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यूपी के शिक्षामित्र की कोशिशों का नतीजा, चैका-बर्तन छोड़ स्कूल जा रहीं लड़कियां

बच्चियां सुबह उठकर अब घर का चैका-बर्तन और पशुओं के लिए चारा लेने नहीं जातीं बल्कि बस्ता पीठ पर टांगे, यूनिफॉर्म पहने गांव के सरकारी स्कूल जाती हैं। बच्चियों के जीवन में यह बदलाव अचानक नहीं आया है।
बच्चियों को स्कूल तक ले जाने के पीछे यहां की शिक्षामित्र का योगदान माना जाता है। बुधवार सुबह बस्ती जिले के पिनेसर प्राइमरी स्कूल की पड़ताल में यह तस्वीर सामने आई।

स्कूल के प्रिंसिपल रामयज्ञ मौर्य के मुताबिक तीन साल पहले पिनेसर प्राइमरी स्कूल में कुल 30 बच्चे ही पढ़ते थे, जिसमें से बच्चियों की संख्य 10-12 से अधिक नहीं थी। इसके बाद शिक्षामित्र से सहायक अध्यापक बने विजय लक्ष्मी वर्मा ने ग्रामीणों से लगातार अपील कर 70 बच्चियों का ऐडमिशन करवाया, इन बच्चियों ने कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा था। प्रिंसिपल ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक के तौर पर समायोजन भले ही निरस्त कर दिया हो, लेकिन पढ़ाई के प्रति लगन जगाने में शिक्षामित्रों की मेहनत को नकारा नहीं जा सकता। इसी का परिणाम रहा कि इस स्कूल में पढ़ने वाले 126 बच्चें में 70 ऐडमिशन सिर्फ बच्चियों के हुए हैं।
शिक्षामित्र विजय लक्ष्मी ने बताया कि सरकार ने शिक्षामित्रों को तवज्जो देकर प्रमोशन किया तो हमने भी गांव में शिक्षा की रोशनी फैलाने की मुहिम छेड़ दी। पिनेसर ग्रामसभा के पेडारी और मदही पुरवा में उन बच्चियों को चिन्हित किया, जो स्कूल नहीं जा रही थी। इसके बाद इन बच्चियों के परिजनों को पढ़ाई-लिखाई का महत्व समझाकर स्कूल भेजने की अपील की गई। शुरुआत में लोगों ने ध्यान नहीं दिया लेकिन लगातार प्रयास के बाद मुहिम रंग लाने लगी। लोग बच्चियों को स्कूल भेजने के लिए राजी हुए।
बच्च्यिों को पहले टॉफी देकर रोज स्कूल आने के लिए प्रेरित किया गया। पढ़ाई के साथ ही इन्हें वर्ष करने और हाथ धोने तक का तरीका भी सिखाया गया। नतीजा यह हुआ कि बच्चियां अब स्कूल के रंग में रंग गई है। ब्लैकबोर्ड पर फूल का चित्र बनाकर जहां चहक उठती है, वहीं गांव की कच्ची पगडंड़ियो पर मस्ती करते हुए नियमित रूप से स्कूल जाना नहीं भूलती। हालांकि, इस अच्छाई के साथ ही स्कूल की व्यव्स्था में तमाम खामियां नजर आई। स्कूल का टॉइलट बहुत गंदा था। बताया जाता है कि स्कूल में तैनात सफाई कर्मचारी यदाकदा ही डयूटी पर आता है।
मनोरमा नदी के किनारे बने स्कूल में अधूरी बाउंड्रिवॉल होने की वजह से बच्चों के लिए हर समय यहां खतरा बना रहता है।

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