कल यानि दिनांक ९ अक्टूबर को नयी शिक्षा नीति के ऊपर मुख्य शिक्षा अधिकारी
के निमंत्रण पर एक गोष्ठी में गया था. उस गोष्ठी में भारत सरकार से नयी
शिक्षा नीति के ऊपर आई थीम में दी गयी
प्रश्नावली के ऊपर जनप्रतिनिधियों व शिक्षा जगत से जुड़े लोगों/विशेषज्ञों से राय सुमारी/सुझाव मांगे जाने की बात कही गयी है. इस १२ पेज की प्रश्नावली में करीब १४० प्रश्न हैं जो नेट में भी इस पते survey.mygov.in पर उपलब्ध हैं.
पर ताज़्ज़ुब वाली बात यह है कि सरकारी प्रार्थमिक व माध्यमिक विधालय जो हमारे राज्य उत्तराखंड और पूरे देश में गुणवत्ता शिक्षा में आई भारी गिरावट के कारण छात्र -शून्य हो रहे हैं क्यूंकि बड़ी तादाद में छात्र वहां से निजी विद्यालओं को पलायन कर रहे है, जैसी सरकारी शिक्षा क्षेत्र की विकराल समस्या/संकट के ऊपर एक भी प्रश्न, प्रश्नावली में नहीं है. अभी ज्यादा समय नहीं बीता कि किस तरह इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस विषय पर उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगा कर तल्ख़ टिप्पणी की थी और दुर्दशा सुधारने के लिए अधिकारियों को अपने बच्चे सरकारी विद्यालयों में पढ़ाने की हिदायत दी. परन्तु हम नहीं चेतेंगे.
अब सवाल यह उठता है कि जब असली समस्या के ऊपर विचार ही नहीं होना है तो नयी शिक्षा नीति क्या खाक बनेगी. जिस तेज़ी से सरकारी स्कूल खाली हो रहे हैं, उसको बिना रोके हुए नयी शिक्षा नीति किसके लिए? केवल अध्यापकों के लिए या भारी भरकम शिक्षा महकमे के लिए. उत्तराखंड का हाल तो फिलवक्त यही है. जहाँ तक उत्तरकाशी जनपद की बात है इसके ऑफिसियल आंकड़े बताते हैं कि प्रति वर्ष करीब ५००० छात्र सरकारी से निजी विद्यालओं की ओर रुख करते हैं.
खाली होते सरकारी विद्यालयों की असल जड़ मे जब तक जायेंगे नहीं, यहाँ हालत नहीं सुधरने वाले हैं. बजाय इसने पहाड़ की ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था को ही चौपट कर दिया है. जब अपने पाल्यों को लोग निजी विद्यालयों में पढ़ा रहे हैं तो उनकी देखरेख के लिए माताएं भी गावं छोड़ कर साथ चल दी है जिस कारण घर, खेती और पशुपालन भी चौपट हो गया है और गावं बंजर हो कर उजड़ रहे हैं.
मैंने तो एक ही सुझाव दिया कि इस समस्या का समाधान केवल आवासीय विद्यालय हो सकते हैं. १० ग्राम पंचायत का एक क्लस्टर बना कर कक्षा ०१ से १२ तक एक आवासीय विद्यालय बनवाएं जिसमे छात्रों के लिए हॉस्टल और अध्यापकों के लिए आवास हों. सफ्ताहांत में शनिवार और इतवार को बच्चों को घर जाने की अनुमति हो. हर ग्रामपंचायत के वर्तमान विद्यालय भवनो को आंगनवाड़ी केन्द्रो को दिया जाय जहाँ वे बच्चों को पुष्टाहार के साथ अक्षर ज्ञान भी सिखाएं जिससे बचे कक्षा १ के लिए तैयार हो सके. सभी अधिकारियों और प्रतिनिधियों के लिए अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाना अनिवार्य करें. कैसे हालत नहीं सुधरते हैं. इस विषय पर आप सभी मित्रों की राय का स्वागत है.
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
प्रश्नावली के ऊपर जनप्रतिनिधियों व शिक्षा जगत से जुड़े लोगों/विशेषज्ञों से राय सुमारी/सुझाव मांगे जाने की बात कही गयी है. इस १२ पेज की प्रश्नावली में करीब १४० प्रश्न हैं जो नेट में भी इस पते survey.mygov.in पर उपलब्ध हैं.
पर ताज़्ज़ुब वाली बात यह है कि सरकारी प्रार्थमिक व माध्यमिक विधालय जो हमारे राज्य उत्तराखंड और पूरे देश में गुणवत्ता शिक्षा में आई भारी गिरावट के कारण छात्र -शून्य हो रहे हैं क्यूंकि बड़ी तादाद में छात्र वहां से निजी विद्यालओं को पलायन कर रहे है, जैसी सरकारी शिक्षा क्षेत्र की विकराल समस्या/संकट के ऊपर एक भी प्रश्न, प्रश्नावली में नहीं है. अभी ज्यादा समय नहीं बीता कि किस तरह इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस विषय पर उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगा कर तल्ख़ टिप्पणी की थी और दुर्दशा सुधारने के लिए अधिकारियों को अपने बच्चे सरकारी विद्यालयों में पढ़ाने की हिदायत दी. परन्तु हम नहीं चेतेंगे.
अब सवाल यह उठता है कि जब असली समस्या के ऊपर विचार ही नहीं होना है तो नयी शिक्षा नीति क्या खाक बनेगी. जिस तेज़ी से सरकारी स्कूल खाली हो रहे हैं, उसको बिना रोके हुए नयी शिक्षा नीति किसके लिए? केवल अध्यापकों के लिए या भारी भरकम शिक्षा महकमे के लिए. उत्तराखंड का हाल तो फिलवक्त यही है. जहाँ तक उत्तरकाशी जनपद की बात है इसके ऑफिसियल आंकड़े बताते हैं कि प्रति वर्ष करीब ५००० छात्र सरकारी से निजी विद्यालओं की ओर रुख करते हैं.
खाली होते सरकारी विद्यालयों की असल जड़ मे जब तक जायेंगे नहीं, यहाँ हालत नहीं सुधरने वाले हैं. बजाय इसने पहाड़ की ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था को ही चौपट कर दिया है. जब अपने पाल्यों को लोग निजी विद्यालयों में पढ़ा रहे हैं तो उनकी देखरेख के लिए माताएं भी गावं छोड़ कर साथ चल दी है जिस कारण घर, खेती और पशुपालन भी चौपट हो गया है और गावं बंजर हो कर उजड़ रहे हैं.
मैंने तो एक ही सुझाव दिया कि इस समस्या का समाधान केवल आवासीय विद्यालय हो सकते हैं. १० ग्राम पंचायत का एक क्लस्टर बना कर कक्षा ०१ से १२ तक एक आवासीय विद्यालय बनवाएं जिसमे छात्रों के लिए हॉस्टल और अध्यापकों के लिए आवास हों. सफ्ताहांत में शनिवार और इतवार को बच्चों को घर जाने की अनुमति हो. हर ग्रामपंचायत के वर्तमान विद्यालय भवनो को आंगनवाड़ी केन्द्रो को दिया जाय जहाँ वे बच्चों को पुष्टाहार के साथ अक्षर ज्ञान भी सिखाएं जिससे बचे कक्षा १ के लिए तैयार हो सके. सभी अधिकारियों और प्रतिनिधियों के लिए अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाना अनिवार्य करें. कैसे हालत नहीं सुधरते हैं. इस विषय पर आप सभी मित्रों की राय का स्वागत है.
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC