भाषा शिक्षकों के लिए कोई पद घोषित नहीं, दोबारा पास करनी होगी टीईटी

प्रदेश की सपा सरकार परिषदीय विद्यालयों में उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति करने के लिए अपने चार वर्ष के कार्यकाल में दो बार भर्ती कर चुकी है। वहीं 2011 में उच्च प्राथमिक विद्यालयों के लिए टीईटी पास करने वाले
संस्कृत, हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा शिक्षकों के लिए वर्तमान सरकार ने अपने पूरे कार्यकाल में कोई पद घोषित नहीं किए हैं।
सरकार की उदासीनता के कारण 2011 में जूनियर भाषा टीईटी पास करने वाले 50 हजार से अधिक अभ्यर्थी बिना किसी भर्ती में आवेदन के अपनी अर्हता खो देंगे। परीक्षा पास करने की अवधि पांच वर्ष पूरी होने के बाद इन अभ्यर्थियों की टीईटी अर्हता खत्म हो जाएगी। उन्हें किसी भर्ती प्रक्रिया में शामिल होने के लिए दोबारा टीईटी पास करना होगा।
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भाषा टीईटी पास करने वाले अभ्यर्थियों ने प्रदेश सरकार की ओर से प्राथमिक विद्यालयों में उर्दू की पढ़ाई नहीं होने के बाद भी बार-बार उर्दू शिक्षकों की भर्ती करने की नीति पर सवाल खड़ा किया है। भाषा टीईटी धारकों का कहना है कि कुछ परिषदीय विद्यालयों में ही उर्दू पढ़ने वाले बच्चे प्रवेश लेते हैं, जबकि हिंदी, संस्कृत एवं अंग्रेजी पढ़ने वाले बच्चे हर स्कूल में हैं। इन अभ्यर्थियों का कहना है कि उर्दू शिक्षक के नाम पर भर्ती होने वालों से सामान्य विषय पढ़ाने को कहा जा रहा है। उन्हें उर्दू पढ़ने वाले बच्चे नहीं मिल रहे हैं।
भाषा टीईटी धारकों का कहना है कि प्रदेश सरकार मात्र वोट के चक्कर में युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। सरकार की तुष्टीकरण की नीतियों के कारण पांच वर्ष तक कोई भर्ती नहीं घोषित होने के कारण उनकी टीईटी की वैधता की अवधि खत्म हो जा रही है। इन अभ्यर्थियों का कहना है कि प्रदेश सरकार एक ओर जहां उर्दू शिक्षकों की लगातार भर्ती कर रही है, वहीं संस्कृत, अंग्रेजी एवं हिंदी जैसे विषयों में भाषा शिक्षकों की भर्ती नहीं हो रही है। प्रदेश में नई सरकार के गठन के बाद संस्कृत की लगातार उपेक्षा हो रही है।
प्रदेश के उच्च प्राथमिक विद्यालयों में सरकार की ओर से संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी शिक्षकों की भर्ती होने से स्कूलों में इन विषयों को पढ़ाने वाले शिक्षक नहीं हैं। जूनियर स्तर पर हिंदी और अंग्रेजी जैसे विषयों की पढ़ाई सामाजिक विज्ञान के शिक्षक कर रहे हैं। ठीक ऐसी ही स्थिति संस्कृत के साथ है। स्कूलों में संस्कृत विषय नहीं पढ़ाए जाने से अभिभावक परिषदीय विद्यालयों में अपने बच्चों को प्रवेश देने से कतरा रहे हैं।
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