इलाहाबाद: उप्र शिक्षक पात्रता परीक्षा यानी यूपी टीईटी 2017 के रिजल्ट ने प्रदेश के बीएड व डीएलएड कालेजों पर सवालिया निशान लगा दिया है। इस बार का रिजल्ट टीईटी के इतिहास में सबसे कम रहा है। साफ संकेत है कि संस्थानों में प्रशिक्षुओं की पढ़ाई सही दिशा में नहीं चल रही है।
इससे नए कालेजों का अब मान्यता पाना भी मुश्किल होगा।
प्रदेश में सबसे पहले टीईटी की परीक्षा वर्ष 2011 में हुई थी। इस परीक्षा में सिर्फ प्रशिक्षित युवा ही शामिल हो सकते हैं। बीएड कालेजों में अंक व प्रमाणपत्र किस तरह से बांटे जा रहे हैं यह किसी से छिपा नहीं है। वहीं, 2012-13 से सूबे में निजी डीएलएड कालेज भी खुले हैं। उनकी तादात हर वर्ष बढ़ रही है। यह कालेज भी बीएड कालेजों की राह पर हैं। डायट में पर्याप्त स्टाफ न होने से पढ़ाई पटरी से उतर चुकी है। 1पहला वर्ष हर मामले में अपवाद : टीईटी का पहला इम्तिहान यूपी बोर्ड ने कराया था। उस वर्ष 11 लाख से अधिक अभ्यर्थी इम्तिहान में शामिल हुए और उनका सफलता प्रतिशत भी 50 फीसद से अधिक रहा। परीक्षा में गड़बड़ी को ले पूर्व शिक्षा निदेशक को जेल तक जाना पड़ा है। बाद में बोर्ड के टेबुलेशन रिकॉर्ड यानी टीआर में बदलाव होना भी सामने आया है।
कार्यालय में तैयार हुआ रिजल्ट : टीईटी का परीक्षा परिणाम इस बार किसी एजेंसी को नहीं दिया गया, बल्कि परीक्षा नियामक प्राधिकारी सचिव ने अपने कार्यालय में ही पूरे ओएमआर शीट की स्कैनिंग कराकर रिजल्ट तैयार कराया। पूरा कार्य कैमरों की निगरानी में हुआ। रिजल्ट पर शिक्षामित्र भले ही नाखुश हो, लेकिन अन्य विवाद नहीं हुआ है, केवल उत्तरकुंजी का प्रकरण न्यायालय में है। 1ग्रेडिंग अधर में, आधार अनिवार्य : टीईटी का पिछले साल रिजल्ट कम आने पर एससीईआरटी ने डायट व निजी कालेजों पर शिकंजा कसने को हर संस्थान को ग्रेड देने का निर्देश दिया था। माना गया कि यह होने पर संस्थान अपनी बेहतरी करेंगे और अभ्यर्थी ग्रेड के हिसाब से कालेजों का चयन कर सकेंगे। अभी इस पर अमल नहीं हुआ है। वहीं, कालेजों के प्रवक्ताओं को आधार से जोड़ने का निर्देश हुआ। इसमें भी हीलाहवाली की गई आखिर में एनसीटीई ने मान्यता देने में इसे अनिवार्य किया।
नए कालेजों पर लगेगा विराम : प्रदेश में डीएलएड के निजी कालेजों की बाढ़ आ गई है। इस वर्ष कालेजों में 19 हजार सीटें खाली रह गई हैं। शासन ने नए कालेजों को मान्यता न देने के लिए एनसीटीई से अनुरोध करने का निर्णय किया था।
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इससे नए कालेजों का अब मान्यता पाना भी मुश्किल होगा।
प्रदेश में सबसे पहले टीईटी की परीक्षा वर्ष 2011 में हुई थी। इस परीक्षा में सिर्फ प्रशिक्षित युवा ही शामिल हो सकते हैं। बीएड कालेजों में अंक व प्रमाणपत्र किस तरह से बांटे जा रहे हैं यह किसी से छिपा नहीं है। वहीं, 2012-13 से सूबे में निजी डीएलएड कालेज भी खुले हैं। उनकी तादात हर वर्ष बढ़ रही है। यह कालेज भी बीएड कालेजों की राह पर हैं। डायट में पर्याप्त स्टाफ न होने से पढ़ाई पटरी से उतर चुकी है। 1पहला वर्ष हर मामले में अपवाद : टीईटी का पहला इम्तिहान यूपी बोर्ड ने कराया था। उस वर्ष 11 लाख से अधिक अभ्यर्थी इम्तिहान में शामिल हुए और उनका सफलता प्रतिशत भी 50 फीसद से अधिक रहा। परीक्षा में गड़बड़ी को ले पूर्व शिक्षा निदेशक को जेल तक जाना पड़ा है। बाद में बोर्ड के टेबुलेशन रिकॉर्ड यानी टीआर में बदलाव होना भी सामने आया है।
कार्यालय में तैयार हुआ रिजल्ट : टीईटी का परीक्षा परिणाम इस बार किसी एजेंसी को नहीं दिया गया, बल्कि परीक्षा नियामक प्राधिकारी सचिव ने अपने कार्यालय में ही पूरे ओएमआर शीट की स्कैनिंग कराकर रिजल्ट तैयार कराया। पूरा कार्य कैमरों की निगरानी में हुआ। रिजल्ट पर शिक्षामित्र भले ही नाखुश हो, लेकिन अन्य विवाद नहीं हुआ है, केवल उत्तरकुंजी का प्रकरण न्यायालय में है। 1ग्रेडिंग अधर में, आधार अनिवार्य : टीईटी का पिछले साल रिजल्ट कम आने पर एससीईआरटी ने डायट व निजी कालेजों पर शिकंजा कसने को हर संस्थान को ग्रेड देने का निर्देश दिया था। माना गया कि यह होने पर संस्थान अपनी बेहतरी करेंगे और अभ्यर्थी ग्रेड के हिसाब से कालेजों का चयन कर सकेंगे। अभी इस पर अमल नहीं हुआ है। वहीं, कालेजों के प्रवक्ताओं को आधार से जोड़ने का निर्देश हुआ। इसमें भी हीलाहवाली की गई आखिर में एनसीटीई ने मान्यता देने में इसे अनिवार्य किया।
नए कालेजों पर लगेगा विराम : प्रदेश में डीएलएड के निजी कालेजों की बाढ़ आ गई है। इस वर्ष कालेजों में 19 हजार सीटें खाली रह गई हैं। शासन ने नए कालेजों को मान्यता न देने के लिए एनसीटीई से अनुरोध करने का निर्णय किया था।
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