होली आई रे..मुझे इस दिन का इंतजार रहता है : प्रशिक्षु शिक्षक : 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Latest News

होली के त्योहार का आनंद तीन से चार दशक पहले कुछ और ही था। मुझे याद है कि जब हमलोग लकड़ी के बांस से पिचकारी बनाते थे। खूब मस्ती होती थी। बच्चे कीचड़, गाय-भैंस के गोबर से होली खेलते थे। एक-दूसरे पर गंदा पानी डालते थे। सुबह बीतने के साथ जब दोपहर आती तो महिलाएं रस्सी के कोलड़े से मारती थीं
और मर्द अपना बचाव करते थे। इन परंपरागत होली के बीच अलग किस्म की मस्ती और उल्लास होता था। गांव की होली में गुजिया से अधिक मीठे गुलगुले का स्वाद भाता था, जो गुड़ और आटे से बनता था।
होली के दिन सुबह से लेकर शाम तक लोग परिवार, दोस्त और आसपड़ोस के लोगों के साथ रंग और गुलाल खेलने में रम जाते थे। शाम को दंगल और कई प्रकार के खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन भी होता था, जिसे देखकर लोग खूब आनंद लेते थे। पहले और आज की होली में काफी परिवर्तन आ गया है। इसे आज के संदर्भ में शहरी और ग्रामीण परिवेश के परिपेक्ष में भी देखा जा सकता है। मौजूदा समय में शहर की भागम भाग और काम के दबाव के बीच मस्ती के साथ होली खेलना तो दूर लोग औपचारिकताएं भी पूरी नहीं कर पाते हैं, दिखावा भी अधिक है। -चन्दर प्रकाश शर्मा, रानी बाग
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होली रंगों और प्रसन्नता से भरा सौहा‌र्द्र का पर्व है। इसमें लोग खुशियां बांटते हुए सभी आयु वर्ग के लोगों के साथ हर्ष और उल्लास के साथ रंगो के इस त्योहार को मनाते हैं। उत्तराखंड में यह त्योहार गढ़वाल एवं कुमाऊं में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। एक सप्ताह पूर्व घर-घर जाकर लोग होली के गीत गाते हैं। मिठाइयां बांटते हैं। एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। संगीत के बीच होली का अपना ही आंनद होता है।
आई बसन्त बहार बागों में फूल खिले हैं, फूल खिले हैं..रंग-बिरंगे बसन्त की शोभा न्यारी बागों में फूल खिले हैं.. यह गाना वसन्त ऋतु पर है, जिसे लोग गाते हैं। इस मौके पर होलिका दहन का गाना भक्त प्रहलाद पर बनाया जाता है, जिसे लोग होली गीत कह कर गाते हैं। अब धीरे-धीरे शहरों में यह त्योहार मनाने का ढंग बिगड गया है। हम सबको इस त्योहार को बड़े सादगी से मनाना चाहिए। किसान की फसल पकने को होती है और वह खुशियों से झूमता है। लेकिन अब किसान के साथ प्रकृति और मनुष्य की प्रवृत्ति विपरीत हो रही है। मेरी यही आशा है कि सभी की होली मंगलमय हो। -रामप्रसाद भदूला, अध्यक्ष, उत्तराखंड समाज, शालीमार बाग
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बचपन की होली यादगार और अविस्मरणीय है। उस समय रंगों में सराबोर होकर टोलियां निकलती थीं। होलिका दहन के बाद दुल्हैंडी तक एक-दूसरे को जी भर के रंग लगाते थे। किसी को बुरा लगे या भला, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। यदि कोई रंग लगाने से मना करता था, तब उसे प्यार से समझाकर रंग लगाते थे। किसी भी सूरत में लोगों का चेहरा खाली नहीं छोड़ते। हालांकि, बड़े होने के बाद शिक्षारत और अध्यापनरत होने के कारण ज्यादा समय नहीं मिलने से फाल्गुन मास की मस्ती से वंचित रहता हूं। होली हेमन्त या पतझड़ के अंत का और वसन्त की प्रेममय लीलाओं का द्योतक है। इस मौके पर मस्ती भरे गाने, नृत्य एवं संगीत वसन्तागमन के उल्लासपूर्ण क्षणों के परिचायक हैं। वसन्त के आनंद की अभिव्यक्ति रंगीन जल और लाल रंग, अबीर-गुलाल के पारस्परिक आदान-प्रदान से प्रकट होती है। होली के दिन परिजनों, सहचरों और मित्रों के साथ उन्मुक्त होकर रंगोत्सव का आनंद प्राप्त करता हूं। यह मुझे बहुत प्रिय है। -जयदेव द्विवेदी, शिक्षक
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होली के दिन परिवार और कुटुंबजनों के साथ पांरपरिक पूजा करने के बाद रंग, उमंग और गुलाल के मिश्रण से भरपूर आनंद मिलता है। यह एक ऐसा त्योहार है, जब सभी लोग एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं और सदभाव बढ़ता है। हमारी संस्कृति में त्योहारों एवं उत्सवों का आदि काल से ही काफी महत्व रहा है। सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां पर मनाए जाने वाले सभी त्योहार समाज में मानवीय गुणों को स्थापित करके लोगों में प्रेम, एकता एवं सदभावना को बढ़ाते हैं। भारत में त्योहारों एवं उत्सवों का संबंध किसी जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र से न होकर समभाव से है। भारत में मनाए जाने वाले त्योहारों एवं उत्सवों में सभी धर्मो के लोग आदर के साथ मिलजुल कर मनाते हैं और मुझे इस दिन का इंतजार रहता है। -शुभम वशिष्ट, प्रशिक्षु शिक्षक
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