जूनियर भर्ती और उसके कोर्ट केस को लेकर चर्चा : 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Latest News

काफी समय से जूनियर भर्ती और उसके कोर्ट केस को लेकर सोशल मीडिया में खूब चर्चा हो रही है, जूनियर भर्ती के विरोध में कुछ ऐसे तत्व है जो २०१३ से इसे ख़त्म करने का सपना देख रहे हैं हद तो अब इतनी हो गयी
कि उनको दिन में जूनियर भर्ती और उनके अध्यापको के द्वारा पिछले ६ महीने में अपने अपने विद्यालयों में किये गए विभिन्न शैक्षणिक कार्यों/गतिविधियों के सपने आने लगे, २०११ से अभी तक स्वयम और अपने साथियों की नौकरी लगवाने में अक्षम ऐसे लोग जिन्होंने अपने साथियों तक के आंसुओं को नहीं बख्शा, जिनसे आर्थिक और मानसिक मदद लेकर आगे बढे, उन्ही के सर को काटा और अभी तक काटने का पूरा प्रयास कर रहे हैं, अपने आधार को पूरी तरह खो चुके ऐसे लोग अपने कुछ साथियों के साथ कोर्ट के केस की पैरवी के लिए आय का ऐसा साधन बना रहे हैं
Sponsored links : जिसका जूनियर भर्ती के सन्दर्भ में में १% भी औचित्य नहीं है. जूनियर साथियों को पिछले ६ महीने से व्यवस्थित तरीके से अपने विद्यालयों में शिक्षण कार्य करते के साथ अधिकतर शिक्षको को अपने से अधिक वेतन आहरित करते देखते हुए उनकी मानसिक हताशा उच्चतम स्तर पहुँच चुकी है, इसी हताशा में ऐसे लोगों ने इतनी सुन्दर, भावात्मक, कलात्मक और तकनीकी, पोस्ट सोशल मीडिया पर डालनी शुरू कर दी है और अकारण भय का माहौल बनाना शुरू कर दिया है..एक बात मैं भी जोड़ दूँ ये कोई india-Ausrtalia का क्रिकेट मैच नहीं है कि ऑस्ट्रेलिया की तर्ज़ पर mind गेम खेलकर मैच जीत लेंगे. ये भारतीय न्यायपालिका है जिसके न्याय का स्रोत social norms, traditions, customs and usage तथा Commentaries है साथ ही न्यायालय को अपने पुरुनिरीक्षण का भी अधिकार है. जूनियर विरोधी व्यक्ति स्वयम के दामन में लगे हुए दाग को स्वच्छ और पारदर्शी तरीके से पूरी हुई जूनियर भर्ती से धोने का प्रयोग न करें.
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इन जूनियर विरोधी व्यक्तियों के द्वारा अपनी ७२००० पी आर टी को हाशिये में रखने, अपने साथियों के पैसा गबन करने, अपने ही साथियों कि भर्ती का विरोध करने और अपने ही लोगो को आर्थिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने के असंख्य पोस्ट और उदाहरण सोशल मीडिया में हैं, मैं उसमें कुछ और नहीं जोड़ना चाहता हूँ और ना ही व्याख्या करना चाहता हूँ क्योंकि ऐसा करने में मुझे असभ्य भाषा/असभ्यता में प्रवेश करना पड़ेगा और उसकी सीमा लांघनी पड़ेगी. लेकिन वर्तमान में न्यायालय जूनियर के केस के सन्दर्भ में ऐसे लोगो द्वारा की जाने वाली बेवकूफियों और होने वाले संभव परिणाम को जरुर इंगित करना चाहूँगा
