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परिषदीय विद्यालयों में अनुदेशकों की नियुक्ति की अर्हता में ढील देने की याचिका खारिज: गलत नियुक्ति नहीं बन सकती दृष्टांत

इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी को गलत तरीके से नियुक्त किया गया है तो दूसरे लोग उसे दृष्टांत के रूप में पेश कर स्वयं की भी नियुक्ति की मांग नहीं कर सकते।
कहा कि कोर्ट पर कानून के राज को लागू करवाने की जिम्मेदारी है, उससे कानून के विपरीत आदेश जारी करने की मांग नहीं की जा सकती। यह कहते हुए कोर्ट ने प्राथमिक विद्यालय में 11 माह के लिए संविदा पर अनुदेशकों की नियुक्ति अर्हता में ढील देने की मांग में दाखिल याचिकाएं खारिज कर दी है।1यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केशरवानी ने विमलेश कुमारी व 14 अन्य की याचिका पर दिया है। 31 जनवरी 2013 के शासनादेश से इंटरमीडिएट कला विषय में उत्तीर्ण या बीए उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को अनुदेशक पद पर मानदेय देकर नियुक्ति का फैसला लिया गया, जो कला विषय के साथ इंटरमीडिएट या स्नातक उत्तीर्ण नहीं थे, उन्हें चयन में शामिल नहीं किया गया। महाराष्ट्र से प्राविधिक कला विषय से इंटरमीडिएट उत्तीर्ण और सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से शास्त्री उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को चयन में शामिल नहीं किया गया तो उन्होंने याचिका दाखिल की। याचियों का कहना था कि ड्राइंग ग्रेड को कला विषय माना जाए और शास्त्री को बीए के समकक्ष होने के नाते मान्य किया जाए। तर्क दिया कि दूसरे जिलों में ड्राइंग डिग्री वालों को कला विषय में शामिल करते हुए नियुक्त किया गया है। कोर्ट ने कहा कि शासनादेश की वैधता को चुनौती दी गई है लेकिन, उस पर बहस नहीं की गई। ऐसे में शासनादेश वैध है और इसके तहत निर्धारित अर्हता ही मान्य है। कोई यह नहीं कह सकता कि दूसरे जिले में गलत नियुक्ति हुई है तो उन्हें भी नियुक्त किया जाए। कोर्ट ने कहा कि गलत कार्य के लाभ की मांग नहीं की जा सकती।

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