नई दिल्ली। दस हजार रुपये मानदेय से असंतुष्ट शिक्षामित्र अब दिल्ली
पहुच रहे हैं। यहां जंतर-मंतर पर आज से 14 सितंबर तक उनका धरना-प्रदर्शन
चलेगा। करीब सवा लाख शिक्षामित्रों के यहां पहुंचने की संभावना है।
वे ट्रेनों और बसों से दिल्ली पहुंच रहे हैं। दिल्ली में इतने शिक्षामित्रों के आंदोलन से जाम लग सकता है। उनमें सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ काफी गुस्सा है।
25 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द करने के बाद वे सड़क पर हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में 1.78 लाख शिक्षामित्रों की सहायक अध्यापक के रूप में नियमितीकरण को गैरकानूनी ठहरा दिया था।
इसके बाद उन्हें योगी सरकार से अच्छे वेतन पर शिक्षामित्र के रूप में बहाल रखने की उम्मीद थी, लेकिन वह टूट गई। शिक्षामित्रों का समायोजन अखिलेश सरकार में हुआ था। उनका वेतन 39 हजार रुपये प्रतिमाह तक पहुंच गया था। लेकिन समायोजन रद्द होने के बाद वे फिर से पुराने 35 सौ रुपये के मानदेय पर आ गए।
यह मानदेय बढ़ाने को लेकर ही उन्होंने सभी जिलों में प्रदर्शन किया। अगस्त में लखनऊ के लक्ष्मण पार्क में तीन दिन तक प्रदर्शन किया। सरकार ने उन्हें समान कार्य समान वेतन देने का आश्वासन देकर लौटा दिया।
प्रदर्शन से दिल्ली में लग सकता है जाम
उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षामित्र एसोसिएशन के अध्यक्ष गाजी इमाम आला ने बताया कि लखनऊ में प्रदर्शन को देखते हुए सीएम ने पांच सदस्यीय कमेटी गठित की थी। लेकिन कमेटी की रिपोर्ट आने से पहले ही 10 हजार रुपये मानदेय करके टरका दिया।
जबकि विधानसभा चुनाव के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने बनारस में कहा था कि शिक्षामित्रों की समस्या उनकी समस्या है। शिक्षामित्र आत्महत्या न करें। उनकी समस्या का समाधान किया जाएगा. लेकिन जब पार्टी सत्ता में आ गई तब शिक्षामित्रों को सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया। 25 जुलाई के बाद से अब तक प्रदेश में करीब 50 शिक्षामित्र आत्महत्या कर चुके हैं, लेकिन सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा।
उन्होंने बताया कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका भी दायर नहीं की. इसलिए उनके संगठन ने इसे दायर किया है। इससे साफ पता चलता है कि यूपी सरकार की मंशा शिक्षामित्रों का साथ देने की नहीं है। जबकि बीजेपी ने यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान अपने लोक कल्याण संकल्प पत्र में शिक्षामित्रों की समस्या का समाधान करने का वादा किया था।
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वे ट्रेनों और बसों से दिल्ली पहुंच रहे हैं। दिल्ली में इतने शिक्षामित्रों के आंदोलन से जाम लग सकता है। उनमें सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ काफी गुस्सा है।
25 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द करने के बाद वे सड़क पर हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में 1.78 लाख शिक्षामित्रों की सहायक अध्यापक के रूप में नियमितीकरण को गैरकानूनी ठहरा दिया था।
इसके बाद उन्हें योगी सरकार से अच्छे वेतन पर शिक्षामित्र के रूप में बहाल रखने की उम्मीद थी, लेकिन वह टूट गई। शिक्षामित्रों का समायोजन अखिलेश सरकार में हुआ था। उनका वेतन 39 हजार रुपये प्रतिमाह तक पहुंच गया था। लेकिन समायोजन रद्द होने के बाद वे फिर से पुराने 35 सौ रुपये के मानदेय पर आ गए।
यह मानदेय बढ़ाने को लेकर ही उन्होंने सभी जिलों में प्रदर्शन किया। अगस्त में लखनऊ के लक्ष्मण पार्क में तीन दिन तक प्रदर्शन किया। सरकार ने उन्हें समान कार्य समान वेतन देने का आश्वासन देकर लौटा दिया।
प्रदर्शन से दिल्ली में लग सकता है जाम
उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षामित्र एसोसिएशन के अध्यक्ष गाजी इमाम आला ने बताया कि लखनऊ में प्रदर्शन को देखते हुए सीएम ने पांच सदस्यीय कमेटी गठित की थी। लेकिन कमेटी की रिपोर्ट आने से पहले ही 10 हजार रुपये मानदेय करके टरका दिया।
जबकि विधानसभा चुनाव के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने बनारस में कहा था कि शिक्षामित्रों की समस्या उनकी समस्या है। शिक्षामित्र आत्महत्या न करें। उनकी समस्या का समाधान किया जाएगा. लेकिन जब पार्टी सत्ता में आ गई तब शिक्षामित्रों को सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया। 25 जुलाई के बाद से अब तक प्रदेश में करीब 50 शिक्षामित्र आत्महत्या कर चुके हैं, लेकिन सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा।
उन्होंने बताया कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका भी दायर नहीं की. इसलिए उनके संगठन ने इसे दायर किया है। इससे साफ पता चलता है कि यूपी सरकार की मंशा शिक्षामित्रों का साथ देने की नहीं है। जबकि बीजेपी ने यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान अपने लोक कल्याण संकल्प पत्र में शिक्षामित्रों की समस्या का समाधान करने का वादा किया था।
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