*शिक्षकों_के_बीच_बढ़ती_दूरियां*
पिछले कुछ वर्षों में मैंने अनुभव किया है कि शिक्षकों के बीच अब बहुत मनमुटाव है , अब वे टीम नहीं बना पा रहे , न ज्यादा कोई किसी के बारे में जानता है और न ही जानना चाहता है जबकि पहले के समय मे इसके ठीक विपरीत था - पुराने शिक्षक आज भी अगर कहीं मिल जाएंगे तो वो एक दूसरे साथी की पूरी जन्मकुंडली तक बता देंगे । आज के समय मे अब ये लगभग खत्म हो रहा है । कारण कई हैं इसके -
क्षेत्रीय शिक्षकों का न होना , आपसी जुड़ाव की भावना खत्म होना , अपने काम से काम रखना , नैतिकता का पतन होना, दूसरे का कार्य मैं क्यों करूँ का भाव आदि ।
पिछले कुछ समय को देखूँ तो पाता हूँ कि अब ये खाई और बढ़ रही है , हर विद्यालय में आप अगर अलग अलग बात करें शिक्षकों से तो आप पाएंगे कि हेडमास्टर / इंचार्ज अपने सहायक शिक्षकों से असंतुष्ट नजर आएगा और सहायक शिक्षक अपने हेडमास्टर / इंचार्ज से । कारण भी हैं इसके ऐसा होने के । टीम भावना लगभग खत्म है । बस विद्यालय समय तक पहचान है उसके बाद तुम कौन ? ये भावना प्रबल है । मैं बेसिक के विद्यालयों में योजनाओं के क्रियान्वित न हो पाने में एक कारण इसे भी मानता हूँ ।
मुझे कहने में कोई गुरेज नहीं कि आजकल योजनाएं भी ऐसी ही बन रही हैं कि अब ये खाई और बढ़ती जा रही है , स्थिति ये आ रही है कि आखिर मुझसे क्या ? तुम जिम्मेदार हो इसके लिए , ये तो तुम्हारे जिम्मे था , हमसे क्या , कार्यवाही तुम पर होगी हमसे क्या ।
मुझे लगता है कि शिक्षा विभाग और शिक्षाविदों को एकबार इस विषय पर सोंचना पड़ेगा , जिम्मेदारी तय होनी चाहिए ये एकदम सही है लेकिन कुछ छूट रहा है जिसके चलते विद्यालयों में अब टीम भावना नहीं बन पा रही । एक दूसरे के प्रति मनमुटाव / खाई बढ़ रही है । इसके लिए कोई गूगल मीट / यू ट्यूब सेशन / ऑनलाइन प्रशिक्षण दे देने से काम नहीं बनने वाला । आवश्यकता कुछ और है । समझना पड़ेगा इस आवश्यकता को कि ये दूरियां कम कैसे हों , क्या प्रशासनिक स्तर पर तो कुछ ऐसे निर्णय नहीं लिए जा रहे जिसका असर यहां दिख रहा है ।इसपर विचार करने की आवश्यकता है अगर भविष्य में इन सरकारी विद्यालयों में एक बेहतर नींव चाहते हैं तो ।
ख़ैर आपको क्या लगता है कि ये दूरियां आपको भी नजर आ रही हैं ? अगर हाँ तो कैसे इन्हें पाटा जा सकता है ? क्या रास्ते हो सकते हैं हर जिम्मेदार पक्ष के ...