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7th Pay Commission--यूपी के शिक्षक आए विरोध में

वाराणसी. सातवें वेतन आयोग की जिस रिपोर्ट को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने मंजूर किया है वह भले अभी केंद्रीय कर्मचारियों के लिए लागू न हुई हो, पर उसका राज्यों पर क्या असर होगा इसकी गुणा गणित राज्य स्तर पर भी लगाई जाने लगी है।
यूपी जहां से भाजपा को 73 सीट मिली है वहां के शिक्षकों ने इसकी शुरूआत कर दी है। यानी केंद्रीय कर्मचारी संगठन तो विरोध कर ही रहे थे, अब यूपी के शिक्षक भी मैदान में उतरने जा रहे हैं। माध्यमिक शिक्षक संघ (शर्मा गुट) ने आयोग की रिपोर्ट के विरोध में आंदोलन का बिगुल बजा दिया है। संगठन के प्रदेश मंत्री व पूर्व शिक्षक विधायक डॉ. प्रमोद कुमार मिश्र ने पत्रिका को बताया कि संगठन आठ जुलाई को पूरे प्रदेश में जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन कर सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट का शवदाह किया जाएगा।
क्या है संगठन की राय
संगठन का मानना है कि मोदी सरकार द्वारा स्वीकृत सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट कर्मचारियों और शिक्षकों के हित में नहीं है। संघ का मानना है कि इस रिपोर्ट के लागू होने से कर्मचारियों और शिक्षकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। संघ ने रिपोर्ट की वृहद् विवेचना के बाद पाया कि विगत किसी भी वेतन आयोग में तीन गुना से कम वेतन वृद्धि नहीं की गई।
किसी वेतन आयोग के 10 साल के अंतराल में इतनी महंगाई नहीं बढी
डॉ. मिश्र ने बताया कि संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने इसकी समीक्षा की तो पाया कि छठें व सातवें वेतन आयोग के बीच का जो 10 साल का अंतर है, इस दौरान जिस रफ्तार से महंगाई बढ़ी है उस अनुपात में किसी अन्य वेतन आयोग की रिपोर्ट के अंतराल में नहीं हुआ। बावजूद इसके केंद्र सरकार ने मूल वेतन में 2.57 गुना की वृद्धि को सर्वाधिक वृद्धि कहा है जबकि मौजूदा प्राप्त महंगाई दर से 2.25 गुना प्राप्त हो रहा है।

शिक्षकों और कर्मचारियों का किया जा रहा उपहास
उन्होंने कहा कि सरकार शिक्षकों और कर्मचारियों के पैकेज का उपहास उड़ा रही है। कुल मिलाकर सातवें वेतन आयोग की संस्तुतियों और सरकार के यथावत घोषणा को संगठन ने पूर्णतया असंतोष जनकर और अन्यायपूर्ण करार दिया है।
पुराने पेंशन प्रकरण को भी नकारा है सरकार ने
बताया कि सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट में पुराने पेंशन प्रकरण को महत्व नहीं दिया गया है जबकि स्वयं आयोग और केंद्र ने अनुभव किया है कि नवीन पेंशन व्यवस्थआ दोषपूर्ण है और उसमें संशोधन अपेक्षित है।
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