प्रदेश के प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फीस वसूली और विभिन्न मदों में किए जा रहे शोषण पर रोक लगाने का खाका यूपी सरकार ने तय कर लिया है। मंगलवार की शाम मुख्यमंत्री के सामने इसका प्रस्तुतिकरण होगा।
सरकार की कोशिश है कि शीतकालीन सत्र में ही यह मसौदा पास करा लिया जाए, जिससे अगले शैक्षणिक सत्र के पूर्व यह प्रभावी बनाया जा सके।
बीजेपी सरकार ने अपने घोषणापत्र में प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए प्रभावी कानून बनाने का वादा किया था। माध्यमिक शिक्षा विभाग ने इसका एक प्रस्तावित ड्राफ्ट भी विभागीय वेबसाइट पर आम लोगों की राय के लिए डाला था।
वहीं, उपमुख्यमंत्री एवं विभागीय मंत्री डॉ़ दिनेश शर्मा ने फीस नियमन से जुड़े सभी पक्षों पर विचार विमर्श के लिए एक कमिटी भी गठित की थी। कमिटी ने शिक्षकों, अभिभावकों सहित इससे जुड़े सभी पक्षों से बात करने के बाद इसको अंतिम रूप दिया है। पूरी कवायद के बीच दिनेश शर्मा की चिंता यह थी कि कानून लागू होने पर न्यायालय से कोई विधिक अड़चन न आए। इससे पहले दूसरे राज्यों में लागू किए फीस नियमन कानून हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से रोके जा चुके हैं। इसलिए शासन ने पूर्व जजों, वरिष्ठ अधिवक्ताओं सहित दूसरे विधिक विशेषज्ञों से भी प्रस्तावित कानून के सभी बिंदुओं पर विस्तार से विचार-विमर्श किया है। फीस नियमन से लेकर स्टेशनरी और ड्रेस खरीद, प्रवेश शुल्क जैसे सभी बिंदुओं को तार्किक रूप से विनियमित करने के प्रावधान प्रस्तावित कानून में किए गए हैं।
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सरकार की कोशिश है कि शीतकालीन सत्र में ही यह मसौदा पास करा लिया जाए, जिससे अगले शैक्षणिक सत्र के पूर्व यह प्रभावी बनाया जा सके।
बीजेपी सरकार ने अपने घोषणापत्र में प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए प्रभावी कानून बनाने का वादा किया था। माध्यमिक शिक्षा विभाग ने इसका एक प्रस्तावित ड्राफ्ट भी विभागीय वेबसाइट पर आम लोगों की राय के लिए डाला था।
वहीं, उपमुख्यमंत्री एवं विभागीय मंत्री डॉ़ दिनेश शर्मा ने फीस नियमन से जुड़े सभी पक्षों पर विचार विमर्श के लिए एक कमिटी भी गठित की थी। कमिटी ने शिक्षकों, अभिभावकों सहित इससे जुड़े सभी पक्षों से बात करने के बाद इसको अंतिम रूप दिया है। पूरी कवायद के बीच दिनेश शर्मा की चिंता यह थी कि कानून लागू होने पर न्यायालय से कोई विधिक अड़चन न आए। इससे पहले दूसरे राज्यों में लागू किए फीस नियमन कानून हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से रोके जा चुके हैं। इसलिए शासन ने पूर्व जजों, वरिष्ठ अधिवक्ताओं सहित दूसरे विधिक विशेषज्ञों से भी प्रस्तावित कानून के सभी बिंदुओं पर विस्तार से विचार-विमर्श किया है। फीस नियमन से लेकर स्टेशनरी और ड्रेस खरीद, प्रवेश शुल्क जैसे सभी बिंदुओं को तार्किक रूप से विनियमित करने के प्रावधान प्रस्तावित कानून में किए गए हैं।
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