इलाहाबाद : उपचुनाव की घोषणा के साथ हर दल जीत के लिए बिसात बिछा रहा
है। इस चुनावी चौसर में सीबीआइ जांच के सुर सुनाई पड़ना तय है। बस, अंतर
इतना है कि 2014 लोकसभा, 2017 विधानसभा चुनाव के
दौरान उप्र लोकसेवा आयोग की सीबीआइ जांच अहम मुद्दा
बनी।
अब फूलपुर संसदीय सीट के उपचुनाव में इस जांच की प्रगति पर चर्चा
होगी। सीबीआइ जांच तेजी से शुरू हो चुकी है, ऐसे में सत्तापक्ष और विपक्ष
दोनों को इससे जुड़े सवालों का जवाब देना होगा। यह मुद्दा कितना अहम है
इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है संसदीय सीट के पांच विधानसभा
क्षेत्रों में से तीन पर प्रतियोगी छात्र खासे अहम हैं। 110 फरवरी 2014,
यही वह तारीख है, जब पहली बार आयोग की सीबीआइ जांच कराने को गुहार लगाई गई।
हाईकोर्ट में कई बार सुनवाई के बाद भी जांच कराने का एलान नहीं हुआ।
सीबीआइ से ही आयोग की जांच कराने को अड़े प्रतियोगी उस समय राजनीतिक
गलियारों में भी घूमे, वहां से उन्हें निराशा ही हाथ लगी। फिर भी निर्णय
नहीं बदला। लगभग हर राजनीतिक दल के नेता के दरवाजे दस्तक देकर जांच की मांग
चलती रही। 2014 के लोकसभा चुनाव में यह मुद्दा तेजी से मुखर हुआ। फूलपुर
संसदीय सीट पर प्रतियोगियों की बड़ी तादाद को भांपकर मौजूदा गृहमंत्री
राजनाथ सिंह ने इलाहाबाद की चुनावी जनसभा में सीबीआइ जांच कराने का वादा
किया। केंद्र में सरकार बनने के बाद प्रतियोगी जांच का एलान होने की उम्मीद
संजोए रहे लेकिन, तकनीकी वजहों से निराशा हाथ लगी। इसके बाद भी
प्रतियोगियों की मुहिम थमी नहीं। यूपी के विधानसभा चुनाव में भाजपा नेताओं
ने सरकार बनने पर जांच कराने का वादा किया। उसी बीच रायबरेली की सुहासिनी
बाजपेई की 2015 पीसीएस की उत्तरपुस्तिका बदलने का मामला प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने उठाया और जांच कराने का वादा किया। 19 मार्च को सूबे में
भाजपा की सरकार बनी और मुख्यमंत्री ने 19 जुलाई को आयोग की सीबीआइ जांच का
एलान कर दिया। केंद्रीय कार्मिक मंत्रलय से जांच करने का नोटीफिकेशन जारी
होने के बाद जांच भी शुरू हो गई है। सपा शासनकाल में 2012 से मार्च 2017 तक
आयोग में करीब 600 से अधिक भर्तियां हुईं, जिनमें 40 हजार के लगभग
नियुक्तियां हुई हैं। यह सब अब जांच के दायरे में हैं।
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