जागरण संवाददाता, बलिया : सियासत के चक्रव्यूह में उलझे शिक्षामित्र आज
सड़क पर हैं। शायद इसकी सबसे बड़ी वजह राजनीतिक प्रपंच है। तत्कालीन सरकारों
द्वारा नियमों की अनदेखी शिक्षामित्रों पर भारी पड़ रही है। पिछले लगभग दो
दशकों से बुनियादी शिक्षा को मजबूत आयाम देने में जुटे इन शिक्षा मित्रों
की हालत फुटबाल की तरह हो गई है।
कभी इस पाले में तो कभी उस पाले में दर-दर भटक रहे हैं। इस दरम्यान देश व प्रदेश में निजाम बदला लेकिन व्यवस्था नहीं बदली। प्रशिक्षण से लगायत सुप्रीम कोर्ट के आदेश तक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक ²ष्टि से इन्हें हर मोड़ पर तिरस्कृत किया गया लेकिन इनकी व्यथा और दर्द को किसी ने समझने की कोशिश नहीं की।
व्यवस्थागत खामियों की वजह से शिक्षामित्र अर्श से फर्श पर आ गए। भावी
पीढ़ी को जिदगी का ककहरा सिखाने वाला यह वर्ग आज उपेक्षा भरी नजरों से देखा
जा रहा है। सामाजिक सरोकारों से प्रत्यक्ष संबंध होते हुए भी इनकी भूमिका
सवालों के घेरे में है। खासकर बात जब शिक्षा, शिक्षक और शैक्षणिक माहौल की
हो तो इनकी उपादेयता पर प्रश्नचिह्न लगाने में कोई कोताही नहीं बरती जाती।
इन दुर्व्यवस्थाओं ने शिक्षामित्रों को अपने ही नजरों में गुनाहगार बनाकर
रख दिखा है। सोमवार को शहर के टाउन हॉल बापू भवन में दैनिक जागरण द्वारा
आयोजित चुनावी चौपाल में शिक्षामित्रों ने न सिर्फ अपने संघर्षो को एक-एक
कर सामने रखा बल्कि समय-समय पर दलगत राजनीति की मानसिक प्रताड़ना को भी बयां
किया। अपनी समायोजन की मांग को प्रमुखता से उठाते हुए कहा कि नीति
नियंताओं की कमी का खामियाजा हमें भुगतना पड़ रहा है।
शिक्षामित्रों ने कहा कि सरकार की नीतियों की वजह से हम समाज में हेय दृष्टि से देखे जा रहे हैं। कभी योग्यता को लेकर कटाक्ष किया जाता है तो कभी शिक्षण प्रक्रिया ही सवालों के घेरे में होती है। सिस्टम ने शिक्षामित्रों को समाज के निचले पायदान पर पहुंचा दिया है। आज सरकार व सिस्टम ने शिक्षामित्रों को चुनावी कार्य से अलग कर हमारी निष्ठा को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। पिछले सात वर्षों से शिक्षामित्र राजनीतिक छल-प्रपंच का शिकार हो रहे हैं। कभी कोई हमारी भावनाओं के साथ खेलता है तो कभी कोई हमारी क्षमता पर ताने मारने का काम करता है। सरकार को शिक्षामित्रों की समस्या पर गंभीरता से विचार करने की जरुरत है। हमे खैरात नहीं हक चाहिए, लेकिन शर्तों के अधीन होकर सहूलियतें मंजूर नहीं हैं। वर्तमान शैक्षिक माहौल पर टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी भी दल के एजेंडे में शिक्षा शामिल नहीं है। कोई शिक्षा में सुधार की बात नहीं करता। सरकारें शैक्षिक सुधार के नाम पर ढकोसलेबाजी बंद करें अन्यथा वोट की राजनीति से व्यवस्था परिवर्तन की कोई गुंजाइश नहीं है। मतदाताओं से अपील
-लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए मतदान अवश्य करें।
-जिसने नहीं किया मतदान, उसका नहीं होता सम्मान। प्रमुख राष्ट्रीय मुद्दे
-शिक्षामित्र मामले का उचित समाधान निकाला जाए।
-एक देश, एक पाठ्यक्रम लागू किया जाए।
-ददरी मेला को राष्ट्रीय पहचान दिया जाए। प्रमुख राज्यस्तरीय मुद्दे
-खाली पदों पर जल्द हो नियुक्ति।
-अदालती पेच से मुक्त हों नौकरियां।
-संविदाकर्मियों का भविष्य सुरक्षित किया जाए। प्रमुख स्थानीय मुद्दे
-चिकित्सा व्यवस्था दुरुस्त की जाए।
-रोजगार के साधन उपलब्ध कराए जाएं।
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कभी इस पाले में तो कभी उस पाले में दर-दर भटक रहे हैं। इस दरम्यान देश व प्रदेश में निजाम बदला लेकिन व्यवस्था नहीं बदली। प्रशिक्षण से लगायत सुप्रीम कोर्ट के आदेश तक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक ²ष्टि से इन्हें हर मोड़ पर तिरस्कृत किया गया लेकिन इनकी व्यथा और दर्द को किसी ने समझने की कोशिश नहीं की।
शिक्षामित्रों ने कहा कि सरकार की नीतियों की वजह से हम समाज में हेय दृष्टि से देखे जा रहे हैं। कभी योग्यता को लेकर कटाक्ष किया जाता है तो कभी शिक्षण प्रक्रिया ही सवालों के घेरे में होती है। सिस्टम ने शिक्षामित्रों को समाज के निचले पायदान पर पहुंचा दिया है। आज सरकार व सिस्टम ने शिक्षामित्रों को चुनावी कार्य से अलग कर हमारी निष्ठा को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। पिछले सात वर्षों से शिक्षामित्र राजनीतिक छल-प्रपंच का शिकार हो रहे हैं। कभी कोई हमारी भावनाओं के साथ खेलता है तो कभी कोई हमारी क्षमता पर ताने मारने का काम करता है। सरकार को शिक्षामित्रों की समस्या पर गंभीरता से विचार करने की जरुरत है। हमे खैरात नहीं हक चाहिए, लेकिन शर्तों के अधीन होकर सहूलियतें मंजूर नहीं हैं। वर्तमान शैक्षिक माहौल पर टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी भी दल के एजेंडे में शिक्षा शामिल नहीं है। कोई शिक्षा में सुधार की बात नहीं करता। सरकारें शैक्षिक सुधार के नाम पर ढकोसलेबाजी बंद करें अन्यथा वोट की राजनीति से व्यवस्था परिवर्तन की कोई गुंजाइश नहीं है। मतदाताओं से अपील
-लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए मतदान अवश्य करें।
-जिसने नहीं किया मतदान, उसका नहीं होता सम्मान। प्रमुख राष्ट्रीय मुद्दे
-शिक्षामित्र मामले का उचित समाधान निकाला जाए।
-एक देश, एक पाठ्यक्रम लागू किया जाए।
-ददरी मेला को राष्ट्रीय पहचान दिया जाए। प्रमुख राज्यस्तरीय मुद्दे
-खाली पदों पर जल्द हो नियुक्ति।
-अदालती पेच से मुक्त हों नौकरियां।
-संविदाकर्मियों का भविष्य सुरक्षित किया जाए। प्रमुख स्थानीय मुद्दे
-चिकित्सा व्यवस्था दुरुस्त की जाए।
-रोजगार के साधन उपलब्ध कराए जाएं।
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