गोरखपुर. लोकतांत्रिक व्यवस्था के सुचारू संचालन व जनकल्याणकारी सरकार के लिए एक बेहतर जनप्रतिनिधि का चयन बेहद जरुरी है। जनप्रतिनिधि का मतलब जनता का प्रतिनिधित्व करने वाला, उनकी आवाज़ बनने वाला। लेकिन पिछले कुछ सालों से जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों पर सवाल उठने लगे हैं।
पत्रिका ने उत्तर प्रदेश विधान सभा के मद्देनज़र जानने की कोशिश की है कि आखिर कैसा हो हमारा नेता? इसके लिए समाज के हरवर्ग के दिल की आवाज़ को समाज की आवाज़ बनाने के लिए हमने अभियान की शुरुआत की है। गुरुवार को इस मुद्दे पर उस वर्ग से जानने की कोशिश की गई जो समाज का पथप्रदर्शक माना जाता है। आइये जानते हैं कि डिग्री शिक्षक क्या चाहता, कैसा हो उनका नेता?
डॉ.चतुरानन ओझा ने कहा कि जनप्रतिनिधि का मतलब वह जो जो जनता के लिए संघर्ष कर सके। पहले से जनता के साथ जुड़ा रहा हो और जनता के लिए संघर्ष करता हो। देखा जाता है जनता जाति, धर्म और पैसा-बाहुबल को तरजीह देकर अपना चुनाव कर देती है लेकिन बाद में शिकायत करती है। जो पहले किसी के लिए संघर्ष न किया हो वह बाद में क्या करेगा।
उन्होंने कहा कि कोई कितना भी मृदुभाषी, सम्पत्तिशाली क्यों हो वह जनता के लिए संघर्ष नहीं किया है तो आगे भी नहीं करेगा। लेकिन जनता भावनाओं में बहक जाती है। हमारा प्रतिनिधि वह हो जो हमारी आवाज़ बन सके, हमारे लिए संघर्ष कर सके। हमारे मुद्दों को बेहतर ढंग से जानकर उचित तरीके से उसका निराकरण करा सके।
doctor chaturanand
डॉ.चतुरानन ओझा, अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश सेल्फ फाइनेंस टीचर्स एसोसिएशन
डॉ.कनक मिश्र ने कहा कि जनता का प्रतिनिधि वह होना चाहिये जो जनता के बीच रहता हो। समाज और लोगों की समस्याओं से रूबरू होता हो, उनको बेहतर ढंग से समझता हो। समाज और जन की समस्याओं को समझ उसके लिये काम कर सके। अगर गोरखपुर के परिवेश में देखे तो यहां तमाम समस्याएं हैं। स्वास्थ्य, परिवहन, यातायात समस्या यहां प्रमुख हैं।
उन्होंने कहा कि अगर जनता ने सही जनप्रतिनिधि चुना हो तो वह इन समस्याओं के लिए संघर्ष करेगा। उनके निराकरण की खातिर उचित फोरम में आवाज़ उठाएगा। परंतु जब जनप्रतिनिधि आमजन के बीच रहेगा नहीं तो उसे इन समस्याओं से कोई मतलब नहीं होगा। जब हम जाति, वर्ण, धर्म और धनबल से इतर जनता का प्रतिनिधित्व करने वाला नेता चुनेंगे तो वह जनता से जुड़ उनके लिए काम करेगा।
doctor kanak
डॉ.कनक मिश्र, असिस्टेंट प्रोफेसर
डॉ.अनुपमा कौशिक ने कहा कि जनता का प्रतिनिधित्व वह करे जो अपनी जनता को समझ सके। अपने क्षेत्र की समस्याओं को जानता हो, उसके हल के लिए जनता की आवाज़ बन सके। इसके लिए एक सबसे बड़ी अर्हता हो कि वह पढ़ा-लिखा हो। उसकी समाज में बेहतर छवि हो। आमतौर पर देखा जाता है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले या धनबल के बल पर तमाम लोग चुनाव जीत जाते। जनता भी फौरी तौर पर उनको समर्थन दे देती लेकिन आगे के पांच साल वह पछतावा करती है। हमको ऐसे लोगों को चुनना चाहिए जो हमारे बीच का हो, हमारे लिए संघर्ष करता हो। महिला होने के नाते हमको यह देखना होगा कि वह आधी आबादी की समस्याओं को किस स्तर तक समझ सकता और उनके लिए किस स्तर तक आवाज़ बुलंद कर सकता।
