इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्राथमिक स्कूलों में बीएड की फर्जी डिग्री से नियुक्त सहायक अध्यापकों, प्रधानाध्यापकों की बर्खास्तगी की कानूनी प्रक्रिया शुरू करने की छूट दी है, जबकि याचियों को नियमित वेतन भुगतान जारी रखने व उनके कार्य में हस्तक्षेप न करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि नियमानुसार की गई कार्यवाही पर यह निर्भर करेगा। कोर्ट ने सभी संबंधित जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को निर्देश दिया है कि मांगे जाने पर दस्तावेज याचियों को उपलब्ध कराएं। याचिका की अगली सुनवाई आठ जनवरी को होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने सहायक अध्यापक अजय कुमार व 50 अन्य की याचिका पर दिया है। इन सभी की याचिका में बीएसए की ओर से याचियों को जारी कारण बताओ नोटिस की वैधता को चुनौती दी गई है। नोटिस में कहा गया है कि फर्जी डिग्री से नौकरी पाने पर क्यों न बर्खास्त किया जाए। एसआइटी जांच में याचियों को 2004-05 में आगरा विवि से जारी बीएड डिग्री की फर्जी बताया है। याची के अधिवक्ता सत्येंद्र चंद्र त्रिपाठी का कहना है कि बीएसए की ओर से जारी नोटिस सेवा नियमावली के उपबंधों के विपरीत है। विवि ने डिग्री निरस्त नहीं की या वापस नहीं ली है और न ही डिग्री को फर्जी माना है। एसआइटी की रिपोर्ट पर पिछले एक दशक से कार्यरत अध्यापकों को बिना विभागीय जांच किए नहीं हटाया जा सकता। सेवा नियमावली के तहत ही अध्यापकों की सेवा समाप्त नहीं की जा सकती। कोर्ट ने राज्य सरकार व अन्य विपक्षियों से चार हफ्ते में याचिका पर जवाब मांगा है।
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कोर्ट ने कहा है कि नियमानुसार की गई कार्यवाही पर यह निर्भर करेगा। कोर्ट ने सभी संबंधित जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को निर्देश दिया है कि मांगे जाने पर दस्तावेज याचियों को उपलब्ध कराएं। याचिका की अगली सुनवाई आठ जनवरी को होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने सहायक अध्यापक अजय कुमार व 50 अन्य की याचिका पर दिया है। इन सभी की याचिका में बीएसए की ओर से याचियों को जारी कारण बताओ नोटिस की वैधता को चुनौती दी गई है। नोटिस में कहा गया है कि फर्जी डिग्री से नौकरी पाने पर क्यों न बर्खास्त किया जाए। एसआइटी जांच में याचियों को 2004-05 में आगरा विवि से जारी बीएड डिग्री की फर्जी बताया है। याची के अधिवक्ता सत्येंद्र चंद्र त्रिपाठी का कहना है कि बीएसए की ओर से जारी नोटिस सेवा नियमावली के उपबंधों के विपरीत है। विवि ने डिग्री निरस्त नहीं की या वापस नहीं ली है और न ही डिग्री को फर्जी माना है। एसआइटी की रिपोर्ट पर पिछले एक दशक से कार्यरत अध्यापकों को बिना विभागीय जांच किए नहीं हटाया जा सकता। सेवा नियमावली के तहत ही अध्यापकों की सेवा समाप्त नहीं की जा सकती। कोर्ट ने राज्य सरकार व अन्य विपक्षियों से चार हफ्ते में याचिका पर जवाब मांगा है।
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