शिक्षकों के तबादले के सम्बन्ध में अहम फैसला

 समय के साथ नियमों में बदलाव न हो तो वह जनोपयोगी नहीं रह जाते और उप्र बेसिक शिक्षा अधिनियम इसका एक उदाहरण है। इस अधिनियम में एक व्यवस्था यह भी है कि ग्रामीण क्षेत्रों के परिषदीय विद्यालयों में

नियुक्त किए गए अध्यापकों का शहर में तबादला नहीं किया जाएगा और न ही शहर में तैनात शिक्षक ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानांतरित हो सकेंगे। संभव है कि जिस समय यह व्यवस्था की गई हो, उस समय ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों की घोर किल्लत हो और चयन के बाद अध्यापक वहां न जाना चाहते हों और सरकार ने अधिनियम बनाकर ग्रामीण क्षेत्रों में जाना बाध्यकारी कर दिया हो। इसके बाद जो भी नियुक्तियां हुईं वह ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ही हुईं। इससे परिषदीय विद्यालयों में शिक्षकों की कमी निश्चित रूप से दूर हुई लेकिन, यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए था कि शहरों में भी शिक्षक सेवानिवृत्त हो रहे हैं और वहां टीचरों की किल्लत हो रही है। इसकी अनदेखी हुई और अब हाल यह है कि शहरों में बड़ी संख्या में ऐसे विद्यालय हैं, जहां या तो टीचर ही नहीं हैं और हैं भी तो मात्र एक ही।

हजारों शिक्षक ऐसे हैं जो सालों साल से ग्रामीण क्षेत्रों के परिषदीय विद्यालयों में पढ़ा रहे हैं और इंतजार कर रहे हैं कि कब शहर में ट्रांसफर किए जाने का अवसर मिलेगा।

ऐसी स्थिति में शहर और ग्रामीण का विभाजन खत्म करने का राज्य सरकार का फैसला उन शिक्षकों को राहत पहुंचाएगा जो बीमारी या अन्य कारणों से शहर में नियुक्ति चाहते हैं। विशेष रूप से महिला शिक्षकों को इसका लाभ मिल सकेगा जो विद्यालय आने की वजह से परिवार पर ध्यान नहीं दे पातीं। प्रदेश में लगभग 1.59 लाख परिषदीय स्कूल हैं, जिनमें से 4583 विद्यालय नगरीय क्षेत्रों में हैं। परिषदीय स्कूलों में अंतरजनपदीय तबादले होते रहे हैं और इसकी एक विस्तृत नियमावली भी बनी है। इस नियमावली में प्राथमिकता के अनुसार ही स्थानांतरण की सुविधा दी गई है। अब यदि ग्रामीण क्षेत्रों से शहर में ट्रांसफर का मौका मिलता है तो अधिकांश शिक्षक अपनी नियुक्ति वहीं कराना चाहेंगे, इसलिए विभाग को अधिनियम में परिवर्तन करने पर कुछ शर्ते अनिवार्य रूप से रखनी होंगी ताकि सिर्फ जरूरतमंदों को इसका लाभ मिल सके।