तैनाती : सौ लोगों का स्टाफ1इलाहाबाद के महाविद्यालय में 49 स्टाफ के पद स्वीकृत
हैं। 44 पदों पर तैनाती है। इसमें एक प्राचार्य व 22 शिक्षिकाएं हैं।
चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी 14 हैं। दो लिपिक, एक चालक और चार अन्य स्टाफ भी
हैं। आगरा के महाविद्यालय में एक प्रभारी प्राचार्य के अलावा 14
शिक्षिकाएं, दो लिपिक और सात चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के अलावा अन्य
स्टाफ भी हैं जिनकी पगार 35 से 60 हजार रुपये के बीच है।
पढ़ने वाले बारह और पढ़ाने वाले बाइस
होता था प्रशिक्षण1शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) लागू होने से पहले इन महाविद्यालयों में प्रशिक्षु शिक्षकों को सार्टिफिकेट कोर्स की ट्रेनिंग की दी जाती थी, लेकिन शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) और आरटीई लागू होने के बाद यह कोर्स बंद कर दिया गया। राजकीय शिशु प्रशिक्षण महिला महाविद्यालय, इलाहाबाद की प्राचार्य वर्चस्विनी जौहरी ने बताया कि 2007 बैच की छात्रएं 2011 में दाखिला लेकर प्रशिक्षण के लिए आईं थी। दो वर्ष का 2013 में प्रशिक्षण पूरा होने के बाद पाठ्यक्रम बंद कर दिया गया। वह यह स्वीकार करती हैं कि वर्तमान में बच्चों की संख्या के आधार पर शिक्षकों की उपस्थिति ज्यादा है। समय-समय पर प्रवक्ताओं और अन्य स्टाफ को जेडी और अन्य कार्यालय से संबद्ध भी किया जाता है।
होता था प्रशिक्षण1शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) लागू होने से पहले इन महाविद्यालयों में प्रशिक्षु शिक्षकों को सार्टिफिकेट कोर्स की ट्रेनिंग की दी जाती थी, लेकिन शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) और आरटीई लागू होने के बाद यह कोर्स बंद कर दिया गया। राजकीय शिशु प्रशिक्षण महिला महाविद्यालय, इलाहाबाद की प्राचार्य वर्चस्विनी जौहरी ने बताया कि 2007 बैच की छात्रएं 2011 में दाखिला लेकर प्रशिक्षण के लिए आईं थी। दो वर्ष का 2013 में प्रशिक्षण पूरा होने के बाद पाठ्यक्रम बंद कर दिया गया। वह यह स्वीकार करती हैं कि वर्तमान में बच्चों की संख्या के आधार पर शिक्षकों की उपस्थिति ज्यादा है। समय-समय पर प्रवक्ताओं और अन्य स्टाफ को जेडी और अन्य कार्यालय से संबद्ध भी किया जाता है।रमण शुक्ला, इलाहाबाद :1सुनने में अजीब लगता है लेकिन प्रदेश के राजकीय शिशु प्रशिक्षण महाविद्यालय शिक्षकों के ‘रेस्ट हाउस’ बनते जा रहे हैं। इलाहाबाद स्थिति महाविद्यालय में ही 12 बच्चों के लिए 22 शिक्षकों की तैनाती है। आगरा में भी कमोबेश यही स्थिति है। यह हाल तब है जब सरकारी शिक्षक प्रशिक्षक संस्थानों और राजकीय कॉलेजों में बड़ी संख्या में प्रवक्ता के पद खाली हैं।