शिक्षामित्रों के साथ बैंकों के अरमान भी लुटे

जागरण संवाददाता, उन्नाव : अगस्त 2014 और फिर जुलाई 2015 में जिले के 3260 शिक्षामित्रों को अचानक दस गुना की वेतन वृद्धि हो गई। अस्थाई ही सही पर शिक्षामित्र से राज्यकर्मी का दर्जा मिल गया।
उसी के बाद उनके सपनों को भी पंख लगे। बस फिर क्या था रुकी हुई हसरतें पूरी करने का दौर शुरू हो गया। किसी को दो से चार पहिया गाड़ी चाहिए थी तो किसी को नया मकान, वेतन बैंक पहुंचा तो सभी उसी के सहारे अपने अरमान पूरे करने पर लग गये।
बैंक से लेकर फाइनेंस कंपनी तक को उनमें व्यवसाय नजर आया तो सभी ने अपने अपने अरमान पूरे करने शुरू कर दिये। 2014 से 2017 जून के बीच अकेले जिले में करीब साढ़े सात करोड़ से अधिक लोन इन शिक्षामित्रों को दिया गया। अब शिक्षा मित्रों के खाते में पहुंच रहे 35 हजार प्रतिमाह वेतन पर रोक लग गई। जिससे जहां एक तरफ लोन चुकता करने का अधिकार छिन गया और किस्तें जमा होनी बंद हो गई हैं, वहीं दूसरी तरफ बैंक व अन्य कंपनियों का करोड़ों का कारोबार भी खटाई में पड़ गया है। ऐसे एक दो नहीं बल्कि कई उदाहरण भी सामने हैं लेकिन उनके नाम सार्वजिनक नहीं किये गए हैं।
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केस एक : मियागंज ब्लाक में तैनात शिक्षक 1 जुलाई 2015 को शिक्षामित्र से शिक्षक बने। शहर के आवास विकास क्षेत्र के करीब अपना आशियाना तो पहले से ही था, अब आवागमन के लिए कार की जरूरत पड़ी तो नवंबर 2015 में 3.5 लाख रुपये से कार फाइनेंस करायी। जिसे 5 साल में जमा करना था। शुरू में सब ठीक रहा। इधर दो माह से बैंक को किस्त मिलना बंद हो गया। अब बैंक द्वारा उनको किस्त जमा जमा किए जाने के लिए फोन कर रहे हैं।
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केस दो : बीघापुर तहसील क्षेत्र के एक प्राथमिक विद्यालय में तैनात शिक्षक भी 2015 में शिक्षामित्र से शिक्षक बने, दो तीन माह बाद ही वेतन बैंक खाते से मिलने लगा। इसी के बाद अप्रैल 2016 में उन्होंने एक कार फाइनेंस करायी, कार उनकी दौड़ रही है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद से किस्तें आनी बंद हो गई हैं। अब फाइनेंस कंपनी के रिकवरी स्टाफ उनके घर के चक्कर लगा किस्तें जमा करने की गुहार लगा रहे हैं।
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केस तीन : सफीपुर ब्लाक में तैनात एक महिला शिक्षामित्र ने शिक्षक बनने के बाद पति के साथ परिवार को मुख्यालय पर रहकर बच्चों की बेहतर पढ़ाई लिखाई की योजना बनाई। इसी के बाद उन्होंने हाउ¨सग लोन लिया और शहर के पूरन नगर क्षेत्र में अपना मकान बनवा लिया। बैंक से 7 लाख का लोन भी अदा हो रहा था लेकिन अब उसे चुकता करने में पसीने आ रहा हैं। बैंक ने उन्हें मकान के धरोहर होने की धमकी जरूर दे दी है।
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केस चार : हिलौली में एक शिक्षामित्र शिक्षक बने। इसी के बाद उन्होंने एक आठ लाख रुपये की कार निजी फाइनेंस कंपनी से जीरो डाउन पेमेंट पर फाइनेंस करायी जिसकी मासिक किस्त 12 हजार रुपये प्रति माह है। मूल पद पर आने के बाद उनका वेतन रुक गया। इधर मानदेय भी नहीं मिल रहा है, जिसके चलते चार किस्तें उनकी बाउंस हो गई है। उसके बाद से फाइनेंस कंपनी उनके घर के चक्कर काट रही है, शिक्षामित्र भी अपना रोना रो रही हैं। ------------------------
बैंक के साथ फाइनेंस कंपनियां भी फंसी
सूत्रों की माने तो शिक्षा मित्रों को लोन देने वालों में प्रमुख रूप से ग्रामीण व अन्य राष्ट्रीयकृत बैंक तो हैं ही साथ ही जिले में अपना कारोबार फैला रही कई फाइनेंस कंपनियां भी हैं जिनके सुप्रीम कोर्ट आदेश आने के बाद करोड़ों रुपया फंस गया है। इनमें अधिकांश नामचीन कंपनियां भी शामिल हैं। इसमें उन बैंकों को फिलहाल अभी उम्मीद हैं जिन्होंने धरोहर के रूप में कुछ धनराशि अपने कंधों पर ले रखी है। लेकिन वाहन फाइनेंस करने वाली कंपनियों को फिलहाल सरकार के फैसले का इंतजार है। फिलहाल लोन बांटने वाली बैंक और फाइनेंस कंपनियां शिक्षा मित्रों से वसूली को लेकर मंथन में जुटे हैं। उनका कहना है कि इंतजार के सिवा फिलहाल कुछ किया भी नहीं जा सकता है। लेकिन वह बैंक की साख को ध्यान में रखते हुए इन खातों और बकाया को सार्वजनिक भी नहीं कर रहे हैं।
कितना किसने बांटा लोन
राष्ट्रीयकृत व ग्रामीण बैंक- 1.5 करोड़
निजी बैंक- 2.5 करोड़
फाइनेंस कंपनी - 3.5 करोड़
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नियुक्ति पाने वाले शिक्षामित्रों की संख्या
एक अगस्त 2014 को शिक्षक बने - 1035
एक जुलाई 2015 शिक्षक बने - 2223
जिले में शिक्षामित्र से शिक्षक बने - 3260
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कोर्ट के फैसले पर शिक्षकों को पुन: उनके मूल पद शिक्षा मित्रों पर भेजा गया है। अभी तो सरकार की नई गाइड लाइन आने का इंतजार किया जा रहा है। वैसे अब तक की योजना के अनुसार जो मानदेय है उसी से ही कटौती की जाएगी।

- एसपी शाह, एलडीएम बैंक आफ इंडिया
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