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उत्तराखण्ड एवं यूपी शिक्षामित्र प्रकरण में यह है मुख्य अंतर: पढ़ें

शिक्षामित्र प्रकरण उत्तराखण्ड एव उत्तर प्रदेश में अंतर पढे।
शिक्षामित्र योजना जब शुरू हुई तब उत्तराखण्ड नही बना था। दोनों जगह की भर्ती एक नियम पर हुई उत्तराखण्ड हो चाहे उत्तर प्रदेश किसी प्रदेश में सरकारो ने इनके हित में कुछ नही किया। बात करते है।
उत्तराखण्ड की RTE लागू होने से पहले दोनों राज्यो से कहा गया जो अप्रशिक्षित अध्यापक है। सेवारत पद पर रहते हुए बीटीसी करा दी जाये प्रशिक्षित नही होने पर स्कूल में पढ़ा नही पायेगे। उत्तराखण्ड सरकार ने कोई ध्यान नही दिया इस बात पर फिर सभी शिक्षामित्रो को रेगुलर बीटीसी करा दिया। उसके बाद राज्य सरकार NCTE की अधिसूचना 23 /8/2010 से प्रभावित हो गई। शिक्षामित्रो की सेवा में 2 वर्ष का ब्रेक हो गया। अपनी गलती को सही करने के लिए राज्य सरकार ने संविदा सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति दे कर शिक्षामित्रो को रख लिया इन पदों पर इनकी नियुक्ति 31 मार्च 2015 से पहले हुई इस लिए यह RTE के संसोधन आदेश 2017 के अंतगर्त टेट पास कर नियमित नियुक्ति पा सकते है। लेकिन जो पास नही कर पाया उसे 31मार्च 2019 में बाहर जाना होगा। क्योंकि संविदा सहायक अध्यापक का पद ही समाप्त हो जायेगा।
उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार ने स्नातक शिक्षामित्रो को अप्रशिक्षित का लाभ देते हुऐ NCTE की अनुमति पर 23 अगस्त 2010 से पूर्व योग्यताधारी नियुक्त शिक्षामित्रो को सेवारत पत्राचार बीटीसी कराया। फिर संविदा शिक्षामित्र के पद से समायोजन का आदेश 172000 का जारी कर दिया।सेवारत प्रशिक्षण सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत हुआ। और समायोजन बेसिक शिक्षामित्र के अंतर्गत हुआ। जब सेवारत थे। फिर प्रशिक्षण के बाद नियमतिकरण क्यों नही किया गया।उत्तर प्रदेश के स्नातक शिक्षामित्र अब प्रशिक्षित स्नातक शिक्षामित्र बन चुके है। इन्हे 31 मार्च 2019 के बाद भी बाहर नही किया जा सकता है। यह सर्व शिक्षा के प्रशिक्षित अध्यापक है। इन्हे वेतन आदि सुविधा देने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है।

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