1प्रदेश सरकार के दोनों राजकीय शिशु प्रशिक्षण महिला महाविद्यालय, इलाहाबाद और आगरा में तीन दर्जन से ज्यादा शिक्षिकाएं (प्रवक्ता) महज दो से ढाई दर्जन बच्चों को पढ़ा रही हैं। वैसे इनकी मूल जिम्मेदारी शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों में पढ़ाने की है। इन महाविद्यालयों की स्थापना इसलिए हुई थी कि सीटी नर्सरी में पढ़ाने वाले शिक्षकों को बच्चों के रुझान और रुचियों से अवगत कराया जा सके। इसके लिए महाविद्यालय में शिशु पाठशाला भी खोली गई थी। पिछले तीन वर्षो से प्रशिक्षण बंद है। ऐसे में ये शिक्षिकाएं अब शिशु पाठशाला के बच्चों को पढ़ा रही हैं। दोनों महाविद्यालयों के शिशु पाठशाला के उपस्थिति पंजिका में बच्चों की संख्या सौ अधिक है लेकिन आते दो से ढाई दर्जन ही हैं।रमण शुक्ला, इलाहाबाद :1सुनने में अजीब लगता है लेकिन प्रदेश के राजकीय शिशु प्रशिक्षण महाविद्यालय शिक्षकों के ‘रेस्ट हाउस’ बनते जा रहे हैं। इलाहाबाद स्थिति महाविद्यालय में ही 12 बच्चों के लिए 22 शिक्षकों की तैनाती है। आगरा में भी कमोबेश यही स्थिति है। यह हाल तब है जब सरकारी शिक्षक प्रशिक्षक संस्थानों और राजकीय कॉलेजों में बड़ी संख्या में प्रवक्ता के पद खाली हैं।1प्रदेश सरकार के दोनों राजकीय शिशु प्रशिक्षण महिला महाविद्यालय, इलाहाबाद और आगरा में तीन दर्जन से ज्यादा शिक्षिकाएं (प्रवक्ता) महज दो से ढाई दर्जन बच्चों को पढ़ा रही हैं। वैसे इनकी मूल जिम्मेदारी शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों में पढ़ाने की है। इन महाविद्यालयों की स्थापना इसलिए हुई थी कि सीटी नर्सरी में पढ़ाने वाले शिक्षकों को बच्चों के रुझान और रुचियों से अवगत कराया जा सके। इसके लिए महाविद्यालय में शिशु पाठशाला भी खोली गई थी। पिछले तीन वर्षो से प्रशिक्षण बंद है। ऐसे में ये शिक्षिकाएं अब शिशु पाठशाला के बच्चों को पढ़ा रही हैं। दोनों महाविद्यालयों के शिशु पाठशाला के उपस्थिति पंजिका में बच्चों की संख्या सौ अधिक है लेकिन आते दो से ढाई दर्जन ही हैं।
पढ़ने वाले बारह और पढ़ाने वाले बाइस
होता था प्रशिक्षण1शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) लागू होने से पहले इन महाविद्यालयों में प्रशिक्षु शिक्षकों को सार्टिफिकेट कोर्स की ट्रेनिंग की दी जाती थी, लेकिन शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) और आरटीई लागू होने के बाद यह कोर्स बंद कर दिया गया। राजकीय शिशु प्रशिक्षण महिला महाविद्यालय, इलाहाबाद की प्राचार्य वर्चस्विनी जौहरी ने बताया कि 2007 बैच की छात्रएं 2011 में दाखिला लेकर प्रशिक्षण के लिए आईं थी। दो वर्ष का 2013 में प्रशिक्षण पूरा होने के बाद पाठ्यक्रम बंद कर दिया गया। वह यह स्वीकार करती हैं कि वर्तमान में बच्चों की संख्या के आधार पर शिक्षकों की उपस्थिति ज्यादा है। समय-समय पर प्रवक्ताओं और अन्य स्टाफ को जेडी और अन्य कार्यालय से संबद्ध भी किया जाता है।
