शिक्षक नहीं हैं। तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में राजकीय पालीटेक्निक व राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में शिक्षकों का टोटा रोड़ा बन रहा है।
किराए के भवन, जोखिम में जान
नगर क्षेत्र के दो दर्जन परिषदीय विद्यालयों में बच्चे हर रोज पढ़ाई छोड़कर अपनी जान की सलामती की दुआ मांगने को मजबूर हैं। टूटे टीन शेड, चटकी दीवारें, लेंटर के उखड़ते प्लास्टर। कुछ यही कहानी है इन किराए के भवनों में संचालित स्कूलों की।
कमजोर बुनियाद पर खड़ी हो रही इमारत
प्राथमिक शिक्षा का हाल यह है कि कक्षा चार के बच्चे अंग्रेजी में अपना नाम नहीं लिख पाते। पांचवीं के छात्र ¨हदी का पाठ नहीं पढ़ पाते।
पैटर्न बदला पर ढर्रा और खराब
सीबीएसई की तरह पहली अप्रैल से ही प्राथमिक और माध्यमिक में नया सत्र शुरू हुआ। स्थिति यह है कि पैटर्न बदलने से सुधरने के बाद पढ़ाई का ढर्रा और खराब हो गया। एक अप्रैल से 20 मई तक पढ़ाई की गाड़ी तनिक भी आगे नहीं खिसक पाई।
ये हैं गतिरोध
1- जीजीआईसी राजेपुर तथा जीआईसी फतेहगढ़ में कार्यदायी संस्थाओं के संशोधित आगणन की स्वीकृति व धनावंटन में पेंच।
2- राजकीय माडल स्कूलों के निर्माण कार्य पूर्ण न होने से शिक्षा विभाग को भवन हस्तांतरित न होना। माडल स्कूलों के शिक्षकों की चयन प्रक्रिया का स्थगन।
3- माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड द्वारा चार से पांच वर्ष पूर्व अधियाचित प्रधानाचार्य, प्रवक्ता व सहायक अध्यापकों के पदों पर चयन न करना।
4- नगर क्षेत्र में पिछले कई वर्षों से नवीन परिषदीय स्कूलों के भवन का निर्माण न होना। नगर में शिक्षकों की नवीन नियुक्ति न किया जाना।
5- शैक्षिक गुणवत्ता के लिए मानकों का निर्धारण नहीं। प्रभावी निगरानी तंत्र का अभाव। न्यूनतम अधिगम स्तर भी न होने पर जवाबदेही तय न होना।
समाधान का रास्ता
1- तय समय में राजकीय उच्चीकृत हाईस्कूल, इंटरमीडिएट व माडल स्कूलों का निर्माण पूर्ण कराना। इससे संशोधित आगणन की जरूरत को खत्म किया जा सकता है।
2- राजकीय हाईस्कूल बिहार व राजकीय हाईस्कूल हिसामपुर में संबद्ध शिक्षकों के स्थान पर स्थायी शिक्षकों की तैनाती हो। उच्चीकृत हाईस्कूलों के प्रस्ताव स्वीकृत हों।
3- सेवानिवृत्ति से खाली होने वाले प्रधानाचार्य व शिक्षकों के पदों का हर वर्ष पहले से ही आंकलन कर प्री चयन प्रक्रिया प्रारंभ करना। पूर्व विज्ञापित पद भरने के लिए भी तत्काल प्रयास।
4- परिषदीय विद्यालयों में छात्र संख्या के आधार पर शिक्षकों की तैनाती। दूरस्थ क्षेत्रों के स्कूलों के लिए निगरानी तंत्र बने।
5- नगर में किराए के भवनों में चल रहे जर्जर स्कूलों को परिषदीय स्कूलों वाली बि¨ल्डग में संबद्ध करने। नवीन स्कूलों के लिए भूमि की तलाश हो।
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लेटलतीफी के शंट से पढ़ाई सिसक रही है। गंगापार क्षेत्र में बालिकाओं के लिए गुणवत्तापूर्ण माध्यमिक शिक्षा की उम्मीदें पांच साल बाद भी धरातल से कोसों दूर हैं। 2010 में जिस राजकीय बालिका इंटर कालेज राजेपुर के सत्र 2011 से शुरू होने की घोषणा तत्कालीन शिक्षा मंत्री ने मंच से की थी, वह आज भी बनकर तैयार नहीं हो पाया। निर्माण कार्य की प्रगति इतनी धीमी कि कोई बताने को तैयार नहीं कि आखिर यहां बेटियों को कब नसीब होगा ज्ञान का प्रकाश। राजकीय इंटर कालेज फतेहगढ़ के जर्जर भवन से मुक्ति के लिए 10 शिक्षण कक्ष, प्रयोगशाला, पुस्तकालय व शौचालय आदि के प्रस्ताव पर शासन की मुहर लगी तो उम्मीदें फिर बलवान हुईं। इसके लिए 77 लाख रुपये भी आ गए। लेकिन कार्य कई माह बाद भी शुरू नहीं हुआ।