anupma
डॉ.अनुपमा कौशिक, असिस्टेंट प्रोफेसर
डॉ.संतोष त्रिपाठी ने कहा कि हमारा नेता वह हो जो वस्तुस्थिति से वाकिफ हो, विषय का ज्ञान हो, समझने वाला हो। ऐसा हो जो समस्याओं को सुलझाने में रुचि ले सके। जो जाति-धर्म और अन्य विवादों से ऊपर की सोच विकास और जनसमस्याओं को निपटान करने में अपनी क्षमता को लगाये। भारतीय संविधान में भले ही जनप्रतिनिधियों की शिक्षा तय नहीं है लेकिन यह माना जाता है कि जो चुना जाएगा वह बेहतर समझ रखता है। लेकिन व्यवस्था के संचालक हमारे नेता खुद अपनी समस्याओं में उलझते जा रहे। आखिर ऐसा कौन सा कारक है कि एक राजनैतिक व्यक्ति और आमजन के आय की वृद्धि में असमानता है। निश्चित रूप से इसपर सबको विचार कर नेता चुनना होगा। आयोग को भी 'नोटा' की तरह 'राईट टू रिकॉल' की व्यवस्था पर विचार करना होगा। एक मानक तय करना होगा कि इतना नोटा वोट होने पर फिर चुनाव हो। यह बेहतरी की ओर एक कदम साबित होगा।
santosh
डॉ.संतोष त्रिपाठी, प्राचार्य, मारवाड़ बिजनेस कॉलेज
डॉ.पूर्णेश नारायण सिंह ने कहा कि जनप्रतिनिधि वह होना चाहिए जो हमारे बीच का हो। जनता की इच्छाओं को समझ सके, उसके अनुरूप काम कर सके। वह बिना किसी भेदभाव क्षेत्र का विकास कर सके। लेकिन आजकल हो इसके विपरीत रहा। जनता अपने जनप्रतिनिधियों का चुनाव संघर्ष या लोकतांत्रिक मूल्यों की कसौटी पर कसकर देखने के बाद करने की बजाय जाति-धर्म, धन-संपत्ति और अन्य मानकों ओअर कर दे रही। इसका खामियाजा समाज को भुगतान पड़ रहा। हमारा नेता एक स्वच्छ और साफ़ सुथरी छवि का विकास को तरजीह देने वाला होना चाहिए।
purnesh
डॉ.पूर्णेश नारायण सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर
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पत्रिका ने उत्तर प्रदेश विधान सभा के मद्देनज़र जानने की कोशिश की है कि आखिर कैसा हो हमारा नेता? इसके लिए समाज के हरवर्ग के दिल की आवाज़ को समाज की आवाज़ बनाने के लिए हमने अभियान की शुरुआत की है। गुरुवार को इस मुद्दे पर उस वर्ग से जानने की कोशिश की गई जो समाज का पथप्रदर्शक माना जाता है। आइये जानते हैं कि डिग्री शिक्षक क्या चाहता, कैसा हो उनका नेता?
डॉ.चतुरानन ओझा ने कहा कि जनप्रतिनिधि का मतलब वह जो जो जनता के लिए संघर्ष कर सके। पहले से जनता के साथ जुड़ा रहा हो और जनता के लिए संघर्ष करता हो। देखा जाता है जनता जाति, धर्म और पैसा-बाहुबल को तरजीह देकर अपना चुनाव कर देती है लेकिन बाद में शिकायत करती है। जो पहले किसी के लिए संघर्ष न किया हो वह बाद में क्या करेगा।
उन्होंने कहा कि कोई कितना भी मृदुभाषी, सम्पत्तिशाली क्यों हो वह जनता के लिए संघर्ष नहीं किया है तो आगे भी नहीं करेगा। लेकिन जनता भावनाओं में बहक जाती है। हमारा प्रतिनिधि वह हो जो हमारी आवाज़ बन सके, हमारे लिए संघर्ष कर सके। हमारे मुद्दों को बेहतर ढंग से जानकर उचित तरीके से उसका निराकरण करा सके।
doctor chaturanand
डॉ.चतुरानन ओझा, अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश सेल्फ फाइनेंस टीचर्स एसोसिएशन
