इलाहाबाद सदस्यों और अधिकारियों से खाली हो चुके उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग की दबी
फाइलों में भर्तियों के भ्रष्टाचार से जुड़ा एक मामला भी दब कर रह गया है।
यह मामला असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती परीक्षा से जुड़ा हुआ है और यह तभी
सामने आ सकता है जबकि आयोग का नए सिरे से गठन हो और पूरी ईमानदारी से
अभ्यर्थियों की कापियों का परीक्षण किया जाए।
इसमें आयोग के कुछ सदस्य और अधिकारी भी फंस सकते हैं।
उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग का यह दुर्भाग्य ही है कि वहां छह साल तक तो कोई नियुक्ति की ही नहीं जा सकी और जब किसी तरह 1652 पदों के लिए परीक्षा हुई भी तो सदस्यों की अवैध नियुक्ति के मामले सामने आ गए। इस बात की सुगबुगाहट परीक्षा के दौरान ही थी कि आयोग में भीतर ही भीतर कुछ गड़बड़ चल रहा है, लेकिन क्या हो रहा है, इसकी भनक किसी को नहीं लग सकी। आयोग ने इस भर्ती के लिए पहली बार कोई लिखित परीक्षा कराई थी, इसलिए तमाम अनियमितताएं भी सामने आईं। 46 विषयों के लिए चार चरणों में हुई इस परीक्षा में कई सवालों के उत्तर भी गलत पाए गए। आयोग में आपत्तियों की भरमार लग गई लेकिन अधिकारी प्रक्रिया आगे बढ़ाते रहे। यह तब हुआ जबकि आयोग एक कार्यवाहक अध्यक्ष के हवाले था।
भर्तियों में भ्रष्टाचार की आशंकाओं को तब बल मिला जब कार्यवाहक अध्यक्ष डा.रामवीर सिंह यादव की नियुक्ति पर ही सवाल खड़े हो गए। उनके स्थान पर राज्य सरकार ने पूर्व आइएएस लाल बिहारी पांडेय को नया अध्यक्ष बनाकर आयोग में भेजा। असिस्टेंट प्रोफेसर पद की परीक्षा के संबंध में उन्हें भी तमाम शिकायतें मिलीं जिसमें सबसे प्रमुख यह था कि इसमें कुछ सदस्यों और अधिकारियों के रिश्तेदार और भाई-भतीजे शामिल हुए हैं। भ्रष्टाचार के छींटे कहीं उन तक न पहुंचे, इसे देखते हुए उन्होंने सारे अभ्यर्थियों की ओएमआर शीट का स्कैन कराया। इसमें पहली ही निगाह में सब कुछ साफ नजर आने लगा। सूत्रों के अनुसार इस परीक्षा में लगभग दो सौ ओएमआर शीट पर अभ्यर्थियों ने पूरे सवाल का जवाब न देकर उन्हें सादा छोड़ दिया था। लगभग साठ शीट तो ऐसी मिलीं जिन पर एक भी सवाल हल नहीं थे। माना जा रहा है कि ये आयोग से जुड़े कुछ लोगों के रिश्तेदारों के ही थे। सूत्रों के अनुसार इन स्कैन कापियों की प्रतियां अध्यक्ष ने अपने पास सुरक्षित रखा ली थीं।
इसको लेकर विवाद तूल पकड़ता कि उसी बीच अध्यक्ष लाल बिहारी पांडेय की नियुक्ति भी अवैध साबित हो गई और तीन सदस्यों को भी आयोग से हटना पड़ा। इसके बाद से ही ओएमआर शीट की सच दफन है। आयोग के सचिव की नियुक्ति को लेकर भी सवाल खड़े हुए हैं। ऐसे में भर्तियों का जिन्न तभी सामने आ सकता है जबकि शासन गंभीरता से इसकी जांच कराए।
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इसमें आयोग के कुछ सदस्य और अधिकारी भी फंस सकते हैं।
उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग का यह दुर्भाग्य ही है कि वहां छह साल तक तो कोई नियुक्ति की ही नहीं जा सकी और जब किसी तरह 1652 पदों के लिए परीक्षा हुई भी तो सदस्यों की अवैध नियुक्ति के मामले सामने आ गए। इस बात की सुगबुगाहट परीक्षा के दौरान ही थी कि आयोग में भीतर ही भीतर कुछ गड़बड़ चल रहा है, लेकिन क्या हो रहा है, इसकी भनक किसी को नहीं लग सकी। आयोग ने इस भर्ती के लिए पहली बार कोई लिखित परीक्षा कराई थी, इसलिए तमाम अनियमितताएं भी सामने आईं। 46 विषयों के लिए चार चरणों में हुई इस परीक्षा में कई सवालों के उत्तर भी गलत पाए गए। आयोग में आपत्तियों की भरमार लग गई लेकिन अधिकारी प्रक्रिया आगे बढ़ाते रहे। यह तब हुआ जबकि आयोग एक कार्यवाहक अध्यक्ष के हवाले था।
भर्तियों में भ्रष्टाचार की आशंकाओं को तब बल मिला जब कार्यवाहक अध्यक्ष डा.रामवीर सिंह यादव की नियुक्ति पर ही सवाल खड़े हो गए। उनके स्थान पर राज्य सरकार ने पूर्व आइएएस लाल बिहारी पांडेय को नया अध्यक्ष बनाकर आयोग में भेजा। असिस्टेंट प्रोफेसर पद की परीक्षा के संबंध में उन्हें भी तमाम शिकायतें मिलीं जिसमें सबसे प्रमुख यह था कि इसमें कुछ सदस्यों और अधिकारियों के रिश्तेदार और भाई-भतीजे शामिल हुए हैं। भ्रष्टाचार के छींटे कहीं उन तक न पहुंचे, इसे देखते हुए उन्होंने सारे अभ्यर्थियों की ओएमआर शीट का स्कैन कराया। इसमें पहली ही निगाह में सब कुछ साफ नजर आने लगा। सूत्रों के अनुसार इस परीक्षा में लगभग दो सौ ओएमआर शीट पर अभ्यर्थियों ने पूरे सवाल का जवाब न देकर उन्हें सादा छोड़ दिया था। लगभग साठ शीट तो ऐसी मिलीं जिन पर एक भी सवाल हल नहीं थे। माना जा रहा है कि ये आयोग से जुड़े कुछ लोगों के रिश्तेदारों के ही थे। सूत्रों के अनुसार इन स्कैन कापियों की प्रतियां अध्यक्ष ने अपने पास सुरक्षित रखा ली थीं।
इसको लेकर विवाद तूल पकड़ता कि उसी बीच अध्यक्ष लाल बिहारी पांडेय की नियुक्ति भी अवैध साबित हो गई और तीन सदस्यों को भी आयोग से हटना पड़ा। इसके बाद से ही ओएमआर शीट की सच दफन है। आयोग के सचिव की नियुक्ति को लेकर भी सवाल खड़े हुए हैं। ऐसे में भर्तियों का जिन्न तभी सामने आ सकता है जबकि शासन गंभीरता से इसकी जांच कराए।
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