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इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश द्वारा निकाले गए निष्कर्ष : 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Latest News

शिक्षा मित्रों में हाहाकार मचाने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश की कॉपी आ चुकी है। आदेश 91 पेज का है जिसको कोर्ट ने 4 भागों में विभक्त किया है। आदेश पढने में मुझे लगभग 2:30 घंटे लगे हैं। जितना मुझे समझ आया, उसको सरल शब्दों में पेश कर रहा हूँ। आदेश के चार भाग निम्न हैं :
१) The legislative, Regulatory and Administrative Framework (केस से सम्बन्धित समस्त एक्ट एवं नियमों का विवरण)
२) Submissions (समस्त पार्टियों के द्वारा रखे गए तर्क)
३) Analysis (कोर्ट द्वारा पार्टियों द्वारा रखे गए तर्कों की केस से सम्बन्धित एक्ट एवं नियमों के अंतर्गत समीक्षा)
४) Operative Orders (कोर्ट का निर्णय)
प्रथम पार्ट में कोर्ट ने केस से सम्बन्धित समस्त एक्ट एवं नियमों का विवरण लिखा है, अर्थात कौन सा एक्ट क्या कहता है। सबकी डेफिनिशन, नियम तथा कानूनी दस्तावेजों का जिक्र है। हिंदी में समझिये, यह पार्ट महा बोरिंग है, यदि अनिद्रा से ग्रसित हैं तो इसको पढ़िए, 100% नींद आ जाएगी।
द्वितीय पार्ट में कोर्ट ने समस्त पार्टियों (बीटीसी/बीएड, राज्य सरकार, शिक्षा मित्र, एनसीटीई तथा केंद्र सरकार) के द्वारा केस से सम्बंधित मुख्य तथ्यों को रखा है जिसकी जानकारी आप लोगों को पहले से है फेसबुक पर एक जमाने से उन तथ्यों से सम्बंधित पोस्ट आती रही हैं।
तृतीय भाग में कोर्ट ने उपरोक्त तथ्यों का विश्लेषण किया है। कोर्ट द्वारा निकाले गए निष्कर्ष निम्न हैं :
● उत्तर प्रदेश के समस्त प्राथमिक अध्यापकों की नियुक्ति अध्यापक सेवा नियमावली 1981 के अधीन होती है।
● उत्तर प्रदेश में अध्यापक बनने की योग्यता 'स्नातक' + 'द्विवर्षीय बीटीसी कोर्स' तथा अध्यापक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करना है।
● एनसीटीई एक्ट 1993 के सेक्शन 32(2)(d) के अनुसार एनसीटीई के पास अध्यापक के पद के लिए न्यूनतम योग्यता का निर्धारण करने के लिए रेगुलेशन बनाने की शक्ति है।
● एनसीटीई रेगुलेशन 2001 के अनुसार अध्यापक बनने की योग्यता 'इंटरमीडिएट' तथा 'द्विवर्षीय बीटीसी' कोर्स है।
● बीएड को बीटीसी के बराबर नहीं कहा जा सकता।
● 1999 के बाद नियुक्त शिक्षा मित्र एनसीटीई रेगुलेशन 2001 में निहित न्यूनतम योग्यता पूरी नहीं करते अतः उनको शिक्षक नहीं कहा जा सकता।
● आरटीई एक्ट 2009 के सेक्शन 23(1) के अनुसार अध्यापक बनने हेतु एनसीटीई द्वारा विहित न्यूनतम योग्यता प्राप्त करना अनिवार्य है।
● सेक्शन 23(1) के क्रम में एनसीटीई ने 23 अगस्त 2010 को एक नोटिफिकेशन के माध्यम से अध्यापक बनने की न्यूनतम योग्यता 'इंटरमीडिएट' + 'द्विवर्षीय बीटीसी' + टीईटी कर दी।
● आरटीई एक्ट 2009 का सेक्शन 23(2) केंद्र सरकार को शक्ति देता है कि वह राज्य सरकारों को सेक्शन 23(1) में विहित न्यूनतम योग्यता से अधिकतम 5 साल की छूट दे सके।
● उपरोक्त छूट केवल तब ही दी जा सकती है जब सम्बन्धित राज्य में 'न्यूनतम योग्यता' रखने वाले लोग अथवा 'बीटीसी' प्रशिक्षण देने के लिए पर्याप्त संस्थान न हों।
● एनसीटीई एक्ट के प्रारम्भ के समय जो अध्यापक न्यूनतम योग्यता न धारण करते हों उनको ऐसी योग्यता धारण करने के लिए उनको 5 वर्ष का समय दिया गया।
● 23 अगस्त 2010 को एनसीटीई ने टीईटी पास करना अनिवार्य कर दिया।
● 23 अगस्त 2010 के नोटिफिकेशन के पैरा 4 में एनसीटीई ने मुख्यतः 3 श्रेणी के लोगों को टीईटी से छूट दी है।
