डॉ. अनिल यादव के अध्यक्ष बनने के बाद विवादों में आई तेजी
इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) भर्ती के लिए कम और विवादों के अधिक जाना जाता है। भर्तियों को लेकर पहले भी समय-समय पर सवाल और विवाद उठते रहे हैं। लेकिन डॉ. अनिल यादव के आयोग का अध्यक्ष बनने के बाद इसमें और तेजी आई है।
विवाद की शुरुआत उनके जॉइन करने के महज महीने भर बाद मई-2013 से हुई। आयोग की भर्तियों में त्रिस्तरीय आरक्षण व्यवस्था लागू होने के विरोध में जो आंदोलन शुरू हुआ, वह अभी तक जारी है। पर, खास बात यह है कि चार मौकों पर आयोग को अपना फैसला तक बदलना पड़ा। तकरीबन हर परीक्षा में शिकायत आती है कि आयोग प्रश्नों के गलत को उत्तर सही मान लेता है और इसी वजह से हर बार एक नया विवाद पैदा हो रहा है। ऐसे मामलों में परीक्षा स्थगित और रद्द किए जाने की मांग लगातार उठती रही है।
रिजल्ट के लिए दो-दो साल तक इंतजार करते हैं अभ्यर्थी
लखनऊ (ब्यूरो)। यूपी लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) की लचर कार्यप्रणाली अभ्यर्थियों के कॅरिअर के साथ खिलवाड़ कर रही है। इसकी वजह से पीसीएस के अभ्यर्थियों को दो-दो साल तक रिजल्ट का इंतजार करना पड़ता है।
यूपी पीसीएस 2013 का फाइनल रिजल्ट इस वर्ष 26 मार्च को घोषित किया गया। जबकि इसका प्रारंभिक परीक्षा मई-2013 में और उसके बाद मुख्य परीक्षा का आयोजन अप्रैल- 2014 में हुआ। मुख्य परीक्षा के सफल अभ्यर्थियों का इंटरव्यू इस साल फरवरी व मार्च किया गया। इसी तरह पीसीएस-2014 के प्रारंभिक परीक्षा मई-2014 और मुख्य परीक्षा अगस्त 2014 में किया गया लेकिन मुख्य परीक्षा का परिणाम अभी तक घोषित नहीं हुआ। इस पर सिविल सेवा की तैयारी करने वाले पवन मिश्रा कहते हैं कि परीक्षा कार्यक्रम पटरी पर न होने से अभ्यर्थियों को बड़ी परेशान उठानी पड़ती है। पीसीएस-2014 का अंतिम परिणाम आने में भी दो साल का समय लग जाएगा। अब पर्चा लीक होने से अभ्यर्थियों की मुसीबत दोगुनी हो गई है।
प्रश्न के गलत जवाब को ठहराया सही
पीसीएस-जे 2011 की प्रारंभिक परीक्षा के एक प्रश्न पत्र में 13 सवाल ऐसे थे, जिनके गलत जवाब को आयोग ने सही माना। यही नहीं आयोग ने अभ्यर्थियों की आपत्तियों को दरकिनार कर रिजल्ट भी घोषित कर दिया गया। हालांकि हाईकोर्ट के आदेश के बाद ही आयोग ने संशोधित रिजल्ट जारी किया। इतना ही नहीं, कई प्रश्नों के जवाब को लेकर आयोग को पीसीएस-2011 मुख्य परीक्षा का भी रिजल्ट संशोधित करना पड़ा।
स्केलिंग पर भी उठते रहे सवाल
आयोग में रिजल्ट तैयार करते समय स्केलिंग पद्धति का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें अभ्यर्थी को मिले अंक और परीक्षक की ओर से दिए गए अंक में काफी अंतर हो जाता है। इसके विरोध में भी प्रतियोगी लगातार आंदोलन कर रहे हैं।
भर्ती में आरक्षण की त्रिस्तरीय व्यवस्था का प्रदेश भर में विरोध
