परिषदीय विद्यालयों में शिक्षा सत्र परिवर्तन के बाद 30
जून 2016 को रिटायर किए गए शिक्षकों को बकाया वेतन मिल सकेगा। इन शिक्षकों
को हाईकोर्ट के आदेश पर सत्र लाभ दिया गया था, मगर अवकाश प्राप्त होने के
बाद दुबारा सेवा में रखने के बीच का वेतन प्रदेश सरकार ने काम नहीं तो वेतन
नहीं के सिद्धांत पर रोक दिया था। अध्यापकों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल
कर कहा कि सत्र लाभ दिए जाने के कारण वह पूरे कार्यकाल का वेतन पाने के
हकदार हैं। कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए वेतन भुगतान का निर्देश दिया
है।
संत कबीर नगर के अध्यापक अंगद यादव
और अन्य की याचिकाओं पर न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल ने सुनवाई की। प्रदेश
सरकार ने दो मई 2017 को शासनादेश जारी कर रिटायर होने और सत्र लाभ देने के
बीच के समय का वेतन नहीं देने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने इस शासनादेश को
अवैधानिक मानते हुए इसे रद्द कर दिया है। याचिका में कहा गया कि प्रदेश
सरकार ने परिषदीय विद्यालयों का शिक्षा सत्र एक जुलाई से 30 जून तक से बदल
कर एक अप्रैल से 31 मार्च तक कर दिया। इसके फलस्वरूप 30 जून 2015 को रिटायर
होने वाले शिक्षकों को सत्र लाभ न देकर जबरदस्ती रिटायर कर दिया गया।
शिक्षकों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। कोर्ट ने सरकार के निर्णय को गलत मानते हुए गलत मानते हुए शिक्षकों को सत्र लाभ देने का आदेश दिया। इस आदेश के बाद शिक्षकों को 31 मार्च 2016 तक का सत्र लाभ दिया गया। याचिका में दलील दी गई कि याचीगण हमेशा काम करने करने के लिए तैयार थे। काम लेना सरकार की जिम्मेदारी है। इसलिए काम नहीं तो वेतन नहीं का सिद्धांत यहां लागू नहीं होता है। कोर्ट ने इसे सही मानते हुए बकाया वेतन भुगतान का आदेश दिया है।
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शिक्षकों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। कोर्ट ने सरकार के निर्णय को गलत मानते हुए गलत मानते हुए शिक्षकों को सत्र लाभ देने का आदेश दिया। इस आदेश के बाद शिक्षकों को 31 मार्च 2016 तक का सत्र लाभ दिया गया। याचिका में दलील दी गई कि याचीगण हमेशा काम करने करने के लिए तैयार थे। काम लेना सरकार की जिम्मेदारी है। इसलिए काम नहीं तो वेतन नहीं का सिद्धांत यहां लागू नहीं होता है। कोर्ट ने इसे सही मानते हुए बकाया वेतन भुगतान का आदेश दिया है।
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