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उत्तर प्रदेश PSC के अध्यक्ष अनिल यादव के खिलाफ आगरा के चार थानों में आपराधिक मुकदमें

आयोग अध्यक्ष की नियुक्ति पर ही सवाल
तथ्य छिपाकर दावेदारी का आरोप, प्राचार्य की नियुक्ति को लेकर है विवाद
इलाहाबाद(ब्यूरो)। विवाद का पर्याय बन चुके उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष डॉ.अनिल यादव के चयन पर ही सवाल बना हुआ है। उन पर तथ्य छिपाकर इस पद के लिए दावेदारी का आरोप है तो कई आपराधिक मुकदमों में भी उनका नाम शामिल होने की बात आई है।
इस संबंध में पूछे गए आरटीआई का जवाब कई महीनों बाद भी आईजी आगरा और शासन की ओर से नहीं उपलब्ध कराया गया। चयन में इन्हें कई वरिष्ठ प्रोफेसर, आईएएस, आईपीएस अधिकारी, मेजर जनरल आदि पर वरीयता दी गई जबकि दावेदारों की सूची में इनका नाम सबसे नीचे था।
अभ्यर्थियों की ओर से हाईकोर्ट में इनके खिलाफ दायर जनहित याचिका में इन तथ्यों को आधार बनाते हुए चेयरमैन के पद से उन्हें हटाने तथा उनके कार्यकाल में की गई नियुक्तियों की जांच सीबीआई से कराने की मांग की गई थी। हालांकि कोर्ट ने उन्हें हटाए जाने की मांग पर हस्तक्षेप नहीं किया और सिर्फ जांच की मांग पर विचार करने के लिए आयोग से जवाब मांगा है।
बता दें, डॉ.अनिल यादव, मैनपुरी के चित्रगुप्त महाविद्यालय में बतौर प्रवक्ता नियुक्त हुए थे। बाद में वहीं प्राचार्य बनाए गए लेकिन हाईकोर्ट ने 2011 में उनकी इस तैनाती को रद कर दिया था। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट से उन्हें राहत भी मिल गई। डॉ.अनिल यादव के खिलाफ आगरा के चार थानों में आपराधिक मुकदमें हैं। इसमें गुंडा ऐक्ट भी शामिल है। प्रतियोगी अवनीश पांडेय की ओर सभी मुकदमों के बारे में आरटीआई के तहत आईजी और शासन से एक वर्ष पहले जानकारी मांगी गई थी। खास यह कि आईजी की ओर से उक्त चारों थानों को छोड़कर शेष थानों से जुड़ी जानकारी दी गई है कि वहां उनके खिलाफ कोई मुकदमा नहीं है। आरटीआईकर्ता अवनीश की ओर से दो बार फिर जानकारी मांगी गई लेकिन जवाब नहीं मिला। अब उन्होंने राज्य सूचना आयुक्त के पास अपील की है।
डॉ. अनिल यादव का बतौर सदस्य छह वर्ष का कार्यकाल नवंबर 2012 में पूरा हुआ। इसके चार महीने बाद दो अप्रैल 2013 को उन्हें बतौर अध्यक्ष तैनात कर दिया गया। इसके लिए कुल 83 दावेदारों की सूची में डॉ.अनिल आखिरी नंबर पर थे। इनमें कई की प्रोफाइल काफी मजबूत थी लेकिन सब पर उन्हें प्राथमिकता दी गई। डॉ.अनिल पर सदस्य रहते हुए चिकित्साधिकी पद पर भर्ती में एक महिला अभ्यर्थी को लाभ पहुंचाने का भी आरोप है। उक्त अभ्यर्थी को महिला आरक्षण का लाभ दिया गया, जबकि वह उत्तर प्रदेश की निवासी नहीं थीं। उन्होंने फार्म में पंजाब का पता दिया था।
कई आपराधिक मुकदमों के संबंध में भी नहीं मिला आरटीआई का जवाब
चयन में कई वरिष्ठ प्रोफेसर और आईएएस अफसरों पर दी गई वरीयता

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