लखनऊ, आईवॉच न्यूज ब्यूरो। प्रदेश में गत्ï साढ़े तीन सालों से 72,825 शिक्षकों की नियुक्ति का मामला सरकार के लिए बड़ी मुसीबत का सबब बन रहा है, लेकिन यह नियुक्ति सरकार को आइना दिखाने का भी काम कर रहा है।
प्रदेश की सरकार ने सहायक अध्यापकों की नियुक्ति को अपनी नाक का मामला बना लिया है। सरकार ने अपनी चाल चलते हुए शिक्षकों की भर्ती के मामले में शिक्षामित्रों को जिस तेजी से और गैर कानूनी तरीके से आगे बढ़ा रही है उससे इतना तो तय है कि यही शिक्षा मित्र आने वाले समय में सरकार के गले की हड्ïडी बनने वाले हैं। एक तरफ प्रदेश में विशिष्टï बीटीसी अर्थात बीएड और टीईटी पास पढ़े लिखे सहायक अध्यापकों की फौज खड़ी है तो वहीं सरकार इन्हें नजरअंदाज करके इंटर पास और गांवों में प्रधान के पीछे-पीछे घूमने वाले कम शिक्षित शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाने पर तुली हुई है। सरकार की मंशा क्या है यह तो समझ से परे है लेकिन सिर्फ वोट की राजनीति के चलते प्रदेश सरकार पढ़े लिखे बेरोजगारों के साथ बड़ा खिलवाड़ कर रही है। देश की सर्वोच्च अदालत ने भी शिक्षामित्रों को शिक्षक बनने के योग्य नहीं माना। सर्वोच्च अदालत ने तो यहां तक कह दिया कि यह शिक्षामित्र नहीं बल्कि शिक्षाशत्रु हैं। बावजूद इसके प्रदेश सरकार जिस तरह से शिक्षित अध्यापकों को दरकिनार करते हुए इन शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बना रही है उससे इतना तो साफ है कि सरकार को न तो शिक्षा में सुधार से कोई लेना-देना है और न ही कानून को समझना है। इन्हें तो बस किसी भी हालत में अपनी कुर्सी के लिए अशिक्षित लोगों के साथ एक समझौता करना है। सरकार यह भूल गई कि ठीक ऐसा ही कुछ बसपा सरकार ने भी किया था। जिसका खामियाजा उन्हें सरकार गंवा कर चुकाना पड़ा। हम कतई शिक्षामित्रों का विरोध नहीं करते लेकिन जब प्रदेश में शिक्षित अध्यापकों की फौज खड़ी है ऐसी स्थिति में इंटर पास शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाना किसी भी लिहाज से उचित और कानून संगत नहीं लग रहा है। सरकार भी इस बात को जानती और समझती है। बावजूद इसके सिर्फ राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए वह अपनी सोच को दरकिनार कर ऐसे गैरकानूनी कदम उठा रही है। हो सकता है कि सरकार रहते शिक्षा मित्रों को सहायक अध्यापक बना भी दिया जाए लेकिन भविष्य में कानूनी प्रक्रिया के चलते ये सारे शिक्षामित्र सहायक अध्यापक के पदों से हटा दिए जाएंगे। ऐसे में यह शिक्षामित्र न तो शिक्षामित्र ही रह जाएंगे और न तो सहायक अध्यापक। शिक्षामित्रों की नियुक्ति के मामले में सरकार की तेजी सरकार के लिए बड़ी मुसीबत बनेगी। अन्य प्रदेशों में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को सरकारों ने बड़ी गंभीरता से लिया है और शिक्षामित्रों की नियुक्ति को काफी हद तक रोक भी दिया है, लेकिन उत्तर प्रदेश में हमारी अखिलेश सरकार सिर्फ अपने अहम के चलते कानून की परवाह किए बिना शिक्षा मित्रों के जीवन के साथ-साथ विशिष्टï बीटीसी और टीईटी पास शिक्षित सहायक अध्यापकों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रही है। सरकार की मंशा साफ है उन्हें किसी के जीवन या भविष्य से कोई लेना-देना नहीं उन्हें तो प्रदेश में राज करने के लिए हर वह कदम उठाना है जिससे उनकी कुर्सी बनी रहे। चाहे वह कदम कानून सम्मत भी न हो।
