नौ मई को महाराणा प्रताप की जयंती के अवसर पर सार्वजनिक अवकाश घोषित
किए जाने के बाद उत्तर प्रदेश में सरकारी छुट्टियों की संख्या 38 हो गई है. इससे पहले हाल ही में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर जयंती,
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जयंती और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर
परिनिर्वाण दिवस जैसी नई छुट्टियां प्रदेश सरकार ने घोषित की थीं. उत्तर प्रदेश में 38 सरकारी छुट्टियां अपने आप में एक अनूठी बात है क्योंकि
केरल में 18, मध्य प्रदेश में 17, राजस्थान में 28 और बिहार में 21 सरकारी
छुट्टियां होती हैं.
यदि इन छुट्टियों में इस साल के 52 रविवार और 52 शनिवार जोड़ दिए जाएं तो उत्तर प्रदेश में सरकारी दफ्तर 142 दिन बंद रहेंगे.
साल में 171 अवकाश
सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाली 15 अर्जित और 14 आकस्मिक छुट्टियों को भी यदि शामिल कर लिया जाए तो प्रदेश सरकार में साल के 171 दिन यानी लगभग छह महीने, छुट्टी रहेगी.
आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने इतनी ज़्यादा सरकारी छुट्टियों के खिलाफ जनहित याचिक दायर की है जिसमें छुट्टियां घोषित करने के लिए नीति निर्धारित करने की अपील की गई है.
अमिताभ ने इस मामले में कहा कि राज्य सरकार की ओर से घोषित ज्यादा छुट्टियां राजनीतिक स्वार्थ और जातिगत राजनीति से प्रेरित हैं. उनकी अपील पर सुनवाई 12 को मई को होनी है.
वे पूछते हैं कि, "अगर चंद्रशेखर की जयंती पर इसलिए अवकाश घोषित किया गया कि वे प्रधानमंत्री थे तो तो वीपी सिंह के नाम पर छुट्टी क्यों नहीं? और महाराणा प्रताप की जयंती पर छुट्टी करने की सुध इतने सालों बाद कैसे आई? कर्पूरी ठाकुर के नाम पर जब बिहार में छुट्टी नहीं होती तो उत्तर प्रदेश में उस छुट्टी का क्या औचित्य है?"
राजनीतिक फ़ैसले
पांच दिन के सप्ताह का ज़िक्र करते हुए अमिताभ ठाकुर बोले, "काम करने के घंटे सुबह 9 बजे से शाम छह बजे तक हैं लेकिन ज़्यादातर दफ्तरों में लोग 10.30 बजे से पहले काम नहीं शुरू करते."
वैसे अमिताभ ठाकुर ये बताना भूल गए कि सभी अधिकारी दोपहर 2 बजे से 4 बजे तक भोजन अवकाश पर रहते हैं. प्रदेश में जाति विशेष के आधार पर छुट्टी होना नई बात नहीं है.
बसपा सरकार ने अंबेडकर और कांशीराम की जयंती और पुण्य तिथियों पर छुट्टियां कीं और मुलायम सिंह यादव सरकार में परशुराम जयंती की छुट्टी हुई.
यानी अगर ब्राह्मणों को लुभाने के लिए परशुराम जयंती की छुट्टी का एलान हुआ तो क्षत्रियों को लुभाने के लिए महाराणा प्रताप की जयंती पर भी अवकाश हो गया.
अवकाश से मुश्किल
अंबेडकर परिनिर्वाण दिवस पर मायावती द्वारा घोषित छुट्टी अखिलेश सरकार ने पहले हटा दी थी. लेकिन शायद सपा सरकार दलित वोटरों को नाराज़ करने का जोखिम नहीं उठाना चाहती थी तो तो उसे दोबारा छुट्टी घोषित कर दिया.
38 छुट्टियों का सबसे बुरा असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ रहा है क्योंकि स्कूल दो महीने गर्मी और एक महीने सर्दियों में पहले से ही बंद रहते हैं.
अगर गर्मी या ठण्ड ज़्यादा है तो ये छुट्टियां बढ़ा दी जाती हैं. बचे हुए समय में शिक्षकों के लिए कोर्स पूरा करना मुश्किल हो जाता है.
लेकिन उत्तर प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा मंत्री विनोद कुमार उर्फ़ पंडित सिंह ऐसा नहीं मानते.
वे कहते हैं, "जब कोई छुट्टी होती है तो लोग, बच्चे पूछते हैं कि आज क्या है तो लोग बताते हैं कि आज इस महापुरुष की जयंती है. इससे जानकारी भी बढ़ती है. इसके अलावा छुट्टी की बात सुनकर बच्चे ख़ुश हो जाते हैं."
पंडित सिंह मानते हैं कि इतनी ज़्यादा छुट्टियों का असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ता है. "देखिए टीचर और बच्चों को थोड़ी मेहनत तो ज़्यादा करनी पड़ती है.