डॉ.कनक मिश्र ने कहा कि जनता का प्रतिनिधि वह होना चाहिये जो जनता के बीच रहता हो। समाज और लोगों की समस्याओं से रूबरू होता हो, उनको बेहतर ढंग से समझता हो। समाज और जन की समस्याओं को समझ उसके लिये काम कर सके। अगर गोरखपुर के परिवेश में देखे तो यहां तमाम समस्याएं हैं। स्वास्थ्य, परिवहन, यातायात समस्या यहां प्रमुख हैं।
उन्होंने कहा कि अगर जनता ने सही जनप्रतिनिधि चुना हो तो वह इन समस्याओं के लिए संघर्ष करेगा। उनके निराकरण की खातिर उचित फोरम में आवाज़ उठाएगा। परंतु जब जनप्रतिनिधि आमजन के बीच रहेगा नहीं तो उसे इन समस्याओं से कोई मतलब नहीं होगा। जब हम जाति, वर्ण, धर्म और धनबल से इतर जनता का प्रतिनिधित्व करने वाला नेता चुनेंगे तो वह जनता से जुड़ उनके लिए काम करेगा।
doctor kanak
डॉ.कनक मिश्र, असिस्टेंट प्रोफेसर
डॉ.अनुपमा कौशिक ने कहा कि जनता का प्रतिनिधित्व वह करे जो अपनी जनता को समझ सके। अपने क्षेत्र की समस्याओं को जानता हो, उसके हल के लिए जनता की आवाज़ बन सके। इसके लिए एक सबसे बड़ी अर्हता हो कि वह पढ़ा-लिखा हो। उसकी समाज में बेहतर छवि हो। आमतौर पर देखा जाता है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले या धनबल के बल पर तमाम लोग चुनाव जीत जाते। जनता भी फौरी तौर पर उनको समर्थन दे देती लेकिन आगे के पांच साल वह पछतावा करती है। हमको ऐसे लोगों को चुनना चाहिए जो हमारे बीच का हो, हमारे लिए संघर्ष करता हो। महिला होने के नाते हमको यह देखना होगा कि वह आधी आबादी की समस्याओं को किस स्तर तक समझ सकता और उनके लिए किस स्तर तक आवाज़ बुलंद कर सकता।
anupma
डॉ.अनुपमा कौशिक, असिस्टेंट प्रोफेसर
डॉ.संतोष त्रिपाठी ने कहा कि हमारा नेता वह हो जो वस्तुस्थिति से वाकिफ हो, विषय का ज्ञान हो, समझने वाला हो। ऐसा हो जो समस्याओं को सुलझाने में रुचि ले सके। जो जाति-धर्म और अन्य विवादों से ऊपर की सोच विकास और जनसमस्याओं को निपटान करने में अपनी क्षमता को लगाये। भारतीय संविधान में भले ही जनप्रतिनिधियों की शिक्षा तय नहीं है लेकिन यह माना जाता है कि जो चुना जाएगा वह बेहतर समझ रखता है। लेकिन व्यवस्था के संचालक हमारे नेता खुद अपनी समस्याओं में उलझते जा रहे। आखिर ऐसा कौन सा कारक है कि एक राजनैतिक व्यक्ति और आमजन के आय की वृद्धि में असमानता है। निश्चित रूप से इसपर सबको विचार कर नेता चुनना होगा। आयोग को भी 'नोटा' की तरह 'राईट टू रिकॉल' की व्यवस्था पर विचार करना होगा। एक मानक तय करना होगा कि इतना नोटा वोट होने पर फिर चुनाव हो। यह बेहतरी की ओर एक कदम साबित होगा।
santosh
डॉ.संतोष त्रिपाठी, प्राचार्य, मारवाड़ बिजनेस कॉलेज
डॉ.पूर्णेश नारायण सिंह ने कहा कि जनप्रतिनिधि वह होना चाहिए जो हमारे बीच का हो। जनता की इच्छाओं को समझ सके, उसके अनुरूप काम कर सके। वह बिना किसी भेदभाव क्षेत्र का विकास कर सके। लेकिन आजकल हो इसके विपरीत रहा। जनता अपने जनप्रतिनिधियों का चुनाव संघर्ष या लोकतांत्रिक मूल्यों की कसौटी पर कसकर देखने के बाद करने की बजाय जाति-धर्म, धन-संपत्ति और अन्य मानकों ओअर कर दे रही। इसका खामियाजा समाज को भुगतान पड़ रहा। हमारा नेता एक स्वच्छ और साफ़ सुथरी छवि का विकास को तरजीह देने वाला होना चाहिए।
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डॉ.पूर्णेश नारायण सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर
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