‘हैलो दोस्तों, मैं हूं तोता। इस पाठ में आपका स्वागत है..’ जैसे रोचक अंदाज में अब परिषदीय विद्यालयों के बच्चे को भी यूट्यूब के जरिये पढ़ाया जा सकेगा। ऐसा संभव हो सकेगा प्रदेश के सभी 1.59 लाख परिषदीय विद्यालयों को टैबलेट से लैस करने का निर्णय से। कोरोना संकट के दौरान ई-लर्निग यानी ऑनलाइन पढ़ाई की जो राह निकली है, उसे एक नई दिशा मिलेगी। कुछ सुविधा संपन्न स्कूलों या लोगों के बच्चों तक सीमित न रह कर सभी छात्र
लाभान्वित होंगे। दो राय नहीं कि परिषदीय विद्यालय पठन-पाठन व्यवस्था के मेरुदंड हैं। सबसे ज्यादा बच्चे इन्हीं विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करते हैं। गंवई इलाकों में तो सारा भार इन्हीं विद्यालयों पर है। इस सत्य के साथ यह स्वीकार करने के लिए भी बाध्य होना पड़ता है कि इन्हें अव्यवस्थाओं से मुक्ति नहीं मिल पाई है। बुनियादी सुविधाओं में काफी हद तक सुधार आया है, फिर भी करने के लिए बहुत कुछ शेष है। अव्यवस्थाओं की एक वजह है शिक्षण या शिक्षणोतर में कार्य में संलग्न लोगों का नियमित विद्यालय में उपस्थित न होना। ऐसे में शिक्षकों की बायोमीटिक प्रणाली या आवश्यकता पड़ने पर ऑनलाइन उपस्थिति भी टैबलेट के जरिये जांची जा सकेगी। सबसे अच्छी बात है कि यह टैबलेट विद्यालयों को दिए जा रहे हैं। इसे पूर्व में छात्रों को लैपटॉप बांटे जाने से बेहतर कहा जाएगा। परिषदीय विद्यालयों के पाठ्यक्रम और अन्य गतिविधियों में बदलाव की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जाती रही है। इसके लिए केंद्रीय विद्यालयों का अनुसरण किया जा सकता है। पठन-पाठन की निगरानी के लिए ग्राम शिक्षा समितियों को सक्रिय करना बेहद जरूरी है। ग्राम प्रधान की अध्यक्षता में गठित होने वाली इस समिति में तीन अभिभावकों, एक प्रधानाध्यापक को शामिल करने का प्रविधान है। अभिभावकों सदस्यों में एक महिला का होना अनिवार्य है। धीरे-धीरे ही सही, प्रदेश सरकार को परिषदीय स्कूलों को अव्यवस्थाओं से मुक्त करना होगा, स्पष्ट है कि सही मायने में तभी पढ़ेगा इंडिया जब परिषदीय स्कूलों में पठन-पाठन की व्यवस्था का उन्नयन होगा।