UPPSC: 17 सालों बाद आयोग की सीबीआइ जांच का आदेश, विधान परिषद में गूंजा मुदा, जाँच की संस्तुति

इलाहाबाद उप्र लोकसेवा आयोग की भर्तियों में गड़बड़ियां पहली बार नहीं हुई हैं, बल्कि चयन में खामियों की लंबी फेहरिश्त है। शायद इसीलिए आयोग की सीबीआइ जांच की संस्तुति प्रदेश सरकार ने दूसरी बार की है।
इस जांच की मांग करने वाली सरकारें भले ही अलग-अलग दलों की रही हैं लेकिन, दोनों के मूल में भर्तियों में गलत चयन का ही आधार रहा है। खास बात यह है कि 17 बरस पहले सीबीआइ ने जांच से हाथ खींच लिए थे, जबकि इस बार जांच करने का नोटीफिकेशन जारी कर दिया गया है।

पीसीएस 1985 की भर्ती विवादों में: आयोग ने 1985 में राज्य सम्मिलित सेवा प्रतियोगिता परीक्षा के जरिये उप्र शैक्षिक सेवा कनिष्ठ वेतनमान महिला शाखा के तहत अपर जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी महिला आदि के 32 पदों पर चयनित अभ्यर्थियों को 1990 में पद भार ग्रहण कराया गया। इनमें से 16 पद सामान्य वर्ग, पांच ओबीसी, छह एससी व एक पद एसटी के लिए आरक्षित था। वहीं, दो पद भूतपूर्व सैनिक, एक पद शारीरिक दिव्यांग व एक पद पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रित की तैनाती होनी थी। 1987 में इसका साक्षात्कार हुआ। इसमें अच्छे अंक पाने वाले अभ्यर्थियों की अनदेखी करते हुए ओबीसी के पांच, एससी के दो अभ्यर्थियों को इंटरव्यू में बुलाया ही नहीं गया। वहीं, एससी के छह पदों को भरने में दो तरह की चयन प्रक्रिया अपनाई गई। ऐसे ही दो अभ्यर्थियों का नियम विरुद्ध निर्विरोध चयन किया गया। यही नहीं 1990 में फिर साक्षात्कार हुआ इसमें दस अभ्यर्थियों को बुलाया गया और चार को चयनित घोषित किया गया। इस इंटरव्यू में ओबीसी वर्ग की दो अभ्यर्थी ऊषा सिंह व जबीन आयशा को सामान्य वर्ग का मानकर साक्षात्कार हुआ, जबकि आवेदन ओबीसी का था। इसमें चयनित अभ्यर्थियों से अधिक अंक पाने वाले 10 परीक्षार्थियों को बुलाया नहीं गया। परीक्षा में ओबीसी वर्ग में पहले व दूसरे स्थान पर आने वाले अभ्यर्थियों को आज तक नियुक्ति नहीं मिली है। इसी तरह की चयन में तमाम खामियां सामने आई थी।
पहले इन्कार अब सीबीआइ सहमत : पीसीएस 1985 प्रकरण की जांच करने से उस समय सीबीआइ ने इन्कार कर दिया था। सीबीआइ के एआइजी अनुराग गर्ग ने कहा था कि आयोग व उसके कर्मचारी उसके परिक्षेत्र में नहीं आते हैं।

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