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नई शिक्षा नीति का संविदा (शिक्षामित्रों) शिक्षकों पर प्रभाव

नई शिक्षा नीति 2015 के ड्राफ्ट और सुब्रमणियम समिति की शिफारिशो पर काफी समय से चर्चा चल रही है।
हाल फिलहाल शिक्षानीति का इनपुट सार्वजानिक किया गया जिस पर लोगों के सुझाव आमंत्रित किये गए हैं।
इस इनपुट का एक बिंदु ये भी है कि वर्तमान में कार्यरत समस्त संविदा शिक्षकों के स्थान पर नियमित शिक्षक रखे जाएँ।

उपरोक्त तथ्य मार्च 2010 में आरटीई एक्ट के ड्राफ्ट में भी शामिल किया गया। इस में कहा गया कि अब कोई भी संविदा शिक्षक नियुक्त नहीं किया जायेगा और जो भी लोग इस श्रेणी के हैं उन्हें पांच वर्ष के अंदर प्रशिक्षित कर उनकी अर्हता पूरी करवाई जाएगी।
*नयी शिक्षा नीति का उक्त बिंदु इसी को पूरा करने की बाध्यता निर्धारित करता है*
उत्तर प्रदेश के लगभग 30000 प्रशिक्षित शिक्षामित्र इस बिंदु से लाभान्वित होने से वंचित हैं। सुप्रीम कोर्ट में वाद विचारधीन है, जिसका निस्तारण होने पे ये लोग भी नियमित शिक्षक की श्रेणी में आ जायेंगे।
*नयी शिक्षानीति के उक्त बिंदु का सर्वाधिक लाभ या नुक्सान झारखण्ड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल के संविदा शिक्षकों को होगा। अगर ये लोग राज्य से नियमित नहीं करवा पाये तो नुक्सान और करवा पाये तो लाभ*
हालाँकि वर्तमान में इसकी कोई गुंजाईश नहीं है क्योंकि संवाददाताओं से बातचीत में केंद्रीय शिक्षामंत्री प्रकाश जावडेकर ने स्पष्ट किया कि सरकार ने नयी शिक्षा नीति को अभी अंतिम रूप नहीं दिया है और मसौदा नीति को अभी चर्चा के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष रखा जाना है।

उन्होंने कहा, ‘‘सरकार मसौदा को शिक्षा विशेषज्ञों के समक्ष चर्चा के लिए रखेगी और इसके बाद मसौदा नीति को कैबिनेट के समक्ष रखा जायेगा । ’’
सरकार ने प्रस्तावित शिक्षा नीति 2015 के लिए गांव से राज्य स्तर तक राय मांगी है। उन्होंने कहा कि लोग 30 सितंबर तक माईगॉवडाटइन पर सुझाव भेज सकते हैं।
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