प्रदेश में दस या इससे कम छात्र संख्या वाले सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय बंद किए जाएंगे। कम छात्र संख्या वाले प्राथमिक विद्यालयों को एक किमी तो उच्च प्राथमिक विद्यालयों को तीन किमी की परिधि के भीतर मौजूद अन्य विद्यालयों में समायोजित किया जाएगा। सरकार का यह फैसला उचित ही है।
संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा। नजदीकी विद्यालयों में छात्र संख्या तो बढ़ेगी ही, साथ में शिक्षकों की उपलब्धता में भी इजाफा होगा। बंद होने वाले विद्यालयों के शिक्षकों को भी जरूरत के मुताबिक नजदीकी विद्यालयों में समायोजित किया जा सकेगा। इस फैसले से राज्य के दो हजार से अधिक विद्यालयों पर बंदी की तलवार लटक गई है। हालांकि सरकार का यह फैसला उसके तंत्र की आंखें खोलने को काफी है। एक किमी आबादी क्षेत्र की परिधि में न्यूनतम एक प्राथमिक विद्यालय और तीन किमी में एक उच्च प्राथमिक विद्यालय खोलने के आरटीई एक्ट के प्रावधान को ध्यान में रखकर नए विद्यालयों की स्थापना की तो गई, लेकिन उससे पहले आबादी व छात्र संख्या के आधार पर स्कूल मैपिंग के जरिये सच जानने से पूरी तरह मुंह चुराया गया। शिक्षा महकमे के एक स्कूल मैपिंग सर्वे में यह सच सामने आ चुका है कि कई क्षेत्रों में जरूरत को नजरअंदाज कर विद्यालयों को खोला गया है। जाहिर है कि सियासी नफा-नुकसान को ध्यान में रखकर ही ऐसे कदम उठाए गए होंगे। यह सिलसिला अब भी जारी है। नतीजा सरकारी संसाधनों और धन के दुरुपयोग और नौनिहालों के भविष्य के साथ खिलवाड़ के रूप में सामने है। आरटीई एक्ट में ही प्रत्येक प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय में मानक के मुताबिक अध्यापकों खास तौर पर विषय अध्यापकों की तैनाती पर खासा जोर दिया गया है। लेकिन, इस प्रावधान को जिस शिद्दत के साथ अमल में लाया जाना चाहिए था, वह नहीं हुआ। ग्रामीण क्षेत्रों और दूरदराज के विद्यालयों में अधिकतर में विषय अध्यापकों की कमी बनी हुई है। शिक्षा की इस दुरावस्था का नतीजा सरकारी विद्यालयों से जनता के तेजी से मोहभंग के रूप में दिख रहा है। राज्य गठन के बाद से अब तक सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में ही छात्र संख्या 50 फीसद से ज्यादा घट गई है। उच्च प्राथमिक के साथ ही अब सरकारी माध्यमिक विद्यालय भी इस समस्या की चपेट में आ चुके हैं। यह स्थिति चिंताजनक है।
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संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा। नजदीकी विद्यालयों में छात्र संख्या तो बढ़ेगी ही, साथ में शिक्षकों की उपलब्धता में भी इजाफा होगा। बंद होने वाले विद्यालयों के शिक्षकों को भी जरूरत के मुताबिक नजदीकी विद्यालयों में समायोजित किया जा सकेगा। इस फैसले से राज्य के दो हजार से अधिक विद्यालयों पर बंदी की तलवार लटक गई है। हालांकि सरकार का यह फैसला उसके तंत्र की आंखें खोलने को काफी है। एक किमी आबादी क्षेत्र की परिधि में न्यूनतम एक प्राथमिक विद्यालय और तीन किमी में एक उच्च प्राथमिक विद्यालय खोलने के आरटीई एक्ट के प्रावधान को ध्यान में रखकर नए विद्यालयों की स्थापना की तो गई, लेकिन उससे पहले आबादी व छात्र संख्या के आधार पर स्कूल मैपिंग के जरिये सच जानने से पूरी तरह मुंह चुराया गया। शिक्षा महकमे के एक स्कूल मैपिंग सर्वे में यह सच सामने आ चुका है कि कई क्षेत्रों में जरूरत को नजरअंदाज कर विद्यालयों को खोला गया है। जाहिर है कि सियासी नफा-नुकसान को ध्यान में रखकर ही ऐसे कदम उठाए गए होंगे। यह सिलसिला अब भी जारी है। नतीजा सरकारी संसाधनों और धन के दुरुपयोग और नौनिहालों के भविष्य के साथ खिलवाड़ के रूप में सामने है। आरटीई एक्ट में ही प्रत्येक प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय में मानक के मुताबिक अध्यापकों खास तौर पर विषय अध्यापकों की तैनाती पर खासा जोर दिया गया है। लेकिन, इस प्रावधान को जिस शिद्दत के साथ अमल में लाया जाना चाहिए था, वह नहीं हुआ। ग्रामीण क्षेत्रों और दूरदराज के विद्यालयों में अधिकतर में विषय अध्यापकों की कमी बनी हुई है। शिक्षा की इस दुरावस्था का नतीजा सरकारी विद्यालयों से जनता के तेजी से मोहभंग के रूप में दिख रहा है। राज्य गठन के बाद से अब तक सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में ही छात्र संख्या 50 फीसद से ज्यादा घट गई है। उच्च प्राथमिक के साथ ही अब सरकारी माध्यमिक विद्यालय भी इस समस्या की चपेट में आ चुके हैं। यह स्थिति चिंताजनक है।
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