१) ऐसे अध्यापक जिनकी नियुक्ति एनसीटीई के 3 सितम्बर 2001 के नोटिफिकशन के बाद तथा नोटिफिकेशन में विहित न्यूनतम योग्यता की शर्तों के अनुरूप हुई।
२) बीएड किये हुए लोग जिन्होंने 6 माह का विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षण पूर्ण किया हो।
३) जिनकी नियुक्ति 3 सितम्बर 2001 के पूर्व हुई।
● 👆 शिक्षा मित्र उपरोक्त तीनों श्रेणियों में किसी में भी नहीं आते हैं।
● शिक्षा मित्रों की नियुक्ति अध्यापक सेवा नियमावली 1981 के अधीन नहीं हुई।
● आरटीई एक्ट 2009 के सेक्शन 23(2) के अंतर्गत दी जाने वाली 5 वर्ष की छूट केवल 'स्थायी नियुक्ति' पाए शिक्षकों के लिए है जिनका चयन अध्यापक सेवा नियमावली 1981 के अंतर्गत हुआ है अर्थात शिक्षा मित्रों को 5 साल वाली छूट का लाभ प्राप्त नहीं है।
‪#‎शिक्षा_मित्रों_के_प्रशिक्षण_से_सम्बन्धित_निष्कर्ष‬
● राज्य सरकार में एनसीटीई से 170000 शिक्षा मित्रों के दूरस्थ माध्यम से बीटीसी प्रशिक्षण की अनुमति मांगी। एनसीटीई ने 14 जनवरी 2011 को केवल 1,24,000 स्नातक पास शिक्षा मित्रों को प्रशिक्षित करने की अनुमति दी, परन्तु राज्य सरकार ने 46000 इंटर पास शिक्षा मित्रों को भी बिना अनुमति के प्रशिक्षण दे दिया।
● एनसीटीई से प्रशिक्षण की अनुमति तथ्यों को छिपा कर मांगी गई थी। राज्य सरकार ने एनसीटीई को नहीं बताया था कि इन शिक्षा मित्रों को 11 माह की संविदा पर रखा गया है।
● एनसीटीई के अनुसार 'टीईटी' को न्यूनतम अर्हता में रखने का कारण गुणवत्ता पूर्ण शिक्षण के राष्ट्रीय मानदंड स्थापित करना है।
● चूँकि एनसीटीई ने बाद में अनुमति कैंसिल नहीं की अतः कोर्ट फिलहाल शिक्षा मित्र प्रशिक्षण को अवैध घोषित करना उचित नहीं समझती है। हालांकि एनसीटीई के पास अधिकार रहेगा कि वह परिक्षण करे कि राज्य सरकार ने शिक्षा मित्रों को प्रशिक्षण देते समय एनसीटीई द्वारा बनाए गए नियम कानून पूरे किये अथवा नहीं।
‪#‎राज्य_सरकार_द्वारा_किये_गए_संशोधन_से_सम्बन्धित_निष्कर्ष‬
● सेक्शन 23(1) में विहित न्यूनतम योग्यता से छूट देने का अधिकार सेक्शन 23(2) के अंतर्गत केवल केंद्र सरकार के पास है जिस क्रम में केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिफिकेशन द्वारा न्यूनतम योग्यता में 31 मार्च 2014 तक छूट दे दी।
● उपरोक्त छूट केवल एक बार के लिए दी गई है तथा भविष्य में ऐसी कोई छूट नहीं दी जाएगी। यह छूट केवल उन लोगों के लिए दी गई है जिन्होंने स्नातक 50% अंको के साथ उत्तीर्ण किया है तथा बी.एड. किया है। (केवल द्विवर्षीय बीटीसी करने से छूट दी गई है)
● शिक्षा मित्रों के लिए किसी भी प्रकार नहीं दी गई है।
● राज्य सरकार को सेक्शन 23(1) में विहित न्यूनतम योग्यता से छूट देने का कोई अधिकार नहीं है।
● राज्य सरकार ने 30 मई 2014 को स्टेट रूल्स में 16A (16 क) संशोधन लाकर न्यूनतम योग्यता से छूट का अधिकार अपने पास सुरक्षित कर लिया जो कि एनसीटीई एक्ट के सेक्शन 23(2) का खुला उल्लंघन है।
‪#‎अनुभव_को_योग्यता_के_बराबर_नहीं_कहा_जा_सकता‬
● अनुभव को योग्यता के बराबर अथवा उसका 'substitute' नहीं कहा जा सकता। यदि किसी व्यक्ति ने किसी पद कई वर्ष कार्य कर के अनुभव प्राप्त किया है फिर भी उस व्यक्ति को सम्बन्धित पद के लिए निर्धारित योग्यता प्राप्त करनी ही होगी। मानवता को आधार मान कर ऐसे व्यक्तियों को निर्धारित योग्यता से छूट नहीं दी जा सकती जबकि निर्धारित योग्यता रखने वाले व्यक्ति मौजूद हैं। यह मानवता का ही आधार है जो कोर्ट योग्य व्यक्ति को ऐसे व्यक्ति से बेहतर समझती है जो निर्धारित योग्यता भी न रखता हो। (State of MP vs. Dharam Bir, SC)
