लखनऊ : डॉक्टर साहब...जरा पानी पिला दीजिए...हो सकता है कुछ दिन बाद सचिवालय में अफसर और मंत्रियों के केबिन से ऐसी ही आवाजें सुनने को मिलें। और ऐसा हो भी क्यों ना, हजारों पीएचडी धारकों को उनके स्तर की नौकरी सरकार दिला नहीं पा रही। विश्वविद्यालय से लेकर महाविद्यालय तक में हजारों पद खाली हैं, फिर भी कई साल से विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, सरकारी स्कूल और एडेड इंटर कॉलेजों में नए पद क्रिएट नहीं हुए।
कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर मिलने वाली नौकरियों में वेतन इतना कम है कि युवा चपरासी बनने को ही मजबूर हैं।
सुपात्र सदस्यों के न होने से हो रही गड़बड़ी
लुआक्टा के पूर्व अध्यक्ष डॉ़ मौलिंदु मिश्र के मुताबिक शिक्षकों के इतने पद रिक्त होने की वजह आयोग में सुपात्र सदस्यों का न होना है। वे बिना जानकारी के पद विज्ञापित करते हैं। इसकी वजह से भर्ती प्रक्रिया बाधित हो जाती है। अब डिग्री कॉलेजों में शिक्षकों की योग्यता ग्रैजुएशन में सेकंड डिविजन कर दी गई। कानपुर विश्वविद्यालय में 45 फीसदी पर सेकंड डिवीजन होता है और लखनऊ विश्वविद्यालय में 48 फीसदी पर। जब आयोग के सदस्यों को इस तरह की जानकारी नहीं होगी और वह इसे देखकर पद विज्ञापित नहीं करेंगे तो भर्तियां फंसेंगी ही। अगर सही सदस्य हों और वह पूरी जानकारी के साथ पदों का विज्ञापन निकालें तो इसका लाभ युवाओं को मिलेगा।
इन भर्तियों पर लटकी है तलवार•दारोगा-सिपाही भर्ती का परिणाम और नियुक्ति पर
न्यायालय द्वारा रोक।•कृषि अधिकारी के अंतिम परिणाम पर हाई कोर्ट ने लगाई रोक।•उच्च स्तरीय सेवा आयोग के सदस्य की नियुक्ति अवैध होने की वजह से सभी नियुक्ति रुकी।
न्यायालय द्वारा रोक।•कृषि अधिकारी के अंतिम परिणाम पर हाई कोर्ट ने लगाई रोक।•उच्च स्तरीय सेवा आयोग के सदस्य की नियुक्ति अवैध होने की वजह से सभी नियुक्ति रुकी।
•ग्राम पंचायत अधिकारी के चयन प्रक्रिया पर रोक।
जरूरतें बढ़ीं, पद नहीं
केवल माध्यमिक विद्यालयों में ही देखा जाए तो यहां की जरूरतों में तो लगातार इजाफा होता रहा, लेकिन स्थाई पदों की व्यवस्था उनके लिए नहीं की गई। कंप्यूटर टीचर्स और गेम्स टीचर्स को इसी श्रेणी में रखा जा सकता है। तमाम विद्यालयों में इनकी जगह नहीं है, जबकि स्पोर्ट्स को अनिवार्य किया जा चुका है। कम्प्यूटर सब्जेक्ट भी अब हर स्कूल में पढ़ाया जाता है।
माध्यमिक स्कूलों (राजकीय और अनुदानित) में 2012 के बाद से प्रवक्ताओं की भर्ती नहीं हुई। जो हुई भी उन पर विवाद रहा। एक पढ़ा-लिखा गरीब व्यक्ति नौकरी के लिए ही भटकता है। ऐसे में उसे चपरासी बनने में भी गुरेज नहीं होता।
-डॉ़ आरपी मिश्र, प्रदेशीय मंत्री, माध्यमिक शिक्षक संघ
एलयू में शिक्षकों के 200 पद खाली हैं। कॉन्ट्रैक्ट पर रखे जाने वाले शिक्षकों की तनख्वाह चपरासी से भी कम होती है। नौकरी पर संशय भी बना रहता है। चपरासी की तनख्वाह भी ज्यादा होती है। ऐसे में अपने स्टेटस की नौकरी के लिए पीएचडी स्कॉलर्स इंतजार नहीं कर रहे। - प्रफेसर मनोज दीक्षित, लखनऊ विश्वविद्यालय
2012 के बाद से प्रदेश सरकार ने कई बार बड़े पैमाने पर भर्ती खोली लेकिन एक बार भी यह प्रक्रिया नियुक्ति तक नहीं पहुंच पाई। केंद्र सरकार ने शिक्षा का अधिकार (आरटीई) भी लागू किया, फिर भी हाल वही रहा। प्रदेश में उसके मानकों के अनुसार शिक्षकों की भर्ती नहीं हुई। यही हाल महाविद्यालय और विश्वविद्यालयों का है। यहां भी शिक्षकों के अभाव में पढ़ाई चौपट हो रही है। विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में कई साल पहले जो पद सृजित हुए, वही नहीं भरे जा पा रहे हैं। ऐसे में बढ़ी जरूरतों के मुताबिक नए पदों के सृजन पर तो बात करना भी बेमानी सा लगता है।
70000
368
255
6000
चपरासी के पदों के लिए सचिवालय में निकली है भर्ती
पीएचडीधारकों ने चपरासी के लिए किया आवेदन
शिक्षक कम हैं राजकीय व अनुदानित माध्यमिक स्कूलों में
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चपरासी के पदों के लिए सचिवालय में निकली है भर्ती
पीएचडीधारकों ने चपरासी के लिए किया आवेदन
शिक्षक कम हैं राजकीय व अनुदानित माध्यमिक स्कूलों में
से ज्यादा शिक्षक के पद खाली हैं यूपी के विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों में
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