इलाहाबाद (जेएनएन)। 'वित्त से 'विहीन शिक्षकों ने कालेज प्रबंधक को खुश
करने का जतन हर किया, ताकि उसका नाम मानदेय सूची में शामिल हो सके।
शिक्षकों ने जैसे-तैसे जुगाड़ करके वर्षों से एकत्र की गई पूंजी तक
न्योछावर कर दी।
कई ऐसे भी शख्स हैं जिन्होंने विद्यालय की ड्योढ़ी नहीं लांघी, लेकिन मानदेय सूची में अपना नाम ऊपर दर्ज कराने में सफल रहे हैं। अब सरकार ने 'प्रोत्साहन राशि का एलान किया तो वह ठगा सा महसूस कर रहे हैं, क्योंकि जो वह अर्पित कर चुके हैं उसका ब्याज भी अदा नहीं होगा।
प्रदेश सरकार ने वित्तविहीन स्कूलों के शिक्षकों को प्रतिमाह मानदेय
देने का वादा चुनावी घोषणापत्र में किया था। कुछ माह पूर्व ऐसे शिक्षकों
के लिए 200 करोड़ रुपए की धनराशि स्वीकृत की है। अब एक लाख 92 हजार
शिक्षकों को प्रोत्साहन राशि देने का एलान हुआ है। शिक्षकों की तादाद को
देखते हुए उन्हें भुगतान की राशि तय की गई है। मसलन, इंटरमीडिएट विद्यालय
के प्रधानाचार्य को 1350, इंटर प्रवक्ता को 1100, हाईस्कूल विद्यालय के
प्रधानाचार्य को भी 1100 एवं सहायक अध्यापक को 990 रुपए प्रतिमाह
प्रोत्साहन राशि दिया जाना है।
ताज्जुब यह है कि प्रोत्साहन देने में इन्हीं विद्यालयों के बड़ी संख्या में शिक्षकों की अनदेखी की गई है। असल में इस समय वित्तविहीन स्कूलों में करीब साढ़े तीन लाख शिक्षक पढ़ा रहे हैं, लेकिन प्रोत्साहन राशि करीब दो लाख शिक्षकों को ही देने की तैयारी है। यह हालात इसलिए बने कि शिक्षा विभाग के अफसरों ने विद्यालय प्रबंधकों से इसकी सूची मांगी थी। स्कूल संचालकों ने मोल-भाव करके सूची बनाई जिनसे वह 'खुश हो गए उनके नाम भेजे गए।
भले ही वह पढ़ा रहे हों या फिर कालेज संचालकों के घरेलू सदस्य हों। खास बात यह है कि वित्तविहीन स्कूलों में भी ऐसे शिक्षक बहुतायत में हैं, जो शिक्षक बनने की अर्हता यानी एमए बीएड आदि उत्तीर्ण हैं, फिर भी उनकी सेवाओं की अनदेखी की गई।
वित्तविहीन शिक्षकों को मानदेय के रूप में करीब 18 से 20 हजार रुपए प्रतिमाह मिलने का प्रचार शिक्षक नेताओं ने किया था, लेकिन जो धन स्वीकृत हुआ है वह दिहाड़ी मजदूरों से भी काफी कम है। यही नहीं सरकार शिक्षामित्रों को प्रतिमाह सम्मानजनक मानदेय दे रही है, लेकिन वित्तविहीन की हालत उनसे भी बदतर हो गई है। इस प्रोत्साहन राशि से उनके घर का चूल्हा जलना दूर उनका माह भर तक जेब खर्च चल पाना मुश्किल होगा। प्रोत्साहन निर्धारण से एमएलसी उमेश द्विवेदी खासे नाराज हैं और वह इसे शिक्षकों का अपमान बता रहे हैं।
वहीं उत्तर प्रदेश माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक संघ के प्रदेश महासचिव त्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी कहते हैं कि वित्तविहीन शिक्षकों को पूर्णकालिक शिक्षकों का दर्जा दिया जाए, वरना सारी कवायद बेकार है। वह प्रोत्साहन राशि देने के आदेश की जल्द की जिला मुख्यालयों पर प्रतियां फूंकने की तैयारी कर रहे हैं।
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कई ऐसे भी शख्स हैं जिन्होंने विद्यालय की ड्योढ़ी नहीं लांघी, लेकिन मानदेय सूची में अपना नाम ऊपर दर्ज कराने में सफल रहे हैं। अब सरकार ने 'प्रोत्साहन राशि का एलान किया तो वह ठगा सा महसूस कर रहे हैं, क्योंकि जो वह अर्पित कर चुके हैं उसका ब्याज भी अदा नहीं होगा।
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ताज्जुब यह है कि प्रोत्साहन देने में इन्हीं विद्यालयों के बड़ी संख्या में शिक्षकों की अनदेखी की गई है। असल में इस समय वित्तविहीन स्कूलों में करीब साढ़े तीन लाख शिक्षक पढ़ा रहे हैं, लेकिन प्रोत्साहन राशि करीब दो लाख शिक्षकों को ही देने की तैयारी है। यह हालात इसलिए बने कि शिक्षा विभाग के अफसरों ने विद्यालय प्रबंधकों से इसकी सूची मांगी थी। स्कूल संचालकों ने मोल-भाव करके सूची बनाई जिनसे वह 'खुश हो गए उनके नाम भेजे गए।
भले ही वह पढ़ा रहे हों या फिर कालेज संचालकों के घरेलू सदस्य हों। खास बात यह है कि वित्तविहीन स्कूलों में भी ऐसे शिक्षक बहुतायत में हैं, जो शिक्षक बनने की अर्हता यानी एमए बीएड आदि उत्तीर्ण हैं, फिर भी उनकी सेवाओं की अनदेखी की गई।
वित्तविहीन शिक्षकों को मानदेय के रूप में करीब 18 से 20 हजार रुपए प्रतिमाह मिलने का प्रचार शिक्षक नेताओं ने किया था, लेकिन जो धन स्वीकृत हुआ है वह दिहाड़ी मजदूरों से भी काफी कम है। यही नहीं सरकार शिक्षामित्रों को प्रतिमाह सम्मानजनक मानदेय दे रही है, लेकिन वित्तविहीन की हालत उनसे भी बदतर हो गई है। इस प्रोत्साहन राशि से उनके घर का चूल्हा जलना दूर उनका माह भर तक जेब खर्च चल पाना मुश्किल होगा। प्रोत्साहन निर्धारण से एमएलसी उमेश द्विवेदी खासे नाराज हैं और वह इसे शिक्षकों का अपमान बता रहे हैं।
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