जैसा कि आपको मीडिया और मुख्यतः हमारे विधिक सलाहकार डीपी सिंह की पोस्ट से पता ही चल गया होगा कि माननीय उच्चत्तम न्यायालय ने न्यायमूर्तियों
की नियुक्तियों मे जो सरकार द्वारा दोनों संसदों से पारित कराया गया
विधेयक था जिसका मूल उद्देश्य था
कि नियुक्तियां पूर्व की भाँती पूरी तरह से कोलेजियम से न होकर सरकार की सहभागिता के साथ हो उसे 5 जजों की अध्यक्षता वाली पीठ ने असंवैधानिक ठहराया है ।
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
कि नियुक्तियां पूर्व की भाँती पूरी तरह से कोलेजियम से न होकर सरकार की सहभागिता के साथ हो उसे 5 जजों की अध्यक्षता वाली पीठ ने असंवैधानिक ठहराया है ।
क्या शिक्षा मित्रों के नेता अब भी पूर्व की भाँती संसद से शिक्षा के
अधिकार अधिनियम 2009 में संशोधन कराकर (अतिशयोक्ति है) फिर माननीय उच्चत्तम
न्यायालय की कम से कम 5 जजों की अध्यक्षता वाली पीठ गठित कराकर (क्योंकि 3
जजों की पीठ क्वालिटी टीचर के लिए अपना फैसला आलरेडी दे चुकी है) आरटीई
एक्ट 2009 में संशोधन करा पाएंगे और उससे भी बढ़कर 7 जजों की पीठ गठित कराकर
कर्नाटक राज्य बनाम उमा देवी को चैलेंज करके संविदा कर्मियों के लिए अलग
से नजीर बनवायेंगे जबकि ये बहुत अच्छे से जान लीजिये "irregular
appointments can be regularise if and only i they are according to rule
but illegal appointments cant be regularise as their appointmnets was
not according to law and remember they cant ever be legalise accrding to
several SCC's".
बरहाल आज केशवानंद भारती और गोलखनाथ केस याद आ गए एक बार फिर और उनका सार है "विधायिका संविधान के मूल ढाँचे से खिलवाड़ नहीं कर सकती है क्योंकि आम जनता को देखकर ही संविधान के मूल ढाँचे को बनाया गया है नाकि विधायिका को देखकर" ।
बरहाल देखा जाए तो जिस प्रकार इंदिरा गांधी के मुंह पर तमाचा मारा था न्यायपालिका ने आज कहने में गुरेज नहीं बीजेपी की नीति का भी बहिष्कार न्यायपालिका कर चुकी है ।
"Judiciary is not like a puppet in the hands of government"
इंदिरा को प्रीवी-पर्स जैसे मुद्दों पर मात खानी पड़ी थी ।
न्यायपालिका को कई सत्ताओं ने हाथ में लेना चाहा पर काफी हद तक आज भी आम जनता जहाँ आम पब्लिक का मुद्दा हो वहां विधायिकाएं हारती ही हैं।
जिस दिन न्यायपालिका सत्ता के हाथ में पहुँच गयी ध्यान रखना लोकतंत्र का अंत होगा ।
सत्य सर्वदा जयते
धन्यवाद
आपका
हिमांशु राणा
टीईटी 2011 उत्तीर्ण संघर्ष मोर्चा , उत्तर प्रदेश 9927035996
बरहाल आज केशवानंद भारती और गोलखनाथ केस याद आ गए एक बार फिर और उनका सार है "विधायिका संविधान के मूल ढाँचे से खिलवाड़ नहीं कर सकती है क्योंकि आम जनता को देखकर ही संविधान के मूल ढाँचे को बनाया गया है नाकि विधायिका को देखकर" ।
बरहाल देखा जाए तो जिस प्रकार इंदिरा गांधी के मुंह पर तमाचा मारा था न्यायपालिका ने आज कहने में गुरेज नहीं बीजेपी की नीति का भी बहिष्कार न्यायपालिका कर चुकी है ।
"Judiciary is not like a puppet in the hands of government"
इंदिरा को प्रीवी-पर्स जैसे मुद्दों पर मात खानी पड़ी थी ।
न्यायपालिका को कई सत्ताओं ने हाथ में लेना चाहा पर काफी हद तक आज भी आम जनता जहाँ आम पब्लिक का मुद्दा हो वहां विधायिकाएं हारती ही हैं।
जिस दिन न्यायपालिका सत्ता के हाथ में पहुँच गयी ध्यान रखना लोकतंत्र का अंत होगा ।
सत्य सर्वदा जयते
धन्यवाद
आपका
हिमांशु राणा
टीईटी 2011 उत्तीर्ण संघर्ष मोर्चा , उत्तर प्रदेश 9927035996
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