मई 2013 में आयोग बोर्ड ने भर्ती में आरक्षण की त्रिस्तरीय व्यवस्था लागू करने का फैसला किया था। इसका प्रदेश भर में जमकर विरोध होने पर राज्य सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा। इसके बाद इस फैसले को वापस ले लिया गया।
इंटरव्यू में नियमों की अनदेखी
आमतौर पर व्यवस्था होती है कि साक्षात्कार में अभ्यर्थी को न्यूनतम 40 और अधिकतम 80 फीसदी अंक दिए जा सकते हैं। इससे कम या अधिक अंक दिए जाने पर साक्षात्कार पैनल में शामिल विशेषज्ञों को कारण बताना होता है लेकिन पीसीएस-2011 में इस मानक का ध्यान नहीं रखा गया। आयोग की ओर से इस बारे में कोई स्पष्टीकरण भी नहीं जारी किया गया कि साक्षात्कार को लेकर क्या नीति है।
साक्षात्कार में खास जाति के अभ्यर्थियों को दिए अधिक अंक
पीसीएस-2011 के अंतिम परिणाम के बाद तो आयोग को एक खास ‘जाति’ की संज्ञा दे दी गई। इस भर्ती परीक्षा में एक बिरादरी के ज्यादा लोग सफल हुए हैं। इसके विरोध में आंदोलनरत प्रतियोगियों ने साक्षात्कार में शामिल हर अभ्यर्थी का मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू में मिले अंकों का विवरण इकट्ठा किया। इसमें साफ था कि एक ही जाति के अभ्यर्थियों को इंटरव्यू में खुलकर नंबर बांटे गए जबकि दूसरों को काफी कम नंबर मिले। इसके बाद से आयोग ने अभ्यर्थियों के प्राप्तांक देखने की प्रक्रिया काफी जटिल कर दी है।
सरकारी नौकरी - Government of India Jobs Originally published for http://e-sarkarinaukriblog.blogspot.com/ Submit & verify Email for Latest Free Jobs Alerts Subscribe
इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) भर्ती के लिए कम और विवादों के अधिक जाना जाता है। भर्तियों को लेकर पहले भी समय-समय पर सवाल और विवाद उठते रहे हैं। लेकिन डॉ. अनिल यादव के आयोग का अध्यक्ष बनने के बाद इसमें और तेजी आई है।
विवाद की शुरुआत उनके जॉइन करने के महज महीने भर बाद मई-2013 से हुई। आयोग की भर्तियों में त्रिस्तरीय आरक्षण व्यवस्था लागू होने के विरोध में जो आंदोलन शुरू हुआ, वह अभी तक जारी है। पर, खास बात यह है कि चार मौकों पर आयोग को अपना फैसला तक बदलना पड़ा। तकरीबन हर परीक्षा में शिकायत आती है कि आयोग प्रश्नों के गलत को उत्तर सही मान लेता है और इसी वजह से हर बार एक नया विवाद पैदा हो रहा है। ऐसे मामलों में परीक्षा स्थगित और रद्द किए जाने की मांग लगातार उठती रही है।
रिजल्ट के लिए दो-दो साल तक इंतजार करते हैं अभ्यर्थी
लखनऊ (ब्यूरो)। यूपी लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) की लचर कार्यप्रणाली अभ्यर्थियों के कॅरिअर के साथ खिलवाड़ कर रही है। इसकी वजह से पीसीएस के अभ्यर्थियों को दो-दो साल तक रिजल्ट का इंतजार करना पड़ता है।
