इलाहाबाद : प्रशासनिक सेवाओं में काबिल अफसरों का चयन करके देने वाली परीक्षा संस्था उप्र लोकसेवा आयोग में धांधली के गंभीर आरोप और इसकी सीबीआइ जांच तक आने की नौबत पूरी निष्पक्षता से आयोग का संचालन करने वाले पूर्व अधिकारियों में जहां खलबली मची है।
चयन में गड़बड़ी होने के आरोपों से आयोग के सुनहरे अतीत पर चोट पहुंची है। वहीं, दूसरी ओर वह अफसर भी आहत हैं जिन्होंने अपनी कार्यशैली से समाज के बीच आयोग को बेहतरीन पहचान दी।
‘चुल्लू भर पानी में डूब के मर जाऊं’ : आयोग के चार साल तक अध्यक्ष रहे प्रो. केबी पांडेय ने भर्तियों की सीबीआइ जांच पर दुख जताया है। कहा कि विधानसभा से पारित हुए एक्ट का कहीं न कहीं उल्लंघन हुआ है, तभी प्रतियोगियों में बड़ा असंतोष है। यूपीपीएससी के एक्ट की मजबूती का हवाला देते हुए बताया कि इससे प्रभावित होकर कई राज्यों ने इस एक्ट की मांग की। इसी अनुसार दूसरे राज्यों में आयोगों के एक्ट बने। उन्होंने कहा कि 2001 में पीसीएस परीक्षा कराई थी। उसमें स्केलिंग पर सवाल उठाकर कुछ प्रतियोगी हाईकोर्ट चले गए थे। हाईकोर्ट ने आयोग को निर्देश दिया कि स्केलिंग में बदलाव कर रिजल्ट घोषित किया जाए। तब लगा कि यह तो मेरे लिए चुल्लू भर पानी में डूब मर जाने वाली बात है। फिलहाल हाईकोर्ट के इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्णय को रद कर दिया तब दिल को सुकून मिला। कहा कि हाईकोर्ट का निर्णय अगर सुप्रीम कोर्ट भी सही ठहरा देता तो मैंने सोच लिया था कि खुद को अक्षम मानते हुए इस्तीफा दे दूंगा, लेकिन भगवान ने लाज रख ली।
अवैध तरीके से भर्ती होंगे तो कैसे निभाएंगे दायित्व’ : यूपीपीएससी के पूर्व परीक्षा नियंत्रक और सचिव रह चुके बादल चटर्जी (सेवानिवृत्त आइएएस) कहते हैं कि पीसीएस के साक्षात्कार में एक जाति विशेष के प्रतियोगियों का अंक लगातार बूम कराना हर किसी के मन में संदेह पैदा करेगा। वही, असंतोष उन प्रतियोगियों के मन में भी हुआ जो चयन सूची में शामिल होने के लायक थे। मनमाने ढंग से तैयार रैंकिंग में भारी अंतर से लायक प्रतियोगी पीछे रह जाते हैं और निम्न योग्यता रखने वाले छात्रों को आगे बढ़ने का मौका मिल जाता है। प्रशासनिक अफसरों के पद पर लोग जब अवैध तरीके से आएंगे तो समाज के प्रति वे अपना दायित्व कैसे निभा सकते हैं। कहा कि सीबीआइ जांच में इसकी सच्चाई उजागर होनी आवश्यक है। उन्होंने यह भी कहा कि आयोग में जब सामान्य लोगों की नियुक्ति होगी तो समाज उससे उम्मीद भी क्या कर सकता है।
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चयन में गड़बड़ी होने के आरोपों से आयोग के सुनहरे अतीत पर चोट पहुंची है। वहीं, दूसरी ओर वह अफसर भी आहत हैं जिन्होंने अपनी कार्यशैली से समाज के बीच आयोग को बेहतरीन पहचान दी।
‘चुल्लू भर पानी में डूब के मर जाऊं’ : आयोग के चार साल तक अध्यक्ष रहे प्रो. केबी पांडेय ने भर्तियों की सीबीआइ जांच पर दुख जताया है। कहा कि विधानसभा से पारित हुए एक्ट का कहीं न कहीं उल्लंघन हुआ है, तभी प्रतियोगियों में बड़ा असंतोष है। यूपीपीएससी के एक्ट की मजबूती का हवाला देते हुए बताया कि इससे प्रभावित होकर कई राज्यों ने इस एक्ट की मांग की। इसी अनुसार दूसरे राज्यों में आयोगों के एक्ट बने। उन्होंने कहा कि 2001 में पीसीएस परीक्षा कराई थी। उसमें स्केलिंग पर सवाल उठाकर कुछ प्रतियोगी हाईकोर्ट चले गए थे। हाईकोर्ट ने आयोग को निर्देश दिया कि स्केलिंग में बदलाव कर रिजल्ट घोषित किया जाए। तब लगा कि यह तो मेरे लिए चुल्लू भर पानी में डूब मर जाने वाली बात है। फिलहाल हाईकोर्ट के इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्णय को रद कर दिया तब दिल को सुकून मिला। कहा कि हाईकोर्ट का निर्णय अगर सुप्रीम कोर्ट भी सही ठहरा देता तो मैंने सोच लिया था कि खुद को अक्षम मानते हुए इस्तीफा दे दूंगा, लेकिन भगवान ने लाज रख ली।
अवैध तरीके से भर्ती होंगे तो कैसे निभाएंगे दायित्व’ : यूपीपीएससी के पूर्व परीक्षा नियंत्रक और सचिव रह चुके बादल चटर्जी (सेवानिवृत्त आइएएस) कहते हैं कि पीसीएस के साक्षात्कार में एक जाति विशेष के प्रतियोगियों का अंक लगातार बूम कराना हर किसी के मन में संदेह पैदा करेगा। वही, असंतोष उन प्रतियोगियों के मन में भी हुआ जो चयन सूची में शामिल होने के लायक थे। मनमाने ढंग से तैयार रैंकिंग में भारी अंतर से लायक प्रतियोगी पीछे रह जाते हैं और निम्न योग्यता रखने वाले छात्रों को आगे बढ़ने का मौका मिल जाता है। प्रशासनिक अफसरों के पद पर लोग जब अवैध तरीके से आएंगे तो समाज के प्रति वे अपना दायित्व कैसे निभा सकते हैं। कहा कि सीबीआइ जांच में इसकी सच्चाई उजागर होनी आवश्यक है। उन्होंने यह भी कहा कि आयोग में जब सामान्य लोगों की नियुक्ति होगी तो समाज उससे उम्मीद भी क्या कर सकता है।
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