होता था प्रशिक्षण1शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) लागू होने से पहले इन महाविद्यालयों में प्रशिक्षु शिक्षकों को सार्टिफिकेट कोर्स की ट्रेनिंग की दी जाती थी, लेकिन शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) और आरटीई लागू होने के बाद यह कोर्स बंद कर दिया गया। राजकीय शिशु प्रशिक्षण महिला महाविद्यालय, इलाहाबाद की प्राचार्य वर्चस्विनी जौहरी ने बताया कि 2007 बैच की छात्रएं 2011 में दाखिला लेकर प्रशिक्षण के लिए आईं थी। दो वर्ष का 2013 में प्रशिक्षण पूरा होने के बाद पाठ्यक्रम बंद कर दिया गया। वह यह स्वीकार करती हैं कि वर्तमान में बच्चों की संख्या के आधार पर शिक्षकों की उपस्थिति ज्यादा है। समय-समय पर प्रवक्ताओं और अन्य स्टाफ को जेडी और अन्य कार्यालय से संबद्ध भी किया जाता है।रमण शुक्ला, इलाहाबाद :1सुनने में अजीब लगता है लेकिन प्रदेश के राजकीय शिशु प्रशिक्षण महाविद्यालय शिक्षकों के ‘रेस्ट हाउस’ बनते जा रहे हैं। इलाहाबाद स्थिति महाविद्यालय में ही 12 बच्चों के लिए 22 शिक्षकों की तैनाती है। आगरा में भी कमोबेश यही स्थिति है। यह हाल तब है जब सरकारी शिक्षक प्रशिक्षक संस्थानों और राजकीय कॉलेजों में बड़ी संख्या में प्रवक्ता के पद खाली हैं।1प्रदेश सरकार के दोनों राजकीय शिशु प्रशिक्षण महिला महाविद्यालय, इलाहाबाद और आगरा में तीन दर्जन से ज्यादा शिक्षिकाएं (प्रवक्ता) महज दो से ढाई दर्जन बच्चों को पढ़ा रही हैं। वैसे इनकी मूल जिम्मेदारी शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों में पढ़ाने की है। इन महाविद्यालयों की स्थापना इसलिए हुई थी कि सीटी नर्सरी में पढ़ाने वाले शिक्षकों को बच्चों के रुझान और रुचियों से अवगत कराया जा सके। इसके लिए महाविद्यालय में शिशु पाठशाला भी खोली गई थी। पिछले तीन वर्षो से प्रशिक्षण बंद है। ऐसे में ये शिक्षिकाएं अब शिशु पाठशाला के बच्चों को पढ़ा रही हैं। दोनों महाविद्यालयों के शिशु पाठशाला के उपस्थिति पंजिका में बच्चों की संख्या सौ अधिक है लेकिन आते दो से ढाई दर्जन ही हैं।रमण शुक्ला, इलाहाबाद :1सुनने में अजीब लगता है लेकिन प्रदेश के राजकीय शिशु प्रशिक्षण महाविद्यालय शिक्षकों के ‘रेस्ट हाउस’ बनते जा रहे हैं। इलाहाबाद स्थिति महाविद्यालय में ही 12 बच्चों के लिए 22 शिक्षकों की तैनाती है। आगरा में भी कमोबेश यही स्थिति है। यह हाल तब है जब सरकारी शिक्षक प्रशिक्षक संस्थानों और राजकीय कॉलेजों में बड़ी संख्या में प्रवक्ता के पद खाली हैं।1प्रदेश सरकार के दोनों राजकीय शिशु प्रशिक्षण महिला महाविद्यालय, इलाहाबाद और आगरा में तीन दर्जन से ज्यादा शिक्षिकाएं (प्रवक्ता) महज दो से ढाई दर्जन बच्चों को पढ़ा रही हैं। वैसे इनकी मूल जिम्मेदारी शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों में पढ़ाने की है। इन महाविद्यालयों की स्थापना इसलिए हुई थी कि सीटी नर्सरी में पढ़ाने वाले शिक्षकों को बच्चों के रुझान और रुचियों से अवगत कराया जा सके। इसके लिए महाविद्यालय में शिशु पाठशाला भी खोली गई थी। पिछले तीन वर्षो से प्रशिक्षण बंद है। ऐसे में ये शिक्षिकाएं अब शिशु पाठशाला के बच्चों को पढ़ा रही हैं। दोनों महाविद्यालयों के शिशु पाठशाला के उपस्थिति पंजिका में बच्चों की संख्या सौ अधिक है लेकिन आते दो से ढाई दर्जन ही हैं।
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