१. माननीय उच्चतम न्यायालय से शुरू हुआ याची बनने का खेल माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में भी प्रवेश कर गया....७२००० PRT के मसले पर राज्य सरकार के द्वारा कुछ अभ्यर्थियों को जोइनिंग नहीं दिया गया था जबकि ७२००० के टेट और अकादमिक आधार पर २ विज्ञापन निकले थे और दोनों में अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था. विज्ञापन के विवादित होने पर ये (११०० ) अभ्यर्थी उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय में अपनी दावेदारी को पेश करते हुए अपील और SLP में आरंभ से ही पक्षकार थे चूँकि सुप्रीम कोर्ट में जोइनिंग के लिए अंतरिम राहत प्रदान किया था और ऐसे में इनका हित प्रभावित होने के कारन इन ११०० याचियों को भी माननीय उच्चतम न्यायालय ने अंतरिम राहत प्रद्दन करते हुए AD-HOC बेसिस पर ज्वाइन कराने कि अंतरिम राहत दी. ध्यान रहे अंतरिम राहत कभी अंतिम राहत नहीं होती हाँ ये अलग बात है अंतरिम राहत, अंतिम राहत होने कि संभावना प्रबल होती है. अब जूनियर के सन्दर्भ में भी याची याची का खेल शुरू हुआ है जबकि जूनियर में ऐसी कोई भी संभावना नहीं बनती. मैं आपको स्पस्ट कर दूँ कि जूनियर भर्ती के रास्ते में २०१३ से अब तक करीब २५ से लेकर ३० विभिन्न रिट/अपील/पुरुनिरिक्षण/कंटेम्प्ट आदि केसेस अब तक हुए हैं और किसी भी न्यायालय ने कभी भी जूनियर कि भर्ती प्रक्रिया को विवादित नहीं माना है. ऐसे में किसी नए याची बन्ने और उसको अंतरिम राहत के नहीं कोई प्रश्न उठता और न ही कोई औचित्य बनता जब भर्ती प्रक्रिया पारदर्शिता से पूर्ण हो चुकी है. यह बात और स्पस्ट है कि नियम के मुताबिक किसी भी हित प्रभावित व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष अपनी बात रखने का हक तो है लेकिन केस के मुद्दे से भटकाकर किसी गतिमान प्रक्रिया में अनर्गल हस्तक्षेप करके लाभ उठाने पर न्यायालय के कोपभाजन का शिकार भी होना पड़ सकता है और परिणाम जुरमाना प्रत्येक याची बनने वाले पर पड़ सकता है. ये याची बनने और बनाने का खेल सिर्फ और सिर्फ धनार्जन का स्रोत है और कुछ नहीं है. ये याची बनने वाले और इस प्रक्रिया में आर्थिक सहयोग करने वाले ये बात एकदम समझ लें आपका पैसा बहुत कीमती है इसे अनावश्यक तौर पर किसी की कमाई का अड्डा न बनाये.
२. बात १२ अप्रैल कि जिस दिन जूनियर को विरोधी लोग निरस्त कराने की बात कर रहे हैं कान खोल के सुन लें न्यायालय प्रजातंत्र का तीसरा स्तम्भ है जो पूर्णतया स्वंत्रत है, किसी के बाप कि बपौती नहीं है मैंने पहले भी कई बार कहा है अपना सारा क़ानूनी ज्ञान, तथ्य, व्याख्याएं और भावात्मक पहलू पर कि जाने वाली बातें समय समय पर सोशल मीडिया में पोस्ट करने कि बजाय माननीय न्यायालय में प्रस्तुत करें शायद माननीय न्यायालय में आपको कुछ राहत मिले यहाँ ज़मीं पर और सोशल मीडिया पर आप जूनियर से पंगा न लें सिर्फ अपनी नौकरी कि सुरक्षा करें और अपने आप आप को सक्षम बनायें. जूनियर १ नहीं २ नहीं ३ नहीं सैकड़ों विधाओं से सुरक्षित है. मैं पोस्ट कम करने का प्रयास करता हूँ लेकिन मुझे आपके/जूनियर विरोधियों के द्वारा अकारण तथ्यहीन और गलत गुमराह करने वाली पोस्ट पे पोस्ट डालने के कारन ये पोस्ट डालनी पड़ी.
धन्यवाद
ओम नारायण तिवारी
उच्च प्राथमिक शिक्षक संघ उत्तर प्रदेश
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