Shikshamitra: शिक्षामित्रों को मूल स्कूलों में भेजने की नहीं बनी व्यवस्था, सैकड़ों मील दूर नौकरी करने के लिए मजबूर

समायोजन रद होने से शिक्षामित्रों को आर्थिक ही नहीं बल्कि शारीरिक तौर पर भी बेहद परेशानी ङोलनी पड़ रही है। मानदेय पर रखने के बावजूद उनके मूल स्कूलों में भेजने की व्यवस्था नहीं बनाई गई है।
संगठन ने बेसिक शिक्षा विभाग से गुहार लगाई है। शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक पद पर समायोजित किया गया था। इसमें जिले के 1004 शिक्षामित्र शामिल किए थे। बाद में 100 का दूसरे जिलों में तबादला कर दिया गया। इसमें पूर्वी जिलों में भी भेजे गए थे। जुलाई के आखिर में सुप्रीम कोर्ट ने समायोजन रद कर दिया था। इसके बाद सभी को दस हजार रुपये मानदेय पर रख लिया गया। इससे जो पहले से ही जिले में थे, वह अपने घर से ही अपडाउन कर रहे हैं। मगर दूरस्थ जनपदों में तैनात शिक्षामित्रों की परेशानी दूसरों से बेहद बढ़ी हुई है। हफ्ते या महीने में घर आने के लिए यात्र में खर्च और रहने और खाने का खर्च अलग। इसमें पैसों के नुकसान के अलावा शारीरिक कष्ट भी उठाना पड़ रहा है। इटावा में तैनात अभिषेक ने बताया कि मानदेय का बड़ा हिस्सा यूं ही खर्च हो जाता है। परिवार चलाने के लिए कुछ नहीं बचता। हरदोई के स्कूल में मानदेय पर काम कर रहे राजकुमार कश्यप ने बताया कि मुश्किल बेइंतहा हो गई हैं। संगठन को परेशानी बताई गई है। संगठन के जिलाध्यक्ष धर्मपाल सिंह ने बताया कि विभाग को ज्ञापन भेजकर दूर क्षेत्रों में नौकरी करने वालों की परेशानी बताकर समाधान करने की मांग उठाई है। बेसिक शिक्षा परिषद के क्षेत्रीय कार्यालय के मुताबिक, पूरा सिस्टम गड़बड़ाया हुआ है। क्योंकि जो शिक्षामित्र समायोजित किए गए थे, उनके स्थान पर दूसरे शिक्षामित्र रखे गए थे। इसलिए जगह नहीं बची। अब फिर से समायोजित शिक्षामित्र को एडजेस्ट कर पाना कठिन है। इसमें पहले से तैनात शिक्षामित्र को या तो हटाना होगा या फिर दूसरा कोई विकल्प खोजना पड़ेगा। इसके चलते शिक्षामित्रों की राह आसान नहीं दिख रही है।
मिड-डे मील का बिगड़ेगा स्वाद
पहले से ही बिगड़ी मिड-डे मील वितरण की व्यवस्था और भी खराब होने जा रही है। इसे जीएसटी के दायरे में लाए जाने के बाद विभागीय प्रक्रिया और तमाम कवायदों में देरी का खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ेगा। कनवर्जन कोस्ट भी कम होने के आसार प्रबल हो गए हैं। सरकारी स्कूलों में बंटने वाले मिड-डे मील भी जीएसटी के दायरे में लाया गया है। इस पर कार्रवाई भी शुरू हो गई है।खाद्य निगम ने जीएसटी नंबर लेने के बाद खाद्यान्न देने की बात कही है। इसका व्यापक असर पड़ने वाले हैं। पहले से ही प्रति बच्च कंवर्जन कोस्ट चार से पांच रुपये नीयत की गई है। विभाग की तरफ से तीन माह का भुगतान होता है। इसमें अव्यवस्थाएं इस कदर हैं कि बेहद लेटलतीफी बढ़ती है। जिन स्कूलों से सूचनाएं प्राप्त नहीं होतीं, उनका भुगतान रुकता है। इससे स्कूल प्रबंध समितियां खिचड़ी और चावल के सिवाए कुछ और व्यंजन बच्चों को नहीं देते, जबकि अलग-अलग दिवसों में अलग-अलग मीनू देने की व्यवस्था की गई है। मिड-डे मील जीएसटी के दायरे में आने के बाद इसके हिसाब से विभागीय कार्रवाई पूरी होगी। तब तक पैसा भी नहीं मिल पाएगा। बेसिक शिक्षा के क्षेत्रीय कार्यालय के मुताबिक, जीएसटी लगने से प्रति बच्च कंवर्जन कोस्ट में कमी भी आ सकती है।

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