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प्रदेश की सरकार ने सहायक अध्यापकों की नियुक्ति को अपनी नाक का मामला बना लिया है। सरकार ने अपनी चाल चलते हुए शिक्षकों की भर्ती के मामले में शिक्षामित्रों को जिस तेजी से और गैर कानूनी तरीके से आगे बढ़ा रही है उससे इतना तो तय है कि यही शिक्षा मित्र आने वाले समय में सरकार के गले की हड्ïडी बनने वाले हैं। एक तरफ प्रदेश में विशिष्टï बीटीसी अर्थात बीएड और टीईटी पास पढ़े लिखे सहायक अध्यापकों की फौज खड़ी है तो वहीं सरकार इन्हें नजरअंदाज करके इंटर पास और गांवों में प्रधान के पीछे-पीछे घूमने वाले कम शिक्षित शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाने पर तुली हुई है। सरकार की मंशा क्या है यह तो समझ से परे है लेकिन सिर्फ वोट की राजनीति के चलते प्रदेश सरकार पढ़े लिखे बेरोजगारों के साथ बड़ा खिलवाड़ कर रही है। देश की सर्वोच्च अदालत ने भी शिक्षामित्रों को शिक्षक बनने के योग्य नहीं माना। सर्वोच्च अदालत ने तो यहां तक कह दिया कि यह शिक्षामित्र नहीं बल्कि शिक्षाशत्रु हैं। बावजूद इसके प्रदेश सरकार जिस तरह से शिक्षित अध्यापकों को दरकिनार करते हुए इन शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बना रही है उससे इतना तो साफ है कि सरकार को न तो शिक्षा में सुधार से कोई लेना-देना है और न ही कानून को समझना है। इन्हें तो बस किसी भी हालत में अपनी कुर्सी के लिए अशिक्षित लोगों के साथ एक समझौता करना है। सरकार यह भूल गई कि ठीक ऐसा ही कुछ बसपा सरकार ने भी किया था। जिसका खामियाजा उन्हें सरकार गंवा कर चुकाना पड़ा। हम कतई शिक्षामित्रों का विरोध नहीं करते लेकिन जब प्रदेश में शिक्षित अध्यापकों की फौज खड़ी है ऐसी स्थिति में इंटर पास शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाना किसी भी लिहाज से उचित और कानून संगत नहीं लग रहा है। सरकार भी इस बात को जानती और समझती है। बावजूद इसके सिर्फ राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए वह अपनी सोच को दरकिनार कर ऐसे गैरकानूनी कदम उठा रही है। हो सकता है कि सरकार रहते शिक्षा मित्रों को सहायक अध्यापक बना भी दिया जाए लेकिन भविष्य में कानूनी प्रक्रिया के चलते ये सारे शिक्षामित्र सहायक अध्यापक के पदों से हटा दिए जाएंगे। ऐसे में यह शिक्षामित्र न तो शिक्षामित्र ही रह जाएंगे और न तो सहायक अध्यापक। शिक्षामित्रों की नियुक्ति के मामले में सरकार की तेजी सरकार के लिए बड़ी मुसीबत बनेगी। अन्य प्रदेशों में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को सरकारों ने बड़ी गंभीरता से लिया है और शिक्षामित्रों की नियुक्ति को काफी हद तक रोक भी दिया है, लेकिन उत्तर प्रदेश में हमारी अखिलेश सरकार सिर्फ अपने अहम के चलते कानून की परवाह किए बिना शिक्षा मित्रों के जीवन के साथ-साथ विशिष्टï बीटीसी और टीईटी पास शिक्षित सहायक अध्यापकों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रही है। सरकार की मंशा साफ है उन्हें किसी के जीवन या भविष्य से कोई लेना-देना नहीं उन्हें तो प्रदेश में राज करने के लिए हर वह कदम उठाना है जिससे उनकी कुर्सी बनी रहे। चाहे वह कदम कानून सम्मत भी न हो।
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