बीते हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो सरकार को तय वक्त से पहले बजट पेश करने से रोक सके। उसे ऐसा इसलिए कहना पड़ा, क्योंकि एक फरवरी को प्रस्तावित आम बजट के खिलाफ एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी।
जैसे सूचना अधिकार कानून के बाद कुछ लोगों ने फालतू की आरटीआई अर्जी दाखिल करने का धंधा बना लिया है वैसे ही कुछ लोग जनहित याचिकाओं का कारोबार चलाते दिख रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के लिए यह आवश्यक है कि वह जनहित याचिकाओं के कारोबार को रोके और उन लोगों को हतोत्साहित करे जो थोक के भाव जनहित याचिकाएं दाखिल करते हैं। इसमें दो राय नहीं कि सुप्रीम कोर्ट किसी भी मसले पर सुनवाई कर सकता है और किसी भी प्रकरण का संज्ञान ले सकता है, लेकिन वह देश की हर समस्या को नहीं सुलझा सकता। चूंकि सुप्रीम कोर्ट करीब-करीब हर मसले पर जनहित याचिकाएं सुनने की कोशिश करता है इसलिए जनता को यह संदेश जाता है कि वह हर समस्या को सुलझा सकने में समर्थ है, लेकिन यह संभव नहीं। हर संस्था की तरह उसकी भी सीमाएं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने गंगा में प्रदूषण का संज्ञान लिया, लेकिन गंगा जस की तस है। उसने पुलिस सुधार का काम हाथ में लिया, लेकिन पुलिस अब भी वैसी ही है। बेहिसाब जनहित याचिकाएं सरकार के लिए भी एक सबक हैं। उसे यह समझना होगा कि सक्षम नियामक संस्थाओं का अभाव लोगों को बात-बात पर अदालतों का दरवाजा खटखटाने को विवश करता है। जब शासन-प्रशासन के स्तर पर किसी मसले की अनदेखी होती है तो पीड़ित-प्रभावित लोगों को अदालत का रास्ता ही एक मात्र रास्ता नजर आता है। 1(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं)
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जैसे सूचना अधिकार कानून के बाद कुछ लोगों ने फालतू की आरटीआई अर्जी दाखिल करने का धंधा बना लिया है वैसे ही कुछ लोग जनहित याचिकाओं का कारोबार चलाते दिख रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के लिए यह आवश्यक है कि वह जनहित याचिकाओं के कारोबार को रोके और उन लोगों को हतोत्साहित करे जो थोक के भाव जनहित याचिकाएं दाखिल करते हैं। इसमें दो राय नहीं कि सुप्रीम कोर्ट किसी भी मसले पर सुनवाई कर सकता है और किसी भी प्रकरण का संज्ञान ले सकता है, लेकिन वह देश की हर समस्या को नहीं सुलझा सकता। चूंकि सुप्रीम कोर्ट करीब-करीब हर मसले पर जनहित याचिकाएं सुनने की कोशिश करता है इसलिए जनता को यह संदेश जाता है कि वह हर समस्या को सुलझा सकने में समर्थ है, लेकिन यह संभव नहीं। हर संस्था की तरह उसकी भी सीमाएं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने गंगा में प्रदूषण का संज्ञान लिया, लेकिन गंगा जस की तस है। उसने पुलिस सुधार का काम हाथ में लिया, लेकिन पुलिस अब भी वैसी ही है। बेहिसाब जनहित याचिकाएं सरकार के लिए भी एक सबक हैं। उसे यह समझना होगा कि सक्षम नियामक संस्थाओं का अभाव लोगों को बात-बात पर अदालतों का दरवाजा खटखटाने को विवश करता है। जब शासन-प्रशासन के स्तर पर किसी मसले की अनदेखी होती है तो पीड़ित-प्रभावित लोगों को अदालत का रास्ता ही एक मात्र रास्ता नजर आता है। 1(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं)
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