सरकार का कहना है कि ये शिक्षक समान कार्य के लिए समान वेतन की श्रेणी में नहीं आते हैं। केंद्र सरकार का कहना है कि अगर बिहार में इस फैसले को मंजूरी दी जाती है तो दूसरे राज्यों से भी इस तरह की मांग उठने लगेगी। केंद्र की तरफ से यह भी कहा गया है कि बिहार को कितनी आर्थिक मदद दी जाए इससे भी कोर्ट को अवगत कराएगी। अब इस मामले की सुनवाई 31 जुलाई को की जाएगी।
गौरतलब है कि बिहार में शिक्षकों के समायोजन की प्रक्रिया साल 2003 में राबड़ी देवी के कार्यकाल में शुरू हुई थी, उस समय इन शिक्षकों को शिक्षामित्र के नाम से जाना जाता है और इनका वेतन महज 1500 रुपये थी। बाद में नीतीश कुमार की सरकार में इन शिक्षकों का समायोजन पंचायत और प्रखंड स्तर पर की गई और ट्रेंड शिक्षकों का वेतन 5 हजार और अनट्रेंड शिक्षकों का वेतन 4 हजार कर दिया गया। इसके बाद लगातार शिक्षकों की भर्ती होती रही अब इनकी तादाद करीब 3 लाख 69 हजार के करीब पहुंच गई है।
आपको बता दें कि बिहार में क्लास 1 से लेकर 8वीं तक नियोजित शिक्षकों और पुस्तकालय अध्यक्षों को वर्तमान में 14 हजार से लेकर 19 हजार तक सैलरी मिलती है इनमें ट्रेंड और अनट्रेंड शिक्षक शामिल हैं। समान काम के लिए समान वेतन का फैसला लागू होता होते ही इनका वेतन 37 हजार से 40 हजार तक पहुंच जाएगा। फिलहाल बिहार सरकार नियोजित शिक्षकों के वेतन पर करीब 10 हजार करोड़ रुपये खर्च करती है ऐसे में अगर सुप्रीम कोर्ट भी हाईकोर्ट के जैसा फैसला सुनाता है तो बिहार सरकार के खर्च में काफी इजाफा हो जाएगा।