ब्यूरो, इलाहाबाद,केंद्रीय कर्मियों को छठवें वेतन आयोग के मुकाबले सातवें वेतन आयोग के तहत वेतन वृद्धि में 38 फीसदी तक का झटका लगा है। कहने को न्यूनतम वेतनमान सात हजार से बढ़ाकर 18 हजार रुपये कर दिया गया लेकिन यह भी आंकड़ों मेें हेरफेर से ज्यादा कुछ और नहीं है।
सिर्फ यही नहीं, न्यूनतम और अधिकतम वेतन वृद्धि में भी बड़ा अंतर है, जो कर्मचारियों को रास नहीं आ रहा।
छठवें वेतन आयोग के तहत केंद्रीय कर्मियों के मूल वेतन में अलग-अलग ग्रेड पे के आधार पर न्यूनतम 40 से अधिकतम 70 फीसदी तक बढ़ोतरी की गई थी लेकिन इस बार सभी के मूल वेतन में समान रूप से 32 फीसदी की वृद्धि की गई है।
ऐसे में कर्मचारियों को वेतन वृद्धि में न्यूनतम आठ से अधिकतम 38 फीसदी तक का नुकसान हुआ है। इसके अलावा सातवें वेतन आयोग के तहत न्यूनतम वेतन 18 हजार रुपये निर्धारित किया गया है।
वैसे भी कर्मचारियों को छठवें वेतन आयोग के तहत सात हजार रुपये बेसिक वेतन और 125 फीसदी डीए मिल रहा है, जो कुल 15750 रुपये होता है। ऐसे में सातवें वेतन आयोग के तहत न्यूनतम वेतन में महज 2250 रुपये की बढ़ोतरी की गई, जो सिर्फ 14.28 फीसदी है।
वहीं, कैबिनेट सेक्रेटरी स्तर पर अधिकतम वेतन ढाई लाख रुपये निर्धारित किया गया है जबकि छठवें वेतन आयोग के तहत अधिकतम वेतनमान दो लाख दो हजार पांच सौ रुपये निर्धारित किया गया था।
ऐसे में अधिकतम वेतन में 47 हजार 500 रुपये की बढ़ोतरी हुई है, जो 23.45 फीसदी है। आल इंडिया ऑडिट एंड एकाउंट एसोसिएशन के पूर्व सहायक महासचिव एवं सिविल एकाउंट्स ब्रदरहुड के पूर्व अध्यक्ष हरिशंकर तिवारी का कहना है कि सातवें वेतन आयोग के तहत सिर्फ आंकड़ों में खेल किया गया है।
वेतन वृद्धि के नाम पर कर्मचारियों को लॉलीपॉप दिया गया है। छठवें वेतन आयोग के मुकाबले सातवें वेतन आयोग में कर्मचारियों को काफी अधिक नुकसान हुआ है।
न्यूनतम और अधिकतम वेतन के पुनरीक्षण में भी विसंगतियां हैं। न्यूनतम और अधिकतम वेतन निर्धारण में बढ़ोतरी समान रूप से होनी चाहिए थी। डीए से भी कर्मचारियों को खास फायदा नहीं होने वाला।
डीए निर्धारण का फार्मूला संशोधित कर दिया गया है। डीए भले ही पूरे वेतन पर मिले लेकिन फार्मूले में संशोधन के कारण बढ़ोतरी की दर आधी रह जाएगी। इससे डीए वृद्धि पर उतनी ही धनराशि का लाभ मिलेगा, जितना पहले मिलता था।
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सिर्फ यही नहीं, न्यूनतम और अधिकतम वेतन वृद्धि में भी बड़ा अंतर है, जो कर्मचारियों को रास नहीं आ रहा।
छठवें वेतन आयोग के तहत केंद्रीय कर्मियों के मूल वेतन में अलग-अलग ग्रेड पे के आधार पर न्यूनतम 40 से अधिकतम 70 फीसदी तक बढ़ोतरी की गई थी लेकिन इस बार सभी के मूल वेतन में समान रूप से 32 फीसदी की वृद्धि की गई है।
ऐसे में कर्मचारियों को वेतन वृद्धि में न्यूनतम आठ से अधिकतम 38 फीसदी तक का नुकसान हुआ है। इसके अलावा सातवें वेतन आयोग के तहत न्यूनतम वेतन 18 हजार रुपये निर्धारित किया गया है।
वैसे भी कर्मचारियों को छठवें वेतन आयोग के तहत सात हजार रुपये बेसिक वेतन और 125 फीसदी डीए मिल रहा है, जो कुल 15750 रुपये होता है। ऐसे में सातवें वेतन आयोग के तहत न्यूनतम वेतन में महज 2250 रुपये की बढ़ोतरी की गई, जो सिर्फ 14.28 फीसदी है।
वहीं, कैबिनेट सेक्रेटरी स्तर पर अधिकतम वेतन ढाई लाख रुपये निर्धारित किया गया है जबकि छठवें वेतन आयोग के तहत अधिकतम वेतनमान दो लाख दो हजार पांच सौ रुपये निर्धारित किया गया था।
ऐसे में अधिकतम वेतन में 47 हजार 500 रुपये की बढ़ोतरी हुई है, जो 23.45 फीसदी है। आल इंडिया ऑडिट एंड एकाउंट एसोसिएशन के पूर्व सहायक महासचिव एवं सिविल एकाउंट्स ब्रदरहुड के पूर्व अध्यक्ष हरिशंकर तिवारी का कहना है कि सातवें वेतन आयोग के तहत सिर्फ आंकड़ों में खेल किया गया है।
वेतन वृद्धि के नाम पर कर्मचारियों को लॉलीपॉप दिया गया है। छठवें वेतन आयोग के मुकाबले सातवें वेतन आयोग में कर्मचारियों को काफी अधिक नुकसान हुआ है।
न्यूनतम और अधिकतम वेतन के पुनरीक्षण में भी विसंगतियां हैं। न्यूनतम और अधिकतम वेतन निर्धारण में बढ़ोतरी समान रूप से होनी चाहिए थी। डीए से भी कर्मचारियों को खास फायदा नहीं होने वाला।
डीए निर्धारण का फार्मूला संशोधित कर दिया गया है। डीए भले ही पूरे वेतन पर मिले लेकिन फार्मूले में संशोधन के कारण बढ़ोतरी की दर आधी रह जाएगी। इससे डीए वृद्धि पर उतनी ही धनराशि का लाभ मिलेगा, जितना पहले मिलता था।
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