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सुप्रीम कोर्ट में याची राहत और अचयनित मोर्चा के मयंक तिवारी के अनुसार आज की सुनवाई

अनिश्चितताओं से भरे अपने इस केस में प्रारम्भ से ही यह हुआ है कि जिस दिन बहुत ज्यादा उम्मीद रही है हमें निराशा ही हाथ लगी है और ऐसा भी ना जाने कितनी बार हुआ है जब हमें उतनी उम्मीद नही रही है और न्यायपालिका ने हमें बहुत ही शानदार आदेश दिए है।
आज जस्टिस दीपक मिश्रा जी व् यू यू ललित जी की बैंच में कोर्ट नंबर 4 में अपना केस पहले ही नंबर पर था। कोर्ट द्वारा सरकार के एफिडेविट देखने के बाद सुनवाई की अगली तिथि यह कहते हुए लगा दी कि अब हम इसे स्पेसल बेंच में 17नवम्बर को सुनेंगे। उनके इतना कहने के बाद सीनियर एडवोकेट के वेणुगोपाल जी के साथ कई सीनियर एडवोकेट ने टेट वेलिडिटी के नवम्बर में ही समाप्त होने आदि की बात कही और केस को सुनने के लिए कहा। आदेश के बोल देने के बाद और अगले केस के टेकअप होने के बाद भी सभी अधिवक्ताओं ने अपना पक्ष मजबूती से रखा किन्तु पुरे प्रदेश की आज सामूहिक इतनी अच्छी तैयारी के बाद भी सुनवाई ना हो पाना निश्चित रूप से निराशाजनक था। निराशा मात्र इस बात की कि इतनी अच्छी तैयारी के बाद भी न्यायपालिका द्वारा हमारा केस सुना ही नही गया।

आप सभी को शायद याद होगा कि जब इलाहाबाद हाइकोर्ट में जस्टिस अरुण टण्डन जी की सिंगल बेंच से केस अपने विरुद्ध फाइनल होने के बाद डिवीज़न बैंच में पहली बार जस्टिस सुशील हरकौली जी व् जस्टिस मनोज मिश्रा जी की बैंच में लगा ही था कि 4फरबरी2013 को इस निरंकुश सरकार के नए विज्ञापन को कोर्ट ने स्टे कर दिया था और उस दिन पहली ही सुनवाई पर लगे स्टे के बाद फिर केस तारीखों में झूला गया। बीच में लार्जर बेंच गया, जस्टिस सुशील हरकौली जी का सेवा काल पूरा होने से केस न्यायधीश महापात्रा जी की बैंच में चला गया। और 4फरबरी 2013 से 20नवम्बर 2013 तक लगभग 10माह हम ऐसे ही न्यायपालिका के चक्कर लगाते रहे।

ये वो दौर था जब पूरा प्रदेश न्यायपालिका को सरकार के दबाब में होने के प्रति आशंकित हो चुका था। हमने इलाहाबाद में न्यायपालिका के विरुद्ध तक तब धरना, प्रदर्शन आदि भी किये।
इसके बाद अचानक से महापात्रा जी का हटना और जस्टिस अशोक भूषण जी की बैंच में केस लगना और उनकी कोर्ट की पहली सुनवाई में ही पुराना विज्ञापन ना सिर्फ अपनी सभी शर्तों के साथ बहाल हुआ बल्कि उस सशक्त आदेश ने बीएड/टेट पास की नियुक्ति की समय सीमा (1जनवरी2012) को भी आगे बढ़ाकर (31मार्च2014) तक कर दिया।

इसी प्रकार सुप्रीम कोर्ट में भी प्रथम कुछ सुनवाई का जस्टिस सुधीर अग्रवाल जी के यहाँ होना और कोई राहत ना मिल पाने पर केस अचानक से पूर्व मुख्य न्यायाधीश एच एल दत्तू साहब की कोर्ट में लगा और 25मार्च2014 को सुप्रीम कोर्ट ने पुनः सरकार के विरुद्ध एक सशक्त आदेश लिखाया।

ये सभी वो घटनाएं है जब हमें उम्मीद रही है तो उस दिन सफलता नही मिली है और जिस दिन हमें उतनी उम्मीद नही रही होती है और सफलता प्राप्त हुई हैं।

मेरे यहाँ इतना सब कहने का मात्र एक ही तात्पर्य है कि आज हमें 26अप्रैल2016 व् 27जुलाई2016 की भांति ही बहुत उम्मीद थी किन्तु माननीय न्यायपालिका का आज बिना सुने ही अगली तारिख दे देना निश्चित रूप से कष्ट प्रद है किन्तु इसका मतलब यह बिलकुल नही है कि आज हमारा कहीं कुछ भी अहित हुआ है।
वर्तमान परिपेक्ष में आज मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूँगा कि जहाँ हमने 5वर्ष इतने धैर्य व् उम्मीद के साथ प्रतीक्षा की है वहां 5सप्ताह ओर सही लेकिन इसका यह मतलब बिलकुल नही है कि हमें विशुद्ध रूप से सिर्फ इंतज़ार ही करना है।

मैं व्यतिगत रूप से व आप सभी के सामूहिक प्रयास से प्रत्येक तारीख के बीच के समय में हमारी जीत (जॉब) के लिए हमेशा ही प्रयासरत रहा हूँ और रहूँगा।

अंत में सिर्फ इतना ही कहूँगा कि, "बस यही सोचकर हर मुश्किलों से लड़ता हुआ आया हूँ, धुप कितनी भी तेज हो किन्तु समन्दर कभी सूखा नही करते।"
इन्ही शब्दों के साथ
आपका मयंक तिवारी
जय हिन्द जय टेट जय भारत
सत्यमेव जयते सर्वदा
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