तीन लाख लाओ, लिखित परीक्षा में पास हो जाओ। जी हां। पुलिस के हत्थे चढ़े नकल माफिया गिरोह की कुछ ऐसी ही पंचलाइन थी। झलवा स्थित सरोज देवी इंटर कॉलेज समेत तीन स्कूल संचालित करने वाला प्रबंधक अनिल मिश्र काफी शातिर है।
में गार्ड की ड्यूटी लगवाने का काम शिक्षक मो. सिद्दकी की मदद से किया। इनका सहयोग अशोक तिवारी भी करता रहा। गार्ड की ड्यूटी करने वाले ने ही वकील जयदीप को पेपर दिया था, जिसे वह बाहर लाकर फोटो स्टेट कराया और जयशंकर पाल तक पहुंचाया। इसके बाद पर्चा हंसराज कंप्यूटर इंस्टीट्यूट तक पहुंचा। कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में मौजूद लेखपाल महाराज यादव व प्रमोद यादव पेपर हल करने का काम कर रहे थे, जबकि विमलेश कोचिंग के बाहर निगरानी कर रहा था। वहीं निलंबित सिपाही महेन्द्र गैंग की सुरक्षा का काम देख रहा था। पुलिस ने निलंबित सिपाही की मदद से कार सवार ललित, अनिल और जयदीप लाइसेंसी रिवाल्वर और कारतूस के साथ पकड़ा। सभी आरोपियों के खिलाफ कर्नलगंज थाने में उप्र सार्वजनिक नकल निवारण अधिनियम के तहत रिपोर्ट दर्ज कर आवश्यक कार्यवाही की जा रही है। 1नोटबंदी के चलते चेक का इस्तेमाल : पुलिस अधिकारियों का कहना है कि नोटबंदी के कारण गैंग का सरगना नकद के साथ चेक का इस्तेमाल कर रहा था। एक चेक 50 हजार दूसरा 49 हजार 500 रुपये का था, जो अनिल मिश्र ने नाम था। जयशंकर ने अभ्यर्थियों से शुरूआत में साढ़े तीन-तीन लाख में पास कराने का सौदा किया, लेकिन बाद में तीन-तीन लाख रुपये लिए। एक-एक लाख नकद और बाकी चेक के जरिए पैसा दिया गया। काम के अनुसार ही गिरोह के सभी सदस्यों को पैसा मिलता था। आरएन यादव को पर्चा पहुंचाने के लिए 20 हजार रुपये मिला था।
कई जिलो में गैंग का फैला नेटवर्क : नकल माफिया गैंग के सरगना और सदस्यों से पूछताछ में पता चला है कि उनका नेटवर्क इलाहाबाद के बाहर दूसरे जिलों में फैला हुआ है। दूसरे जिलों को साल्व पेपर उपलब्ध कराने के लिए वाट्सएप और दूसरी तकनीकि का इस्तेमाल किया जाता है। पुलिस का दावा है कि गिरोह के बारे में अभी तक किसी दूसरे थाने में आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं होने की जानकारी मिली है, लेकिन गैंग कई सालों से सक्रिय था। यह भी माना जा रहा है कि इसमें कुछ और बड़े व महत्वूपर्ण लोग शामिल हो सकते हैं। इसके लिए पुलिस सभी के मोबाइल की सीडीआर निकलवा रही है और मोबाइल भी खंगाल रही है। इस मामले में कुल 18 लोगों को पकड़ा गया था, लेकिन आठ को पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया।
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में गार्ड की ड्यूटी लगवाने का काम शिक्षक मो. सिद्दकी की मदद से किया। इनका सहयोग अशोक तिवारी भी करता रहा। गार्ड की ड्यूटी करने वाले ने ही वकील जयदीप को पेपर दिया था, जिसे वह बाहर लाकर फोटो स्टेट कराया और जयशंकर पाल तक पहुंचाया। इसके बाद पर्चा हंसराज कंप्यूटर इंस्टीट्यूट तक पहुंचा। कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में मौजूद लेखपाल महाराज यादव व प्रमोद यादव पेपर हल करने का काम कर रहे थे, जबकि विमलेश कोचिंग के बाहर निगरानी कर रहा था। वहीं निलंबित सिपाही महेन्द्र गैंग की सुरक्षा का काम देख रहा था। पुलिस ने निलंबित सिपाही की मदद से कार सवार ललित, अनिल और जयदीप लाइसेंसी रिवाल्वर और कारतूस के साथ पकड़ा। सभी आरोपियों के खिलाफ कर्नलगंज थाने में उप्र सार्वजनिक नकल निवारण अधिनियम के तहत रिपोर्ट दर्ज कर आवश्यक कार्यवाही की जा रही है। 1नोटबंदी के चलते चेक का इस्तेमाल : पुलिस अधिकारियों का कहना है कि नोटबंदी के कारण गैंग का सरगना नकद के साथ चेक का इस्तेमाल कर रहा था। एक चेक 50 हजार दूसरा 49 हजार 500 रुपये का था, जो अनिल मिश्र ने नाम था। जयशंकर ने अभ्यर्थियों से शुरूआत में साढ़े तीन-तीन लाख में पास कराने का सौदा किया, लेकिन बाद में तीन-तीन लाख रुपये लिए। एक-एक लाख नकद और बाकी चेक के जरिए पैसा दिया गया। काम के अनुसार ही गिरोह के सभी सदस्यों को पैसा मिलता था। आरएन यादव को पर्चा पहुंचाने के लिए 20 हजार रुपये मिला था।
कई जिलो में गैंग का फैला नेटवर्क : नकल माफिया गैंग के सरगना और सदस्यों से पूछताछ में पता चला है कि उनका नेटवर्क इलाहाबाद के बाहर दूसरे जिलों में फैला हुआ है। दूसरे जिलों को साल्व पेपर उपलब्ध कराने के लिए वाट्सएप और दूसरी तकनीकि का इस्तेमाल किया जाता है। पुलिस का दावा है कि गिरोह के बारे में अभी तक किसी दूसरे थाने में आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं होने की जानकारी मिली है, लेकिन गैंग कई सालों से सक्रिय था। यह भी माना जा रहा है कि इसमें कुछ और बड़े व महत्वूपर्ण लोग शामिल हो सकते हैं। इसके लिए पुलिस सभी के मोबाइल की सीडीआर निकलवा रही है और मोबाइल भी खंगाल रही है। इस मामले में कुल 18 लोगों को पकड़ा गया था, लेकिन आठ को पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया।
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