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भर्ती परीक्षाओं के यह कुछ आंकड़े हैं, जो डराते हैं : चार-पांच सौ पदों के लिए भी लाखों में मुकाबला

भर्ती परीक्षाओं के यह कुछ आंकड़े हैं, जो डराते हैं..
पीसीएस-2016, कुल पद-633, प्रारंभिक परीक्षा में दावेदारों की संख्या-चार लाख, 36 हजार, 413
लोअर -2015, कुल पद-635, आवेदन करने वालों की संख्या- चार लाख 89 हजार 672
समीक्षा अधिकारी/सहायक समीक्षा अधिकारी-2014, कुल पद-640, आवेदन आए- तीन लाख 73 हजार 664
इलाहाबाद प्रदेश में कमोबेश यही हाल अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं का है। वह चाहे लोक सेवा आयोग हो या फिर माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड या फिर बेसिक शिक्षा परिषद की ही भर्तियां क्यों न हों। पद कम हैं और दावेदारों की भीड़ बढ़ती जा रही है। उदाहरण के लिए आरओ-एआरओ-2016 की प्रारंभिक परीक्षा को ही लिया जा सकता है, जिसमें इस बार पौने चार लाख अभ्यर्थी शामिल हुए। भर्ती संस्थाओं के कैलेंडर का जो हाल है, उसमें यह संख्या और बढ़ने के पूरे आसार हैं। इससे जहां युवाओं में कुंठा और अवसाद की आशंकाएं बढ़ रही हैं, वहीं विभागीय स्तर पर कर्मचारियों की कमी से कामकाज भी प्रभावित होगा।

क्या है कारण : प्रतियोगी परीक्षाओं में भीड़ बढ़ने का प्रमुख कारण भर्तियों का समय से न हो पाना है। लोक सेवा आयोग में ही शासन से अधियाचन भेजने में विलंब तो हो ही रहा है, परिणाम में भी बेवजह लेट-लतीफी है। उदाहरण के लिए आरओ-एआरओ-2014 का परिणाम नवंबर में तब घोषित हुआ जबकि 2016 की प्रारंभिक परीक्षा हो चुकी थी, हालांकि इसकी अंतिम परीक्षा जुलाई में ही समाप्त हो चुकी थी। इसी तरह उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग में पिछले आठ साल से कोई परिणाम ही नहीं घोषित हुआ। यहां 1652 पदों के लिए साक्षात्कार जरूर चल रहे हैं लेकिन उनका परिणाम नहीं घोषित हो सकता क्योंकि सदस्यों के न होने से आयोग ही भंग चल रहा है।

पचास फीसदी लक्ष्यहीन : प्रतियोगी क्षेत्र की यह भी अजब विडंबना है कि लगभग पचास फीसदी युवा अपनी परीक्षाओं को लेकर दिशाहीन हैं। इस साल ही छह महत्वपूर्ण परीक्षाओं में सात लाख से अधिक अभ्यर्थी शामिल हुए हैं जबकि आवेदन करने वालों की संख्या दोगुनी थी।विशेषज्ञ मानते हैं कि इसका प्रमुख कारण युवाओं का लक्ष्यहीन होना है। कई अभ्यर्थी प्रशासनिक क्षेत्र की भर्तियों के साथ-साथ अन्य सभी परीक्षाओं में आवेदन कर रहे हैं। ऐसे में उनमें हताशा बढ़ रही है। हालांकि प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के मीडिया प्रभारी अवनीश पांडेय इसके लिए परीक्षा संस्थाओं को भी दोषी मानते हैं। उनके अनुसार यदि समय पर भर्तियां होने लगें तो युवाओं के लिए अवसर बढ़ जाएंगे, तब इतनी भीड़ नहीं नजर आएगी।
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