राजनीति शास्त्री एवं पूर्व प्रो़फेसर एसके द्विवेदी का कहना है, "छुट्टियां बढ़ाने के फ़ैसले सीधे वोटों से जुड़े हैं. लेकिन किसी के कितने वोट बढ़ते हैं, यह कोई नहीं जानता."
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यदि इन छुट्टियों में इस साल के 52 रविवार और 52 शनिवार जोड़ दिए जाएं तो उत्तर प्रदेश में सरकारी दफ्तर 142 दिन बंद रहेंगे.
साल में 171 अवकाश
सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाली 15 अर्जित और 14 आकस्मिक छुट्टियों को भी यदि शामिल कर लिया जाए तो प्रदेश सरकार में साल के 171 दिन यानी लगभग छह महीने, छुट्टी रहेगी.
आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने इतनी ज़्यादा सरकारी छुट्टियों के खिलाफ जनहित याचिक दायर की है जिसमें छुट्टियां घोषित करने के लिए नीति निर्धारित करने की अपील की गई है.
अमिताभ ने इस मामले में कहा कि राज्य सरकार की ओर से घोषित ज्यादा छुट्टियां राजनीतिक स्वार्थ और जातिगत राजनीति से प्रेरित हैं. उनकी अपील पर सुनवाई 12 को मई को होनी है.
वे पूछते हैं कि, "अगर चंद्रशेखर की जयंती पर इसलिए अवकाश घोषित किया गया कि वे प्रधानमंत्री थे तो तो वीपी सिंह के नाम पर छुट्टी क्यों नहीं? और महाराणा प्रताप की जयंती पर छुट्टी करने की सुध इतने सालों बाद कैसे आई? कर्पूरी ठाकुर के नाम पर जब बिहार में छुट्टी नहीं होती तो उत्तर प्रदेश में उस छुट्टी का क्या औचित्य है?"
राजनीतिक फ़ैसले
पांच दिन के सप्ताह का ज़िक्र करते हुए अमिताभ ठाकुर बोले, "काम करने के घंटे सुबह 9 बजे से शाम छह बजे तक हैं लेकिन ज़्यादातर दफ्तरों में लोग 10.30 बजे से पहले काम नहीं शुरू करते."
वैसे अमिताभ ठाकुर ये बताना भूल गए कि सभी अधिकारी दोपहर 2 बजे से 4 बजे तक भोजन अवकाश पर रहते हैं. प्रदेश में जाति विशेष के आधार पर छुट्टी होना नई बात नहीं है.
बसपा सरकार ने अंबेडकर और कांशीराम की जयंती और पुण्य तिथियों पर छुट्टियां कीं और मुलायम सिंह यादव सरकार में परशुराम जयंती की छुट्टी हुई.
यानी अगर ब्राह्मणों को लुभाने के लिए परशुराम जयंती की छुट्टी का एलान हुआ तो क्षत्रियों को लुभाने के लिए महाराणा प्रताप की जयंती पर भी अवकाश हो गया.
अवकाश से मुश्किल
अंबेडकर परिनिर्वाण दिवस पर मायावती द्वारा घोषित छुट्टी अखिलेश सरकार ने पहले हटा दी थी. लेकिन शायद सपा सरकार दलित वोटरों को नाराज़ करने का जोखिम नहीं उठाना चाहती थी तो तो उसे दोबारा छुट्टी घोषित कर दिया.
38 छुट्टियों का सबसे बुरा असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ रहा है क्योंकि स्कूल दो महीने गर्मी और एक महीने सर्दियों में पहले से ही बंद रहते हैं.
अगर गर्मी या ठण्ड ज़्यादा है तो ये छुट्टियां बढ़ा दी जाती हैं. बचे हुए समय में शिक्षकों के लिए कोर्स पूरा करना मुश्किल हो जाता है.
लेकिन उत्तर प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा मंत्री विनोद कुमार उर्फ़ पंडित सिंह ऐसा नहीं मानते.
वे कहते हैं, "जब कोई छुट्टी होती है तो लोग, बच्चे पूछते हैं कि आज क्या है तो लोग बताते हैं कि आज इस महापुरुष की जयंती है. इससे जानकारी भी बढ़ती है. इसके अलावा छुट्टी की बात सुनकर बच्चे ख़ुश हो जाते हैं."
पंडित सिंह मानते हैं कि इतनी ज़्यादा छुट्टियों का असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ता है. "देखिए टीचर और बच्चों को थोड़ी मेहनत तो ज़्यादा करनी पड़ती है.
राजनीति शास्त्री एवं पूर्व प्रो़फेसर एसके द्विवेदी का कहना है, "छुट्टियां बढ़ाने के फ़ैसले सीधे वोटों से जुड़े हैं. लेकिन किसी के कितने वोट बढ़ते हैं, यह कोई नहीं जानता."
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