राब्यू, इलाहाबाद : उन्हें न अधिकार ही मिल सका और न ही सम्मान। चार
लाख वित्तविहीन शिक्षकों की लड़ाई शिक्षा मित्रों के समायोजन को लेकर उठे
विवाद में दब कर रह गई। निजी माध्यमिक विद्यालयों में पढ़ा रहे इन शिक्षकों
ने ‘मानदेय सरकार से, भुगतान कोषागार’ से का नारा बुलंद किया था और सरकार
ने इसे पूरा करने का वादा भी किया था लेकिन अब सरकार ने चुप्पी साध ली है।
वित्तविहीन
अध्यापक माध्यमिक शिक्षा की रीढ़ हैं। लगभग 18 हजार विद्यालयों में इनकी
नियुक्ति है। इसके अलावा अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालयों में भी ऐसे
हजारों शिक्षक काम कर रहे हैं। शिक्षण के अलावा परीक्षण, कक्ष निरीक्षण के
काम उनसे लिए जाते हैं। प्रतियोगात्मक परीक्षाओं में परीक्षक बनो जाने के
साथ ही मूल्यांकन में भी उनकी ड्यूटी लगाई जाती है, लेकिन सरकार का ध्यान
प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ा रहे शिक्षा मित्रों की ओर तो है लेकिन
माध्यमिक विद्यालयों के वित्तविहीन शिक्षकों की लगातार उपेक्षा होती रही
जबकि सुप्रीम कोर्ट भी समान कार्य के आधार पर उन्हें पूर्णकालिक अध्यापक
मान चुका है। शिक्षक निर्वाचन चुनाव में ऐसे शिक्षकों को मत देने का अधिकार
भी मिल चुका है। अशासकीय माध्यमिक शिक्षक संघ के महामंत्री त्रिवेणी
प्रसाद त्रिपाठी कहते हैं कि वित्तविहीन शिक्षकों से वह सारे काम लिए जा
रहे हैं जो सरकार से वेतन पाने वाले शिक्षक करते हैं। फिर भी उनकी ओर से
उदासीनता बनी हुई है। खुद उनके संगठन भी इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से उठाने
में असफल ही रहे। बीते माह मुख्यमंत्री ने इसके लिए उच्च स्तरीय बैठक भी
बुलाई थी जिसमें शिक्षा मंत्री महबूब अली भी शामिल हुए थे। इसमें यह फैसला
किया गया था कि वित्तविहीन शिक्षकों का भुगतान चेक के माध्यम से कराना
सुनिश्चित किया जाएगा। मानदेय पर विचार करने का आश्वासन भी दिया गया। इस
आश्वासन पर वित्तविहीन शिक्षकों ने अपना आंदोलन वापस ले लिया। शिक्षा
मित्रों के समायोजन के मुद्दे पर सरकार दबाव में आ गई,उसके बाद वित्तविहीन
शिक्षकों का मामला अधर में लटक गया।
शिक्षा मित्रों के विवाद को भेंट चढ़ गई वित्तविहीन शिक्षकों की मांग
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