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उम्मीदवार की शैक्षणिक योग्यता जानना मतदाताओं का हक: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि उम्मीदवार की शैक्षणिक योग्यता जानना मतदाताओं का मौलिक अधिकार है। शीर्ष न्यायालय के अनुसार, शैक्षणिक योग्यता के बारे में गलत जानकारी देने पर प्रत्याशी का नामांकन पत्र रद हो सकता है।
1न्यायमूर्ति एआर दवे व न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ ने चुनाव रद करने के मणिपुर हाई कोर्ट के फैसले पर मुहर लगाते हुए उपरोक्त फैसला सुनाया। पीठ ने कहा, ‘उम्मीदवार की शैक्षणिक योग्यता के बारे में जानना मतदाताओं का मौलिक अधिकार है।
 जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधानों, नियमों और फार्म 26 से भी यह बात साफ हो जाती है कि अपनी शैक्षणिक योग्यता के बारे में सही जानकारी देना हर उम्मीदवार का कर्तव्य है। पीठ ने मणिपुर हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए यह भी कहा कि जब चुनाव मैदान में सिर्फ दो उम्मीदवार हों और यह साबित हो जाए कि निर्वाचित प्रत्याशी का नामांकन गलत तरीके से स्वीकार हुआ था तो हारे उम्मीदवार को यह साबित करने की जरूरत नहीं है कि इससे चुनाव का नतीजा प्रभावित हो सकता था। यह मामला 2012 के मणिपुर विधानसभा चुनाव का है। इसमें मैरबन पृथ्वीराज उर्फ पृथ्वीराज सिंह और पुखरेम शरदचंद्र सिंह एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़े थे। हाई कोर्ट ने पुखरेम की चुनाव याचिका स्वीकार करते हुए पृथ्वीराज का चुनाव रद कर दिया था। इस आदेश के खिलाफ पृथ्वीराज ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की थी। 1चुनाव में पृथ्वीराज ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) से चुनाव लड़ा था। इसमें उन्होंने अपनी शैक्षणिक योग्यता एमबीए बताई थी। प्रतिवादी उम्मीदवार पुखरेम शरदचंद्र ने इसे झूठ कहते हुए चुनौती दी थी। बाद में यह साबित भी हो गया कि पृथ्वीराज ने एमबीए नहीं की है। पृथ्वीराज का कहना था कि यह सिर्फ क्लेरिकल गलती है। लेकिन हाई कोर्ट ने उनकी यह दलील ठुकरा दी थी। शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि याचिकाकर्ता ने मैसूर विश्वविद्यालय से एमबीए नहीं किया और उनकी क्लेरिकल गलती की दलील भी नहीं स्वीकार की जा सकती।

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