● Shiv Kumar Sharma vs. State of UP के केस में फुल बेंच ने यह निष्कर्ष निकाला कि टीईटी आयोजन इसलिए किया जाता है ताकि अध्यापकों की प्रतिभा के विषय में जाना जा सके, तथा इस बात की जानकारी की जा सके कि वह वास्तव में योग्यता रखते हैं।
‪#‎समायोजन_से_समबन्धित_महत्वपूर्ण_तथ्य‬
● आर्टिकल 14 तथा 16 सरकारी नौकरियों में समानता के अधिकार की बात करते हैं।
● जब तक नियुक्ति संवैधानिक नियमों के अधीन तथा योग्य व्यक्तियों के मध्य खुली प्रतिस्पर्धा के बाद नहीं होती तब तक वह नियुक्त व्यक्ति को किसी प्रकार का अधिकार नहीं देती। (Secretary of state of Karnataka vs. Uma Devi)
● यदि नियुक्ति संविदा पर हुई है तब संविदा अवधि समाप्त होने पर नियुक्ति स्वतः समाप्त हो जाएगी।
● शिक्षा मित्र केवल एक सामुदायिक सेवक मात्र हैं। नियुक्ति के समय प्रत्येक शिक्षा मित्र को इस तथ्य का ज्ञान था।
● शिक्षा मित्र स्कीम मात्र शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए चलाई गई थी, न कि रोजगार के साधन के रूप में।
● सरकार का तर्क "शिक्षा मित्र लगातार 16 वर्ष सेवा दे रहे हैं अतः उनसे टीईटी पास कराने का का कोई अर्थ नहीं है तथा साथ ही साथ प्रदेश में टीईटी पास बीटीसी की कमी है", मान्य नहीं है। 'मात्र बीटीसी पास लोगों की कमी की वजह से किसी को भी निर्धारित योग्यता से छूट नहीं दी जा सकती। (Yogesh Kumar vs. Goverment of NCT, Delhi, SC)
● चाहे शिक्षा मित्रों ने कई वर्षों तक बच्चों को शिक्षा दी है फिर भी टीईटी से छूट दिया जाना संभव नहीं है। टीईटी के द्वारा शिक्षकों की योग्यता के स्तर का ज्ञान होता है।
● शिक्षा मित्रों की नियुक्ति न तो स्वीकृत पदों पर हुई तथा न ही यह निर्धारित न्यूनतम योग्यता पूर्ण करते हैं। अतः इनकी नियुक्ति गैर कानूनी है अतः इन्हें स्थायी नहीं किया जा सकता।
● सरकार द्वारा शिक्षा मित्रों को टीईटी में छूट देने के लिए किया गया संशोधन '16 क' अल्ट्रा वाइर्स है।
● 16 क संशोधन द्वारा राज्य सरकार ने शिक्षा मित्रों को टीईटी से छूट देकर, एनसीटीई के अधिकारों पर अतिक्रमण किया है। ऐसा कर के सरकार ने एक पाप किया तदोपरांत शिक्षा मित्रों को स्थायी कर के इस पाप को महापाप बना दिया।
● शिक्षा मित्रों को मनमाने ढंग से नियमों में छूट देकर तथा न्यूनतम योग्यता का स्तर गिरा कर सरकार ने जो उदारता दिखाई है वह पूरी तरह असंवैधानिक है। तथा इस सम्बन्ध में जो भी नियम बनाए हैं, सभी असंवैधानिक व अल्ट्रा वाइर्स हैं।
● शिक्षा मित्रों की नियुक्ति स्वीकृत पदों के अधीन नहीं हुई थी तथा साथ ही साथ वह न्यूनतम योग्यता पूर्ण नहीं करते हैं तथा इनकी नियुक्ति संविदा पर हुई थी। शिक्षा मित्र सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाए गए किसी भी नियम को पूर्ण नहीं करते अतः इनको स्थायी नहीं किया जा सकता।
● समस्त याची सहायक अध्यापक बनने की योग्यता रखते हैं। शिक्षा मित्रों के समायोजन से याचियों के अधिकार साफ़ तौर पर प्रभावित हो रहे हैं। प्रभावित ही नहीं बल्कि लगभग समाप्त हो रहे हैं।
भाग 4 में कोर्ट ने अपने मुख्य आदेश सुनाए :
१) 16A (16 क) असंवैधानिक व अल्ट्रा वाइर्स है अतः निरस्त किया जाता है।
२) अध्यापक सेवा नियमावली 1981 में शिक्षा मित्रों को समायोजित करने के लिए किया गया उन्नीसवां संशोधन असंवैधानिक व अल्ट्रा वाइर्स है, अतः रद्द किया जाता है।
३) शिक्षा मित्रों के समायोजन से सम्बंधित दोनों शासनादेश निरस्त किये जाते हैं।

👆👆यह तो रहा आदेश का सार। मैंने कोशिश की है कि कानूनी भाषा को सरल से सरल शब्दों में लिख सकूँ ताकि सभी को समझ आ सके। फिर भी कुछ समझ न आया हो तो बेशक पूछ सकते हैं। किसी त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।

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