ग्रामीण प्रतिभाओं को नवोदय व केंद्रीय विद्यालय जैसी गुणात्मक शिक्षा देने के लिए शमसाबाद व रोशनाबाद ब्लाक के माडल स्कूल का स्थानांतरण व संचालन भविष्य के गर्त से बाहर नहीं निकल पा रहा। इन स्कूलों में सीबीएसई पाठ्यक्रम से पढ़ाई होनी है। कार्यदायी संस्थाओं को दी गई पूरी धनराशि भी कार्य को अंजाम तक पहुंचने में निष्फल साबित हुई। राजकीय हाईस्कूल बिहार में अवशेष कार्य अब तक पूर्ण नहीं हो पाए। पिछड़ा वर्ग विभाग द्वारा राजकीय बालिका इंटर कालेज फतेहगढ़ और राजकीय इंटर कालेज फर्रुखाबाद में 50-50 बेड के छात्रावास बनाए गए। छात्रावासों में न फर्नीचर व्यवस्था है, न ही वार्डेन, मैस व सुरक्षा आदि की। हालत यह है कि लगभग एक करोड़ रुपये से बने दोनों छात्रावासों में ताले लटके हैं। राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के अंतर्गत छात्रों को 5 किलोमीटर के अंतर्गत माध्यमिक शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए 17 राजकीय हाईस्कूल खोलने की बात प्रस्ताव के आगे नहीं बढ़ पाई।
गुरु तो हैं नहीं गो¨वद कौन बनाए
माध्यमिक विद्यालयों में सृजित 1400 में से शिक्षकों के 500 पद रिक्त है। इंटर कालेजों में गणित, अंग्रेजी, जीव विज्ञान, भौतिक विज्ञान व रसायन विज्ञान जैसे महत्वपूर्ण विषय पढ़ाने को शिक्षक नहीं हैं। तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में राजकीय पालीटेक्निक व राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में शिक्षकों का टोटा रोड़ा बन रहा है।
किराए के भवन, जोखिम में जान
नगर क्षेत्र के दो दर्जन परिषदीय विद्यालयों में बच्चे हर रोज पढ़ाई छोड़कर अपनी जान की सलामती की दुआ मांगने को मजबूर हैं। टूटे टीन शेड, चटकी दीवारें, लेंटर के उखड़ते प्लास्टर। कुछ यही कहानी है इन किराए के भवनों में संचालित स्कूलों की।
कमजोर बुनियाद पर खड़ी हो रही इमारत
प्राथमिक शिक्षा का हाल यह है कि कक्षा चार के बच्चे अंग्रेजी में अपना नाम नहीं लिख पाते। पांचवीं के छात्र ¨हदी का पाठ नहीं पढ़ पाते।
पैटर्न बदला पर ढर्रा और खराब
सीबीएसई की तरह पहली अप्रैल से ही प्राथमिक और माध्यमिक में नया सत्र शुरू हुआ। स्थिति यह है कि पैटर्न बदलने से सुधरने के बाद पढ़ाई का ढर्रा और खराब हो गया। एक अप्रैल से 20 मई तक पढ़ाई की गाड़ी तनिक भी आगे नहीं खिसक पाई।
ये हैं गतिरोध
1- जीजीआईसी राजेपुर तथा जीआईसी फतेहगढ़ में कार्यदायी संस्थाओं के संशोधित आगणन की स्वीकृति व धनावंटन में पेंच।
2- राजकीय माडल स्कूलों के निर्माण कार्य पूर्ण न होने से शिक्षा विभाग को भवन हस्तांतरित न होना। माडल स्कूलों के शिक्षकों की चयन प्रक्रिया का स्थगन।
3- माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड द्वारा चार से पांच वर्ष पूर्व अधियाचित प्रधानाचार्य, प्रवक्ता व सहायक अध्यापकों के पदों पर चयन न करना।
4- नगर क्षेत्र में पिछले कई वर्षों से नवीन परिषदीय स्कूलों के भवन का निर्माण न होना। नगर में शिक्षकों की नवीन नियुक्ति न किया जाना।
5- शैक्षिक गुणवत्ता के लिए मानकों का निर्धारण नहीं। प्रभावी निगरानी तंत्र का अभाव। न्यूनतम अधिगम स्तर भी न होने पर जवाबदेही तय न होना।
समाधान का रास्ता
1- तय समय में राजकीय उच्चीकृत हाईस्कूल, इंटरमीडिएट व माडल स्कूलों का निर्माण पूर्ण कराना। इससे संशोधित आगणन की जरूरत को खत्म किया जा सकता है।
2- राजकीय हाईस्कूल बिहार व राजकीय हाईस्कूल हिसामपुर में संबद्ध शिक्षकों के स्थान पर स्थायी शिक्षकों की तैनाती हो। उच्चीकृत हाईस्कूलों के प्रस्ताव स्वीकृत हों।
3- सेवानिवृत्ति से खाली होने वाले प्रधानाचार्य व शिक्षकों के पदों का हर वर्ष पहले से ही आंकलन कर प्री चयन प्रक्रिया प्रारंभ करना। पूर्व विज्ञापित पद भरने के लिए भी तत्काल प्रयास।
4- परिषदीय विद्यालयों में छात्र संख्या के आधार पर शिक्षकों की तैनाती। दूरस्थ क्षेत्रों के स्कूलों के लिए निगरानी तंत्र बने।
5- नगर में किराए के भवनों में चल रहे जर्जर स्कूलों को परिषदीय स्कूलों वाली बि¨ल्डग में संबद्ध करने। नवीन स्कूलों के लिए भूमि की तलाश हो।
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