लखनऊ. सरकारी स्कूलों में टीचर बनने का सपना देखने वाले युवाओं के लिए अच्छी खबर है। सुप्रीम कोर्ट ने टीचर बनने के लिए बीएड के अलावा ग्रेजुएशन में 50 परसेंट नंबर लाने की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है।
देश के सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय शिक्षक प्रशिक्षण परिषद (एनसीटीई) से कहा है कि वह एक माह के अंदर नई अधिसूचना जारी करे, जिसमें बीएड कोर्स के लिए ग्रेजुएशन में 50 परसेंट नंबर की अनिवार्यता समाप्त की जाए। जस्टिस आदर्श गोयल और यू.यू. ललित की पीठ ने यूपी से जुड़े एक मामले में 25 जुलाई की नीरज कुमार राय तथा अन्य की याचिकाएं स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को यह आदेश दिया है। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी एसएलपी
नीरज कुमार राय और अन्य ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ एसएलपी दायर की थी। फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एनसीटीई की 29 मई 2011 की अधिसूचना को दी गई चुनौती को खारिज कर दिया था। एनसीटीई ने यह अधिसूचना आरटीई एक्ट, 2009 की धारा 23(1) के तहत जारी की थी। अधिसूचना में स्कूल में अध्यापक बनने के लिए अन्य योग्यताओं के अलावा स्नातक में 50 फीसदी अंकों की अनिवार्यता कर दी गई थी। जबकि इससे पूर्व 23 अगस्त 2010 में जारी अधिसूचना में यह अनिवार्यता उनके लिए आवश्यक नहीं रखी गई थी जिनके पास बीएड में दाखिला लेते समय में स्नातकोत्तर में 50 फीसदी अंक हैं।
50 परसेंट से कम नंबर वाले अभ्यर्थियों को मिलेगी राहत
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि स्नातकोत्तर में 50 फीसदी अंकों के आधार पर बीएड में दाखिला मिलने के कारण उन्हें नई अधिसूचना के अनुसार योग्य माना जाना चाहिए। लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता 29 जुलाई 2011 की अधिसूचना से कवर नहीं है इसलिए उन्हें कोई राहत नहीं दी जा सकती। यूपी सरकार ने इस अधिसूचना को आधार बनाते हुए स्नातक में 50 फीसदी अंक न लेने वालों को सेवा से हटा दिया था।
नौकरी से हटाए गए लोग रखें अपना पक्ष
कोर्ट ने यूपी के उन अभ्यर्थियों से कहा कि अंक प्रतिशत की अनिवार्यता के कारण नौकरी से हटा दिए गए लोग प्रशासन के समक्ष अपना केस रखें। यह फैसला भले ही यूपी के संदर्भ में आया है, लेकिन इसका फायदा पूरे देश के युवाओं को मिलेगा, क्योंकि यह फैसला पूरे देश के लिए हुआ है। प्रशासन एक माह के अंदर उनके मामलों पर कानून के अनुसार निर्णय लेगा।
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देश के सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय शिक्षक प्रशिक्षण परिषद (एनसीटीई) से कहा है कि वह एक माह के अंदर नई अधिसूचना जारी करे, जिसमें बीएड कोर्स के लिए ग्रेजुएशन में 50 परसेंट नंबर की अनिवार्यता समाप्त की जाए। जस्टिस आदर्श गोयल और यू.यू. ललित की पीठ ने यूपी से जुड़े एक मामले में 25 जुलाई की नीरज कुमार राय तथा अन्य की याचिकाएं स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को यह आदेश दिया है। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी एसएलपी
नीरज कुमार राय और अन्य ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ एसएलपी दायर की थी। फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एनसीटीई की 29 मई 2011 की अधिसूचना को दी गई चुनौती को खारिज कर दिया था। एनसीटीई ने यह अधिसूचना आरटीई एक्ट, 2009 की धारा 23(1) के तहत जारी की थी। अधिसूचना में स्कूल में अध्यापक बनने के लिए अन्य योग्यताओं के अलावा स्नातक में 50 फीसदी अंकों की अनिवार्यता कर दी गई थी। जबकि इससे पूर्व 23 अगस्त 2010 में जारी अधिसूचना में यह अनिवार्यता उनके लिए आवश्यक नहीं रखी गई थी जिनके पास बीएड में दाखिला लेते समय में स्नातकोत्तर में 50 फीसदी अंक हैं।
50 परसेंट से कम नंबर वाले अभ्यर्थियों को मिलेगी राहत
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि स्नातकोत्तर में 50 फीसदी अंकों के आधार पर बीएड में दाखिला मिलने के कारण उन्हें नई अधिसूचना के अनुसार योग्य माना जाना चाहिए। लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता 29 जुलाई 2011 की अधिसूचना से कवर नहीं है इसलिए उन्हें कोई राहत नहीं दी जा सकती। यूपी सरकार ने इस अधिसूचना को आधार बनाते हुए स्नातक में 50 फीसदी अंक न लेने वालों को सेवा से हटा दिया था।
नौकरी से हटाए गए लोग रखें अपना पक्ष
कोर्ट ने यूपी के उन अभ्यर्थियों से कहा कि अंक प्रतिशत की अनिवार्यता के कारण नौकरी से हटा दिए गए लोग प्रशासन के समक्ष अपना केस रखें। यह फैसला भले ही यूपी के संदर्भ में आया है, लेकिन इसका फायदा पूरे देश के युवाओं को मिलेगा, क्योंकि यह फैसला पूरे देश के लिए हुआ है। प्रशासन एक माह के अंदर उनके मामलों पर कानून के अनुसार निर्णय लेगा।
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