यूपी पीसीएस 2013 का फाइनल रिजल्ट इस वर्ष 26 मार्च को घोषित किया गया। जबकि इसका प्रारंभिक परीक्षा मई-2013 में और उसके बाद मुख्य परीक्षा का आयोजन अप्रैल- 2014 में हुआ। मुख्य परीक्षा के सफल अभ्यर्थियों का इंटरव्यू इस साल फरवरी व मार्च किया गया। इसी तरह पीसीएस-2014 के प्रारंभिक परीक्षा मई-2014 और मुख्य परीक्षा अगस्त 2014 में किया गया लेकिन मुख्य परीक्षा का परिणाम अभी तक घोषित नहीं हुआ। इस पर सिविल सेवा की तैयारी करने वाले पवन मिश्रा कहते हैं कि परीक्षा कार्यक्रम पटरी पर न होने से अभ्यर्थियों को बड़ी परेशान उठानी पड़ती है। पीसीएस-2014 का अंतिम परिणाम आने में भी दो साल का समय लग जाएगा। अब पर्चा लीक होने से अभ्यर्थियों की मुसीबत दोगुनी हो गई है।
प्रश्न के गलत जवाब को ठहराया सही
पीसीएस-जे 2011 की प्रारंभिक परीक्षा के एक प्रश्न पत्र में 13 सवाल ऐसे थे, जिनके गलत जवाब को आयोग ने सही माना। यही नहीं आयोग ने अभ्यर्थियों की आपत्तियों को दरकिनार कर रिजल्ट भी घोषित कर दिया गया। हालांकि हाईकोर्ट के आदेश के बाद ही आयोग ने संशोधित रिजल्ट जारी किया। इतना ही नहीं, कई प्रश्नों के जवाब को लेकर आयोग को पीसीएस-2011 मुख्य परीक्षा का भी रिजल्ट संशोधित करना पड़ा।
स्केलिंग पर भी उठते रहे सवाल
आयोग में रिजल्ट तैयार करते समय स्केलिंग पद्धति का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें अभ्यर्थी को मिले अंक और परीक्षक की ओर से दिए गए अंक में काफी अंतर हो जाता है। इसके विरोध में भी प्रतियोगी लगातार आंदोलन कर रहे हैं।
भर्ती में आरक्षण की त्रिस्तरीय व्यवस्था का प्रदेश भर में विरोध
मई 2013 में आयोग बोर्ड ने भर्ती में आरक्षण की त्रिस्तरीय व्यवस्था लागू करने का फैसला किया था। इसका प्रदेश भर में जमकर विरोध होने पर राज्य सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा। इसके बाद इस फैसले को वापस ले लिया गया।
इंटरव्यू में नियमों की अनदेखी
आमतौर पर व्यवस्था होती है कि साक्षात्कार में अभ्यर्थी को न्यूनतम 40 और अधिकतम 80 फीसदी अंक दिए जा सकते हैं। इससे कम या अधिक अंक दिए जाने पर साक्षात्कार पैनल में शामिल विशेषज्ञों को कारण बताना होता है लेकिन पीसीएस-2011 में इस मानक का ध्यान नहीं रखा गया। आयोग की ओर से इस बारे में कोई स्पष्टीकरण भी नहीं जारी किया गया कि साक्षात्कार को लेकर क्या नीति है।
साक्षात्कार में खास जाति के अभ्यर्थियों को दिए अधिक अंक
पीसीएस-2011 के अंतिम परिणाम के बाद तो आयोग को एक खास ‘जाति’ की संज्ञा दे दी गई। इस भर्ती परीक्षा में एक बिरादरी के ज्यादा लोग सफल हुए हैं। इसके विरोध में आंदोलनरत प्रतियोगियों ने साक्षात्कार में शामिल हर अभ्यर्थी का मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू में मिले अंकों का विवरण इकट्ठा किया। इसमें साफ था कि एक ही जाति के अभ्यर्थियों को इंटरव्यू में खुलकर नंबर बांटे गए जबकि दूसरों को काफी कम नंबर मिले। इसके बाद से आयोग ने अभ्यर्थियों के प्राप्तांक देखने की प्रक्रिया काफी जटिल कर दी है।
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