इविवि में शिक्षकों की कमी, विवाद रहे मुख्य वजह

जासं, इलाहाबाद : आए दिन होने वाले विवाद, शिक्षक भर्ती में धांधली, ध्वस्त शिक्षक और छात्र अनुपात, संसाधनों की कमी, कुछ विभागों को छोड़कर गुणवत्तापूर्ण शोध की कमी, प्रवेश परीक्षा पर उठे सवाल ये कुछ ऐसे बिंदु है जिनके कारण पूरब के ऑक्सफोर्ड की चमक फीकी होती जा रही है। इसका जीता जागता उदाहरण एनआइआरएफ द्वारा मंगलवार को जारी रैंकिंग है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय देशभर के शिक्षण संस्थानों की रैंकिंग की टॉप 100 शिक्षण संस्थानों की सूची से बाहर हो गया है।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय की साख लगातार गिरी है। वर्ष 2017 की रैंकिंग सूची में इलाहाबाद विश्वविद्यालय 27 पायदान नीचे चला गया था। इस बार सुधार की उम्मीद थी, लेकिन इविवि को तगड़ा झटका लगा और देश के टॉप-100 विश्वविद्यालयों की सूची में उसे बाहर कर दिया गया। वर्ष 2016 में पहली बार हुई रैंकिंग में इलाहाबाद विश्वविद्यालय को देश भर के विश्वविद्यालयों में 68वा स्थान मिला था, 2017 में 95वा स्थान मिला था।

------------------------
ध्वस्त है शिक्षक-छात्र संतुलन
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शिक्षक-छात्र संतुलन ध्वस्त हो गया है। यहां इस समय 350 के लगभग शिक्षक नियुक्त हैं और छात्र संख्या 25 हजार से ऊपर पहुंच गई है। शिक्षकों के 542 पद खाली हैं, जिसकी भर्ती प्रकिया अब शुरू हुई है। यूजीसी के ना‌र्म्स के अनुरूप प्रायोगिक विषयों में शिक्षक और छात्र अनुपात 1:10 होना चाहिए और गैर प्रायोगिक विषयों में 1:30 होना चाहिए। विडंबना यह है कि विश्वविद्यालय में इस समय शिक्षक और छात्र अनुपात 1:83 है। महाविद्यालयों में तो और खराब हालात थे, पर शिक्षकों की भर्ती होने से स्थिति सुधरी हुई है। विश्वविद्यालय में अतिथि प्रवक्ताओं के सहारे कई विभाग चल रहे हैं।

-----------------------
बातचीत पीपी फोटो के साथ
--------------------
अराजकता व शिक्षकों की कमी वजह
विश्वविद्यालय में अराजकता का माहौल रहता है। यहां आए दिन बवाल होता रहता है। ऐसे में पढ़ाई का माहौल नहीं बन पाता। शिक्षकों की कमी भी बड़ी वजह है।
सुमैया, एमएड स्टूडेंट।
-------------------
हर स्तर पर देना होगा ध्यान
विश्वविद्यालय में शिक्षण का माहौल बने इसके लिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। इसके अलावा छात्रावास में अराजकतत्वों का वास रहता है। बेसिक सुविधाओं की भी कमी है।
दिपांकर, एमए स्टूडेंट।
-----------------
शिक्षकों की कमी है कारण
विश्वविद्यालय में शिक्षकों की कमी सबसे बड़ी वजह है। छात्रों की क्षमता से अधिक संख्या और शिक्षकों का अनुपात ठीक करना होगा तभी आगे रैंकिंग में सुधार होगा।
अवनीश मणि यादव, मास कम्युनिकेशन।
-------------------
पढ़ाई की गुणवत्ता ठीक नहीं
विश्वविद्यालय में शिक्षक ठीक से नहीं पढ़ाते। पढ़ाई की गुणवत्ता सही नहीं है। इसके पीछे कारण शिक्षकों की कमी भी है। शोध के लिए जरूरी सुविधाएं भी नहीं हैं।
आकांक्षा, छात्रा एमए।
----------------
माहौल है जिम्मेदार
विश्वविद्यालय में पठन-पाठन का माहौल नहीं है। शिक्षक कम हैं, जो हैं भी उनमें से अधिकांश की पढ़ाने में रुचि नहीं है। आए दिन अराजकता भी एक वजह है। समस्याओं का समाधान भी नहीं होता।
अमित गुप्ता, छात्र, मास कम्युनिकेशन।
-------------------
कक्षाएं नहीं चलतीं
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाई ठीक से नहीं होती। कक्षाएं भी नियमित नहीं चलतीं। यही कारण है कि छात्रों को उचित माहौल नहीं मिल पाता। इसके पीछे शिक्षकों की कमी भी है।
आलोक कुमार, एमए।
------------
एमएनएनआइटी ने रैंकिंग में गिरावट की जांच को कमेटी बनी
जासं, इलाहाबाद : मोती लाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनएनआइटी) ने एनआइआरएफ द्वारा मंगलवार को जारी रैंकिंग में सात पायदान नीचे खिसकने के कारणों की तलाश के लिए एक जांच कमेटी का गठन कर दिया है। यह जांच कमेटी एनआइआरएफ को भेजे आंकड़ों की जांच करेगी व यह भी देखेगी कि हम किन किन बिंदुओं पर और कहां कहां कमजोर रहे। एमएनएनआइटी इस बार 48वें पायदान पर पहुंच गया है।
एमएनएनआइटी के निदेशक प्रो. राजीव त्रिपाठी ने बताया कि एनआइआरएफ की रैंकिंग में गिरावट के कारणों की तलाश की जा रही है। हमारी सबसे बड़ी कमजोरी शिक्षकों के 170 पद खाली होना व इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है। संस्थान ने अभी हाल ही में शिक्षकों के पहले राउंड की भर्ती प्रक्रिया पूरी की है। पहले राउंड में 18 शिक्षकों का चयन किया गया है व करीब 125 शिक्षकों के प्रमोशन किए गए हैं। दूसरा राउंड के चयन की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी।

प्रो. राजीव त्रिपाठी ने बताया कि एनआइआरएफ की रैंकिंग पिछले तीन सालों के आंकड़ों के आधार पर होती है। यही कारण रहा कि शिक्षकों की कमी और इंफ्रास्ट्रक्चर में कमजोर रहने के कारण हमारी रैंकिंग गिरी है। पहले साल की रैंकिंग में हम 21वें पायदान पर थे। दूसरा कारण शुरू में कम संस्थानों का अप्लाई करना भी रहा। अब संस्थानों की संख्या बढ़ गई है। यही कारण है कि प्रतिस्पर्धा भी बढ़ी है।
sponsored links: