इलाहाबाद। सहायक अध्यापक के पद से समायोजन निरस्त होने के बाद से
शिक्षामित्र मूल विद्यालयों में वापसी का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन इस
संबंध में शासन ने अब तक कोई निर्णय नहीं लिया है। नतीजतन दूसरे जिलों में
तैनात ज्यादातर शिक्षामित्र विद्यालय नहीं जा रहे हैं। इसका सीधा असर
पठन-पाठन पड़ रहा है।
सर्वोच्च अदालत ने 25 जुलाई को शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक के पद से समायोजन रद्द किया। इसके पहले जब पूर्ववर्ती सरकार ने उनका समायोजन किया तो मासिक पगार 38 हजार रुपये या उससे अधिक हो गई, जबकि शिक्षामित्र रहते उन्हें मात्र साढ़े तीन हजार रुपये मिल रहे थे। समायोजन के पहले तक शिक्षामित्र अपने घरों के आसपास के विद्यालयों में ही तैनात थे लेकिन नियमितीकरण के बाद उनकी तैनाती दूसरे विद्यालयों में की गई। समायोजन में पगार में भारी-भरकम इजाफा हुआ सो इन शिक्षकों ने विरोध नहीं किया और जिसे जहां के लिए नियुक्ति पत्र मिला, जाकर कार्यभार संभाल लिया। जुलाई में समायोजन रद्द होने के बाद शिक्षामित्रों ने आंदोलन किया तो सरकार ने मानदेय साढ़े तीन हजार से बढ़ाकर 10 हजार रुपये कर दिया।
पहले तो इन शिक्षकों को नियमित मानदेय नहीं मिल रहा है, दूसरे इतने कम मानदेय पर घरों से दूर दूसरे जिलों में वे काम करने को तैयार नहीं है और मूल विद्यालय में वापसी की मांग कर रहे हैं लेकिन सरकार ने इस पर फैसला अब तक नहीं लिया है। इसकी वजह से दूर-दराज के विद्यालयों में तैनात शिक्षामित्र नियमित जा भी नहीं रहे। कई जिलों के बेसिक शिक्षा परिषद से इस संबंध में दिशा-निर्देश मांग रहे हैं लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिल रहा। सचिव संजय सिन्हा का कहना है कि इस मामले में कोई निर्णय शासन को लेना है।
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सर्वोच्च अदालत ने 25 जुलाई को शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक के पद से समायोजन रद्द किया। इसके पहले जब पूर्ववर्ती सरकार ने उनका समायोजन किया तो मासिक पगार 38 हजार रुपये या उससे अधिक हो गई, जबकि शिक्षामित्र रहते उन्हें मात्र साढ़े तीन हजार रुपये मिल रहे थे। समायोजन के पहले तक शिक्षामित्र अपने घरों के आसपास के विद्यालयों में ही तैनात थे लेकिन नियमितीकरण के बाद उनकी तैनाती दूसरे विद्यालयों में की गई। समायोजन में पगार में भारी-भरकम इजाफा हुआ सो इन शिक्षकों ने विरोध नहीं किया और जिसे जहां के लिए नियुक्ति पत्र मिला, जाकर कार्यभार संभाल लिया। जुलाई में समायोजन रद्द होने के बाद शिक्षामित्रों ने आंदोलन किया तो सरकार ने मानदेय साढ़े तीन हजार से बढ़ाकर 10 हजार रुपये कर दिया।
पहले तो इन शिक्षकों को नियमित मानदेय नहीं मिल रहा है, दूसरे इतने कम मानदेय पर घरों से दूर दूसरे जिलों में वे काम करने को तैयार नहीं है और मूल विद्यालय में वापसी की मांग कर रहे हैं लेकिन सरकार ने इस पर फैसला अब तक नहीं लिया है। इसकी वजह से दूर-दराज के विद्यालयों में तैनात शिक्षामित्र नियमित जा भी नहीं रहे। कई जिलों के बेसिक शिक्षा परिषद से इस संबंध में दिशा-निर्देश मांग रहे हैं लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिल रहा। सचिव संजय सिन्हा का कहना है कि इस मामले में कोई निर्णय शासन को लेना है।
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