UPPCS : तुगलकी फरमान से अभ्यर्थी परेशान, नकल रोकने के नाम पर पीसीएस परीक्षा केंद्र निर्धारण में हुआ था बदलाव

इलाहाबाद1पीसीएस परीक्षा में नकल पर अंकुश लगाने के नाम पर उप्र लोक सेवा आयोग तुगलकी फरमान पर अमल कर रहा है। नकल रोकने के नाम पर परीक्षार्थियों को सुदूर जिले के परीक्षा केंद्र आवंटित करने का जो सिलसिला चार साल पहले शुरू हुआ, उसका क्या फायदा हुआ, यह तो आयोग ही जाने।
अलबत्ता परीक्षा केंद्र आवंटन के नाम पर पूरब से पश्चिम और पश्चिम से पूरब फेंके जाने वाले प्रतियोगी छात्र जरूर परेशान हो रहे हैं। उप्र लोकसेवा आयोग की परीक्षा का नियम कायदा समय-समय पर बदलता रहा है। वर्ष 2000 तक आयोग पीसीएस परीक्षा में अभ्यर्थियों से परीक्षा केंद्र का विकल्प मांगता रहा है। आम तौर पर जो अभ्यर्थी जहां का विकल्प देता था, उसे वहीं परीक्षा देने का मौका मिलता था। 2001 में व्यवस्था में बदलाव करके जिस अभ्यर्थी का मूल पता जहां का था उसके नजदीकी क्षेत्र में परीक्षा केंद्र मुहैया कराया गया। मसलन देवरिया के छात्र को गोरखपुर में और भदोही के अभ्यर्थी को वाराणसी में परीक्षा देने का मौका मिला। यह नियम करीब 12 वर्ष तक चला। 12012 में आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष अनिल कुमार यादव ने परीक्षा केंद्र निर्धारण की सारी सीमाएं तोड़ दीं। उन्होंने परीक्षा में नकल रोकने के नाम पर अभ्यर्थियों को मनमाने तरीके से परीक्षा केंद्र आवंटन शुरू किया। इस व्यवस्था में पूरब के अभ्यर्थी पश्चिम पहुंचे और पश्चिम के अभ्यर्थियों को पूरब में इम्तिहान देना पड़ा। 1चार साल से यह सिलसिला जारी है जिसका व्यापक विरोध हो रहा है, लेकिन आयोग नियम में बदलाव नहीं कर रहा है। अभ्यर्थियों का सवाल है कि क्या 2012 के पहले पीसीएस परीक्षा में नकल होती रही है, जो इस तरह के मनमाने कानून थोपे जा रहे हैं। अभ्यर्थियों को सुदूर छोटे जिलों तक में परीक्षा देने जाना पड़ रहा है। इसमें आने-जाने का व्यय होने के साथ ही वहां रात में ठहरने का भी इंतजाम करना पड़ता है। 1प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के मीडिया प्रभारी अवनीश पांडेय ने आयोग को यह भी सुझाव दिया कि वह फीस में 100 रुपये और बढ़ा दे और नकल रोकने के लिए सख्त तरीके अपनाए, लेकिन मनमाने तरीके से सुदूर जिलों में भेजने की व्यवस्था में बदलाव किया जाए। आयोग अध्यक्ष डॉ. अनिरुद्ध यादव ने 2017 में इस व्यवस्था में बदलाव करने का वादा किया था, लेकिन हालात ज्यों के त्यों हैं।
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